Tuesday, 20 October 2015

वक़्त

     ये तो ववत -वक़्त की बात है
      कभी मिलता है तो कभी मिलाता है
      कभी खामोश सा बैठाता है
       कभी कहकहे लगवाता है
      तो कभी अनायास रुलाता है
        कभी उलझे रिश्तों को सुलझाता है
        तो कभी खुद ही को खुद से लड़ाता है
        और ,गुजरते -गुजरते
       दे जाता है ज़बीं पे लकीरें कुछ
      साथ में बहुत कुछ सिखा भी जाता है
     अच्छा ,बुरा बस गुज़र ही जाता है ।
  

Friday, 2 October 2015

जीवन

    जीवन , निरंतर गतिशील
     जैसे बहता झरना
    वक़्त गुजरता है
      पंख लगाकर
         रुकता नहीँ किसी के रोके
        ये गुजरता वक़्त
         देता नहीँ  दिखाई
        पर , दिखा बहुत कुछ देता है
        कुछ चाहा सा,कुछ अनचाहा
       करा बहुत कुछ देता है
   
         वो बचपन के प्यारे दिन
           खेल कूद गुजारे थे जो
      न जाने कब अतीत बन जाते हैं
    बस रह जाती है यादें
       कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी ।
       कुछ धुंधली सी ,कुछ उजली सी ।
       जिन्हें याद कर के कभी मुस्कुराते है
       कभी गुनगुनाते है
       और ये यादें कभी डबडबा देती है आँखों को
       यही तो जीवन है
       बहता झरना....