बड़े अजीब होते है ये रिश्ते
कुछ बने बनाये मिलते हैं
तो ,कुछ बन जाते हैं
और कुछ बनाये जाते हैं
स्वार्थपूर्ति के लिए
कैसे भी हों ,आखिर रिश्ते तो रिश्ते हैं
बड़े नाजुक से
संभालना पड़ता है इन्हें
बड़े जतन से
लगाना पड़ता है
"हैंडल विथ केअर 'का लेबल
वर्ना टूट कर बिखरने का डर
ग़र टूटे तो जुड़ नहीं पाते
और चटक गए तो.......
ताउम्र सहनी पड़ती है कसक
कोई मरहम ,कोई दवा काम नहीं आती
शायद समय के साथ गहराई कम हो जाती है छोड़ जाती है कुछ निशाँ....
जिन्हें देखकर एक टीस सी उठती है बड़े अजीब होते हैं ये .............रिश्ते....।
शुभा मेहता