आजकल फेस-बुक ,वाटस एप का भूत सभी पर इस कदर चढ़ा हुआ है कि पूछिये मत । अरे
कल तो मेरे सामने ही एक भाई खडडे में जा गिरे और हाथ -पैर तुड़ा बैठे ।वो बड़ी तल्लीनता से फोटो देख रहे थे फेस बुक पर ।
अगर कोई फेस बुक पर नही होता तो भैया वो तो एकदम पिछड़ा हुआ समझा जाता है ।हमनें भी सोचा भला हम भी क्यों पीछे रहें ,तो बना डाला अपना प्रोफाइल और आ गए फेसबुक पर । और भैया तब पता चला कि हम क्या मिस कर रहे थे । दो दिन में तो इतने मित्र बन गए जितने हम अपनी पचास साल की उम्र में नहीं बना पाए थे ।
हमनें भी आनन -फानन डाल दिये अपने बहुत सारे फोटो ,और रोज यही देखते कि कितने लोगों ने लाइक किया ।अब तो हमारा अधिकांश समय इसी में गुजरने लगा ।
और ये लाइक का चककर बड़ा गजब का है । एक दिन हमनें देखा किसी की मृत्यु की खबर थी भाई , बीस लाइक । अब इससे अधिक और कया कहें ।
खैर अब तो हमें भी इसका चस्का लग चुका था ।सोचा चलो हम अपने लेखन का शौक भी यहां पूरा कर सकते हैं सो बन गए" ब्लौगर " ।
एक सप्ताह में दो-तीन रचनाएँ पोस्ट कर दी ।अब हमारा पूरा ध्यान लाइकस देखने में ही लगा था । पहली रचना पर ही सात लाइकस । मारे खुशी के खुद ही फूले जा रहे थे ।हमनें सोचा चलो इन मित्रों को फोन करके ही धन्यवाद देतें है । हमने फोन किया और धन्यवाद दिया ,पर सामने से जवाब आया -"अरे वो तो तुम्हारा नाम देखकर ही लाइक कर दिया ,वरना पढता कौन है " । हम तो जवाब सुन कर सन्न रह गये अब इतनी हिम्मत शेष नहीं थी कि किसी और को फोन किया जाए ।
पर हम भी लिखना छोडेंगे नहीं कभी न कभी तो सही में "लाइक " मिलेगा ।वैसे आप भी कर सकते हैं लाइक ।