Sunday, 27 October 2013

माँ का पत्र बेटी के नाम

प्यारी बिटिया,                                             

आज तेरा पहला कविता संग्रह छपा हैं । सब तरफ से बधाई के फोन आ रहे हैं, मैं तो मारे गर्व के जैसे आसमान में उडी जा रही हूँ ।इस सफलता के लिए तुझे ढेरों आशीर्वाद ,ईश्वर करे तू सफलता की एक-एक सीढ़ी इसी तरह चढती रहे । मै जानती हूँ ये सफलता तुझे ऐसे ही नहीं मिली ये तो तेरी मेहनत व अपने आप में दृढ विश्वास था जो तू आज इस मुकाम पर पहुँच गई । मुझे आज भी याद है कैसे तू बचपन में छोटी-छोटी कविताएँ लिखकर मुझे सुनाती थी और फिर एक छोटे से बक्से में उन्हें संभाल कर रखती थी मै भी मन ही मन सोचती थी कि तू बडी होकर इस क्षेत्र में बड़ा नाम कमाएगी पर मन के किसी कोने में शंका थी कि अगर सफल न हो पाई तो? इसीलिये मैने तुझे उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेज दिया । तुझे याद है जब एकबार बाढ का पानी हमारे घर में घुस गया था और तेरा कविताओं वाला बक्सा पानी से भर गया था तब तू कितना रोई थी । तब भी मै तेरे साहित्य प्रेम को न समझ पाई ,पर अब समझ आ रहा है कि तेरे लिये वो कितनी कीमती होगी । बेटा,हो सके तो अपनी माँ को माफ कर देना ,जो तेरी रुचि और मन की भावनाओं को समझ न सकी । एक माँ होकर भी तेरे अंदर छुपी प्रतिभा को न पहचान सकी ।
                                                   
                                               तेरी माँ

Thursday, 24 October 2013

नन्ही चिड़िया

नन्ही चिड़िया पंख पसारे,
       उड़ना चाहे आसमान में,
        दूर-दूर तक क्षितिज के,
          इस छोर से उस छोर तक  ।
    ममता कहती,ओ चिड़िया मेरी नन्ही
       अभी तू है छोटी सी ,नाजुक सी,
        ये दुनिया है जालिम बड़ी,
       रहो अभी तुम आँचल की छाँव में मेरी,      
आ जाए जब ताकत इतनी
          पंखों में तुम्हारे कि, उड पाओ एकल
                 गिद्धों से बचकर,
             तब तुम उडना दूर-दूर तक ,                 
और पहुँचना मंजिल तक ।
     

Tuesday, 22 October 2013

सात सुरों का जादू

संगीत जीवन का आनंद है । इसे सुनने से हमें असीम आनंद व शांति की अनुभूति होती है  ।ं
  मधुर संगीत से मन को अलग ही सुकून मिलता है। मनोरंजन के साथ-साथ इसका उपयोग रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है ।
      तनाव दूर करने में तो ये रामबाण सिद्ध हुआ है ,वैसे भी अधिकतर रोगों का कारण मानसिक तनाव होता है इसलिए जब भी मानसिक या शारीरिक तनाव हो अपना पसंदीदा संगीत सुनना चाहिये इससे हमारी माँसपेशियाँ रिलेक्सिंग मोड  में चली जाती है । संगीत असहनीय दर्द को सहने की क्षमता बढाता है साथ ही साथ गाने से स्मरणशक्ति भी बढती है  । बुढ़ापे के अकेलेपन को दूर करने में भी ये सहायक हैं ।
  संगीत है तो जीवन में रस है मधुरता है।
       

Wednesday, 16 October 2013

स्वस्थ्य ह्रदय

    आज  29 सितम्बर को विश्व हार्ट दिवस मनाया जाता है। अरे दिल तो रोज धडकता है,अपना काम निरंतर करता रहता है लेकिन ये जो दिवस मनाए जाते हैं वो हमें सतर्क करने के लिए होते है कि हम अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने जागरूक हैं । स्वस्थ्य हृदय वही है जो खुश रहता है। अपने आप को स्वस्थ्य रखने के लिए हम कसरत करते हैं और अच्छी खुराक भी लेते हैं पर हमारी मानसिक स्वस्थता भी हमारे दिल को स्वस्थ रखने की कुंजी है। इस विषय में शोध के आँकड़ों से पता चलता हैं कि सकारात्मक विचारों वाले व्यक्ति ही अधिक स्वस्थ्य पाए जाते हैं । जब भी कोई वस्तु हमें अच्छी लगती हैं ,तब हमारे मुँह से बरबस यही निकलता है-"वाह दिल खुश हो गया "।तो बस आप भी सीख ले अपने दिल को खुश रखना बस सदा मुसकराते रहे ।थोडा समय अपने ,सिर्फ अपने लिए निकाल कर पसंदीदा कार्य करें ।शेष अपने आप ठीक हो जाएगा।

Tuesday, 15 October 2013

लाजो की माँ

सुधा पति व बच्चों को ओफिस और स्कूल भेजकर सोच ही रहीथी कि चलो आराम से बैठकर एक कप चाय पी जाए ,तभी डोरबैल बजी उसने सोचा इस समय कौन हो सकता हैं ? उसने दरवाजा खोला तो एक महिला को खडी पाया ।सुथा उसे पहचानने का प्रयत्न कर रही थी सुंदर सी साड़ी बहुत ही सलीके से पहनी गई थी। वह मुसकुरा कर उसे देख रही थी ,तभी वह बोली-पहचाना नही दीदी । उसकी आवाज़ को पहचानते हुए सुधा के मुँह से निकला अरे लाजो की माँ ! सुधा तो अभी भी आश्चर्य में डूबी खड़ी थी । लगभगर पंद्रह साल पुरानी बात होगी,लाजो की माँ सुधा के घर काम करती थी तब वह पांच साल की लाजो को साथ लेकर आती थी और उससे छोटा मोटा काम भी करवाती थी । तब सुधा उसे समझती के तू लाजो को पढ़ा लिखा तो लाजो की माँ कहती कहाँ से स्कूल भेजूँ दीदी,ये स्कूल जाएगी तो काम मे मेरी मदद कौन करेगा? फिर पैसे भी कहाँ से लाऊँगी? तब सुधा ने उसे समझाया कि सरकारी विघालयों में तो लडकियों के लिए मुफत शिक्षण व्यवस्था है और फिर उसके थोडे से प्रोत्साहन से लाजो स्कूल जाने लगी । सुधा भी समय निकाल कर उसे पढाने लगी और उसने पाया कि लाजो की पढाई मे काफी रुचि थी । वह समय-समयफ पर उनकी आर्थिक सहायता भी करती थी। धीरे -धीरे समय बीतता गया और फिर कुछ सालों के बाद लाजो की माँ से सुधा का सम्पर्क टूट गया और आज इतने सालो बाद लाजो की माँ का बदला रूप देखकर वह बहुत खुश थी। लाजो की माँ कह रही थी-दीदी आपके आशीर्वाद से लाजो आज शिक्षिका बन गई है आपने ही मुझे सही राह दिखाई वरना आज मेरी बेटी भी मेरी तरह बरतन कपड़ा साफ कर रही होती । सुधा ने कहा-मैने तो बस राह दिखाई थी ये तो तेरी और लाजो की मेहनत का नतीजा है। लाजो की माँ की आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे । सुधा के चेहरे पर संतोष था।

Friday, 11 October 2013

प्यारी बिटिया

वो नन्हे कदमों से ठुमक ठुम चलना,
    वो हँसना किलक कर गलेबाँह धरना,
    वो सोना लिपटकर सुनकर नन्ही परी,
      याद आता है,आता बहुत याद मुझको ।
   वो मिसरी सी धोले है कानों में,
      मेरे हां...मम्मा,
      वो प्यारी सी मुस्कान,वो मीठी सी हँसी,
      कभी गुस्सा होना, कभी समझाना कुछ,
        बहुत ही दुलारी है,बिटिया हमारी,
         परी नन्ही मेरी है,जादू की पुड़िया।

Tuesday, 8 October 2013

सकारात्मक सोच और स्वास्थ्य

सकारात्मक सोच का हमारे स्वास्थय पर गहरा असर होता है। सामान्य व्यक्ति मे रोज़ लगभग साठ हजार विचार आते है यानि कि प्रत्येक सेकेंड में एक विचार । ये विचार प्रेमभरे या फिर नफरत भरे हो सकते है, जिनका सीधा संबध ह्र्दय से होता है । दूसरे वो जिनका सम्बन्ध दिमाग से होता है जैसे घर या ओफिस का काम । जब हम अपने विचारों को कार्यान्वित नहीं कर पाते तब तनाव का अनुभव करते हैं और इसका सीधा असर हमारो श्वसन प्रणाली पर होता है और शरीर में स्थित चक्रों की गति में अवरोध उत्पन्न हो जाता है तथा शरीर को पोषण देने वाले पाँच तत्व असंतुलित हो जाते हैं और हमारा शरीर समबन्धित बिमारी से ग्रस्त हो जाता है।  इसलिए अगर हम अपने विचारों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाएं तो हम एक स्वस्थ्य जीवन पा सकते है। साथ ही नियमित ध्यान व योग के नित्य अभ्यास से अपने विचारो की संख्या को नियंत्रित कर सकते है ।

Saturday, 5 October 2013

नवरात्री

आज से नवरात्री की शुरुआत हो रही है माँ शक्ति का आगमन हो रहा है,  चारों ओर शक्ति - स्वरूपा माँ के आगमन की तैयारियाँ जोर-शोर से हो रही हैं  ।" माँ शेरी वडावी सज करूँ घेर आवो ने" यानि ,हे माँ आपके आगमन हेतु मै अपना गली-मोहल्ला साफ करके आपका
इंतजार कर रही हूँ आप पधारें। माँ का आगमन  प्रतीक है स्वछता का।  हमें घर-मोहल्ले के साथ दिलों को भी साफ करना है।
    शक्ति- स्वरूपा माँ दयामयी हैं ,साथ ही माँ काली और दुर्गा  स्वरूप भी है  जो   प्रतीक है बुराई पर अच्छाई की विजय की  ।

 

             
        
  

Friday, 4 October 2013

फर्क

बंगले मे रहने वाली मेमसाब से पूछा महाराज ने,
   आज कया बनेगा?
     पालक पनीर या पनीर टिक्का,
     बिरयानी और साथ में खीर भी,
     मैडम बोली, हां बनालो सभी कुछ  ।
       उधर, झोपड़ी में भी सवाल वही था,
      आज क्या बनेगा?जाकर रसोई में देखूँ
       कुछ पडा है क्या? थोड़े से चावल या  थोडा सा आटा।
    मिटा सकूं मै जिससे भूख अपने परिवार की  .            
               
                                                              

Thursday, 3 October 2013

ये बच्चे

 दोपहर के बारह बजे होगें, मैं बाहर से आ रही थी, तब देखा शर्मा अंकल अपने दो वर्ष के पोते को लेकर नीचे बगीचे में खड़े थे
मैंने जिज्ञासावश पूछा,अंकल इतनी गर्मी में इसको लेकर कैसे?

वे बोले,अरे इसे अभी से नींद आ रही है अगर अभी सो गया तो सारी दोपहर किसी को सोने नही देगा ।बच्चे को देखा तो नींद से आखें बोझिल थी। मन में सवाल उठा कयूँ करते हैं हम ऐसा? अपने आराम के चक्कर मे बच्चे को अपनी नींद नहीं सोने देना कहाँ तक उचित है?
  
सीढ़ी चढकर अभी अपने घर पहुंच ही रही थी कि पडौस के घर से आवाज़  सुनाई दी  पूरे दिन बस  कार्टून देखता रहता है और कुछ काम नहीं है। पर कया इसके लिये  माता पिता जिम्मेदार नही है? कयोंकि जब बच्चा छोटा होता हैं तब,अपना काम निपटाने के लिये हम उसे कार्टून दिखाते हैं फिर धीरे धीरे बच्चे को उसमें मजा  आने लगता है और फिर वह पूरे समय वहीं देखना चाहता है। फिर हम उसे डांटना शुरू कर देते हैं । बच्चे भी हमारे दोगले व्यवहार से परेशान हो जाते हैं फिर धीरे धीरे उनकी मनमानी शुरू हो जाती हैं। इसलिए हर माता पिता का कर्तव्य बनता है कि बच्चों पर अपनी इचछाएँ न लादी जाएँ अपितु उनके साथ संतुलित  व्यवहार किया जाए  । हाँ उनके थोड़े बड़े होने  पर सही गलत का ज्ञान कराना व सही राह दिखाना जरूरी है पर कयो न इन छोटी छोटी बा तों पर उन्हें अपनी मरजी से जीने दिया जाए।

Wednesday, 2 October 2013

बापू के बंदर

गाधीजी के बंदर तीन सीख हमे देते अनमोल बचपन में पढ़ी थी ये कविता, पर, आज तो मानव को,बुराई देखने में ही रुचि है,हर तरफ खोजता है,लगता है शायदअब अचछाई देखने वाला चशमा ईजाद करना पडेगा बुरी बात पर मत दो कान,पर हमें तो कान लगा कर बुराई सुनने की आदत पडी हुई है,जहाँ चार लोग इकटठे हुए कि शुरू हो गई किसी की बुराई ।और कडवे बोल बोलने में तो इनसान माहिर है ,चाहे किसी को भला लगे या बुरा ।अब तो हम वचनों से भी दरिद्र होते जा रहे हैं । आज कहां है गाधीजी की वो सीख चलो हम कोशिश करें उसे ढूढ़ने की