बहुत साल पुरानी बात है तब मैं कोई 9 -10 साल की रही होंगी ।मेरी एक सहेली थी जो हमारे घर के पीछे ही रहती थी । शाला से आकर अपना काम निपटा कर मैंअक्सर उसके पास चली जाती थी ।उसका बात करने का जो तरीका था वो मुझे बहुत अच्छा लगता था वो बोलती थी और मैं बस सुनती रहती । किसी भी छोटी सी बात का वर्णन वो ऐसे करती जैसे कितना बड़ा काम किया हो ।
जब हम छोटे होते है तो हमे घर में कोई भी छोटे -मोटे काम करने को दिए जाते है ताकि हम आगे जाकर जिम्मेदार बन सकें ।जैसे मुझे चाय बनाने का काम मिला हुआ था वैसे ही सीता यानि मेरी सहेली को भगवान् की दिया बत्ती का काम उसकी माँ ने दे रखा था ।
एक दिन जब शाम को मैं उसके पास पहुँची तो वो बोली आज तो बड़ी थक गई हूँ ।मैंनेपूछा क्या हुआ ? तो वो बोली अरे क्या बताऊँ स्कूल से आई तो देखा भगवान का दीपक अभी तक किसी ने साफ़ नहीं किया था ।जल्दी -जल्दी साफ़ किया ,रूई निकाली ,बत्ती बनाई अब देखा तो घी जमा हुआ था ,रसोई में जाकर देखा तो चूल्हा भी बुझ चुका था (उन दिनों चूल्हे या अंगीठी पर ही खाना बनाया जाता था ,गैस स्टोव का प्रचलन कम ही था ) अब क्या करती धूप भी नही थी कि उसमे ही घी पिघलाती । पड़ोस में गई वहाँ घी पिघलाया ,दिए में बत्ती डाली ,माचिस में से तीली निकाली ,जलाई तब कही जाकर दिया बत्ती हुई बाप रे कितना थक गई ।
मैं भी उसकी बातों का मज़ा ले रही थी।
बड़ी प्यारी थी वो ।