Saturday, 16 July 2016

झूला

    एक वृक्ष कटा
     साथ ही
     कट गई
    कई आशाएँ
      कितने घोंसले
       पक्षी निराधार
       सहमी चहचहाहट
       वो पत्तों की
       सरसराहट
       वो टहनियाँ
       जिन पर
      बाँधते थे कभी
      सावन के झूले
       बिन झूले सावन
      कितना सूना
     कटा वृक्ष
      वर्षा कम
   धरती सूखी
    पड़ी दरारें
    न वृक्ष
    न झूला
   न सावन ?

                 शुभा मेहता
                   17th , July ,2016

Tuesday, 5 July 2016

लोग


    बंद किवाड़ों की
    दरारों से झाँकते लोग
     दिवारों से कान लगा कर
      कुछ सुनते -सुनाते लोग
      फिर, लगाकर नमक - मिर्च
      किस्से घडते - घड़ाते लोग
       शब्दों के अभेद्य
     बाण चला कर
    दिलों को तार -तार
     कर जाते लोग
       न सोचे , न समझें
    बस , सुनी -सुनाई पर
     एक दम राय
    बनाते लोग
    कभी  हँसते साथ
    तो कभी वो ही
     रुलाते लोग
     सामने कुछ
     पीछे कुछ और
      यही दोगलापन
      दिखाते लोग
      अपना समय
     बस ,इसी तरह
     बिताते हैं लोग
   वाह रे लोग , वाह रे लोग ।