Monday, 31 December 2018

स्वागत ..💐💐💐💐💐💐..नववर्ष

ठकठक......ठकठक.....

  अरे ,कौन दरवाजा खटखटा रहा है ?
   खोला तो पाया द्वार पर नववर्ष मुस्कुरा रहा है
    मैंने कहा अभी कुछ घंटे शेष हैं
     तुम कुछ जल्दी नहीं आ गए ?
      अभी तो कई काम करने हैं बाकी
       वादे जो किये थे स्वयं से निभाने हैं बाकी
        ये करूंगी ,वो करूंगी ....
         पर किया न कुछ
         दिन पर दिन बीते
          आज नहीं कल में
          हो गया वर्ष खत्म
           अब पछताए होत क्या ......
            फिर से दरवाज़े पर ठकठक
             अरे भाई ,खोलो
              मुझे आने दो
            नई खुशी ,नई उमंग लाने दो
              बीती ताहि बिसारि के
              आगे आगे सोच
               करना कुछ अच्छे काम
             हों चाहे छोटे -छोटे
               मेहनत करना आगे बढना
               पेड़ लगाना
                पैदल चलना
                 प्यारी सी मुस्कान से
                  सबका स्वागत करना .

   सभी मित्रों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।

शुभा मेहता
31st December ,2018

Wednesday, 28 November 2018

आवाज़

  लगा जैसे नींद में
  कोई आवाज़ दे रहा है
  आओ ,आओ .....
   अपना अमूल्य मत
    हमें बेचो ,हमें बेचो
     मुँहमाँगे दाम मिलेगें
    अच्छा .........!!
     हमनें कहा ....
      रोजगार मिलेगा ?
       हाँ ,हाँ ..जरूर.?
       बस एक बार सत्ता में
         आ जाने दो ..
         फिलहाल कुछ बेंगनी नोटों से
        काम चलाओ ..
           फिर मुकर गए तो ? हम बोले
            अरे भैया ,भरोसा तो करना पडेगा न ..
             हम भी कुछ सोच में पड गए ..
              नहीं.. नहीं ..ये सौदा नहीं करना हमें
               आखिर देश की खुशहाली का सवाल है
           ऐसे कैसे बिक जाए ....
             हम तो एक सच्चे देशप्रेमी हैं
             तभी घरवाली की जोरों की आवाज़ ने
               हमें जगाया ...
              अजी सुनिए ..
              मुन्ना को तेज़ बुखार है
              डॉक्टर को दिखाना होगा
               दवाइयां लानी होगी
                कुछ फल और दूध भी ...
                  तभी वही आवाज़ फिर से सुनाई दी
                   अपना अमूल्य मत ..
                     हमें बेचो.....
            हमनें थैला उठाया
        घरवाली से बोल
        चलो ..तुम भी
        तुम्हें भी तो वोट देना है ...।

     शुभा मेहता
     29 th Nov 2018
            
                
           

            
 
    

Tuesday, 13 November 2018

बाल दिवस

बाल दिवस   मन करता है
  चलो आज मैं ,
फिर छोटा बच्चा बन जाऊँ
खेलूं कूदूं ,नाचूँ ,गाऊँ
  उछल उछल इतराऊँ
   मन करता है...
   खूब हँसूं मैं
    मुक्त स्वरों मेंं
     धमाचौकड़ी मचाऊँ
     फिर माँ दौड़ीदौडी़ आए
    झूठ मूठ की डाँट लगाए
    मैं पल्लू उसके छुप जाऊँ
   मन करता है .....
     उछल उछल कर चढूं पेड़ पर
     तोड़ कच्ची इमली खाऊँ
    झूलूं बरगद की शाखा पर
    गिरूं अगर तो झट उठ जाऊँ
     मन करता है.....
   
    शुभा मेहता
     15th Nov ,2017
   

Wednesday, 24 October 2018

बदलाव

बचपन का भी क्या खेला था
घर में ही लगता जैसे मेला था
भुआ-भतीजे ,चाचा -चाची
  मामा -मामी ,,नाना -नानी
इत्ते सारे भाई -बहन
  खेला करते संग -संग
   लडते -झगडते
   फिर मिल जाते
  नही किसी से शिकायत करते ।
   नानी,दादी ,अम्मा ,मौसी
    सब चौके में जुट जाती
     रोज -रोज कुछ नया बनाती
     और प्यार से सबको खिलाती
       न कोई शिकवा ,न शिकन
       रात ढले सबके बिस्तर छत पर ही लग जाते थे
       वाह !! वो दिन भी क्या दिन थे ...
        अब कहाँ वो दिन ,वो आपसी प्रेम
         सब अपने में व्यस्त ..
          मिले भी अगर तो
           सबको अपना कमरा चाहिए
            खाने का वो स्वाद कहाँ
            बाहर से ही मँगवाया जाता है
             कौन बनाए इत्ता खाना
              प्रश्न जटिल हो जाता है
              नया जमाना आया है भैया
              नया जमाना आया है ।
  
     शुभा मेहता
     25th Oct 2018
 

Monday, 8 October 2018

उलझन

उलझन सुलझी ..?
नहीं .....?
   कोशिश करो ..
    कर तो रहे है ,
    पर ये धागे
     इतने उलझ गए हैं
     कि सुलझ ही नहीं रहे
      अरे भैया ,धीरज रखो
        आराम से  ..
      एक -एक गाँठ ..
      धीरे -धीरे खोलो
       याद करो ,तुम्ही नेंं
       लगाई थी न ये गाँठें
        नफरत की ,
       ईर्ष्या की , द्वेष की
       अब तुम्हें ही सुलझाना है इन्हें
        धैर्य से ,प्रेम से
          प्रीत से ,प्यार से ...  ।
       

      शुभा मेहता
      9th Oct,2018
          
          
     

Friday, 14 September 2018

मेरी हिन्दी...

हिंदी मेरी आन है
  हिंदी मेरी शान है
    मातृभाषा मेरी
     तुझको मेरा प्रणाम है
      कितनी मीठी
      कितनी सरल है
      शब्दों का भंडार है हिन्दी
     एक शब्द के कितनें ही  अर्थ
       एक अर्थ के कितनें  ही शब्द
       वाह !! कमाल है हिंदी
          मेरी हिंदी ,मेरी  हिंदी
          देश का गौरव भाषा मेरी

             शुभा मेहता
        14th September ,2018

 
           
      

Tuesday, 21 August 2018

फूल....

छत के कोने में
  बतियाते फूल
   सब मिल बगिया को
     महकाते फूल
      लाल ,पीले ,नीले
      सफेद फूल
       न गिला ,न शिकवा
         न जात ,न पात
           न बडा न छोटा
            न ऊँचा ,न नीचा
            मंदिर हो ,मस्जिद हो
            हो गिरजा या चर्च
             सभी जगहों पर
            पहुँच जाते ये फूल ।

        शुभा मेहता
     
   
 

Tuesday, 14 August 2018

स्वतंत्रता दिवस

सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ..

  नमन है उन सभी वीर शहीदों को ,जिनकी
शहादत की वजह से आज हम खुली हवा में साँस ले रहे हैं ,कितने ही ऐसे अनजाने शहीद होगें जिनका नाम इतिहास में दर्ज नहीं है ...धन्य है उनके माता -पिता ।
   मित्रों ,आज मैं बात करना चाहूँगी इस माँ के बारे में जिसे हम भारत माता पुकारते हैं ...पर मैं आप सबसे पूछना चाहूँगी कि क्या माँ पुकारना काफी है ,?क्या हमें इसका जतन प्यार से नहीं करना चाहिए ?
पिछले एक सप्ताह से व्हाट्सएप ,फेस बुक और भी सभी सोशल मीडिया एप्लीकेशन में जैसे बाढ़ सी आई हुई है ....वंदे मातरम ,जय भारत ,मेरा भारत महान ..
  लोग तिरंगे के  साथ प्रोफाइल पिक्चर लगा रहे है ,और भी बहुत कुछ .....
   क्या यहीं तक सीमित रह गया है देश प्रेम ....?
    जातिवाद ,धर्मवाद ,आरक्षण के नाम पर बंद का आयोजन ,आपसी मतभेद ,दंगे -फसाद ....क्या यही है
देश प्रेम ?
  मेरे देश की धरती सोना उगले .....और इसी धरती को हम कूडा करकट डालकर कितना गंदा कर रहे हैं ....
अभी हमारी सोसायटी नेंं एक वाचमैन रखा है ,कि बाहर कोई कचरा ना डाले ,बेचारा दिन भर खडा रहकर ध्यान रखता ,पर ये तथाकथित पढे-लिखे लोगों ने रात में कचरा बाहर डालना शुरु किया ।
   हमारी पवित्र नदियां जिन्हें भी हम माँ कहते है ,कचरों से भरी पडी है ..

  यहाँ मैं यही कहना चाहूँगी कि हमें स्वयं जागरूक होना पडेगा , हमारी आने वाली पीढी के आगे आर्दश उपस्थित करना होगा ,जागरूक नागरिक बनना होगा ..सभी भारतीय एक माँ भारती की संतान है ,यह भावना लानी होगी ....
चंद पंक्तियाँ माँ भारती को सर्मपित ...ये पंक्तियाँ  मुझे बहुत पसंद है ...

माँ भारती ,माँ भारती ,माँ भारती ।
  स्वर्ग भी करता तुम्हारी आरती ।।
शुभ्र ज्योत्सना सृदश अंचल है तुम्हारा
   बह रही जिसमें युगों से पुण्य धारा
जोड़ कर रवि शशी प्रगति के अश्व को
चल रहे अस्तित्व के बन सारथी ।
  माँ भारती ,माँ भारती ,माँ भारती
स्वर्ग भी करता तुम्हारी आरती।

शुभा मेहता

15th Aug 2018
 
 

 

Wednesday, 25 July 2018

किस्मत

तू चलता चला चल
  तू चलता चला चल
   अपनी लगन में
    न देख इधर
  न देख उधर
   रख आँख तेरी लक्ष्य की ओर ।
    कोई कहे अच्छी है किस्मत
    कोई कहे बुरी है किस्मत
    बात-बात पर कोसें किस्मत
     पाना चाहे इसी के सहारे सब कुछ
     पर तू चलता चला चल ...
     और तू भी चला ,खूब चला ...
    पाने को मंजिल
     हौसले बुलंद ..।
    फिर इक दिन देखा
     सामने थी मंजिल
      पा ही लिया उसे
      और साथ ही
      मुस्कुराती किस्मत खडी थी ।

   शुभा मेहता
   26th July ,2018
     
     
 

Sunday, 8 July 2018

मेरे अनुभव ..

  आज जब शाम को वॉक के लिए गई तो देखा मंजू कुछ उदास सी दिखाई दी , मैं और मंजू रोज साथ ही वॉक पर जाते हैं ,अब दोस्ती इतनी गहरी हो गई है कि बस चेहरा देख कर ही एक -दूसरे के मनोभाव पढ़ लेते हैं । मैंने पूछा.. क्या बात है आज तुम्हारा मूड कुछ उखड़ा सा लग रहा है ,कल तो बड़ी खुश थी ,बेटे ने नई गाड़ी जो ली है ..।बस मेरा इतना कहना था कि उसकी आँखों में आँसू छलछला उठे ...।
    बोली ..हाँ ...मैं तो बहुत खुश थी ..आज सुबह बेटे नें
   कहा माँ चलो मंदिर जाना है नई कार की पूजा करनें  । मैंने खुशी खुशी पूजा की थाली तैयार की ,तभी बेटा बोला माँ जल्दी करो हमें आफिस के लिए देर हो रही है ,मैं बोली बेटा तैयार तो हो जाऊँ ,तो बेटा बोला अरे माँ  ऐसे ही बैठ जाओ ,कार में ही तो जाना है ..और मैं भी खुशी के मारे बस ऐसे ही चल दी न तैयार हुई ,न पर्स लिया । मंदिर पहुँच कर पूजा की ..भगवान की भी और कार की भी ,मन ही मन बहुत प्रसन्न थी ..बेटा ;बहू कितना ध्यान रखते है ,अपनी किस्मत पर आह्लादित हो रही  थी ।
   तभी बहू के फिस से किसी का फोन आया ,और लगभग आधे घंटे वार्तालाप चला ,और मैं स्लीपर पहने ,हाथ में थाली लिए खडी रही ,फिर अचानक बेटे नें कहा माँ हमें जल्दी फिस पहुँचना है ,आप घर चले जाओ , और वो दोनो गाडी स्टार्ट करके चले गए ..मैं आवाक् सी खडी देखती रह गई ..हाथ पैर जैसे सुन्न हो गए । पास में पैसे भी नहीं लिए थे ,हाथ में थाली पकडे धीरे धीरे घर की ओर कदम बढाने लगी .....।
       सोच रही थी क्या मेरे बेटे के पास पाँच मिनिट भी नहीं थे मेरे लिए ,घर तो छोड़ ही सकता था ..और आँसू ढुलक पडे उसके गालों पर ...

    अब सवाल ये उठता है कि क्या मंजू के बेटे ने जो किया वो सही था ...नहीं न..। पर मैं जहाँ तक जानती हूँ मंजू के बेटा बहू बहुत ही सुशील और सयाने हैं ,उनका इरादा अपनी माँ को दुखी करने का कभी हो ही नहीं सकता , असल बात तो ये है कि मंजू ने अपने बेटे को कभी कोई जिम्मेदारी सौंपी ही नही , वो सभी काम स्वयं ही कर लेना चाहती है ,और उसका बेटा अपनी माँ को सुपर वुमन समझता है ,और शायद यही वजह थी ,कि वो समझ ही नहीं पाया कि उसकी माँ घर कैसे पहुँचेगी ..क्यों दोस्तों आप क्या कहते है?

  शुभा मेहता
  
 
 
    
 
 
   

Saturday, 7 July 2018

मेघ मल्हार

  गरज आए बदरा कारे
  चहुँ ओर पावस भर लाए
    मोर -पपीहा झूमे -नाचे
      कोयल छेड़े राग मल्हार
       धरती भी तो झूम रही है
        पहन चुनरिया धानी
          पत्ती -पत्ती सजी हुई है
           बूँद मोतियों से जैसे
             बच्चे उछल -उछल कर   
              करते छप्पक-छैया
               कोई नाव बना तैराता
                कोई खुद से फिसल गिर जाता
                कहीं पकौड़ो की खुशबू .....
                 वाह.......!!
                  वर्षा के आगमन से
                   त्यौहार समाँ हो जाता ।
                
              शुभा मेहता 

         7thJuly ,2018

 
            
              
            

Wednesday, 20 June 2018

अंकुर

इक बीज के हृदयतल में
   बसता है इक छोटा अंकुर
    अलसाया सा....
    सोता हुआ.....
     उठो ,उठो ..
     रवि नें आकर चुपके से कहा
      उठो ,उठो ....
     वर्षा की बूँदों नें
      आवाज़ लगाई ....
       सुना उसने ..
       सोचने लगा ..
      इस बीज के बाहर
     कितना सुंदर जग होगा !!
     वर्षा की बूँदों से
      सूरज की किरनों से
       इक बीज अंकुरित हुआ
     जग को जिलाने ..
      छाँव दिलाने.।

   शुभा मेहता

Saturday, 16 June 2018

अंधकार

अँधेरा मन में है
   दिया जलाया मंदिर में
    मन का अँधेरा दूर कर
    जग प्रकाशित हो जाएगा ।
      नफरत की आग मन में लिए
      क्यों बैठा सत्संग में
        मन से तू ये आग बुझा
        ये जग सुंदर हो जाएगा ।

Sunday, 10 June 2018

मेघा

  मन महक उठा
  माटी की सौंधी खुशबू से
   बादलों के खुले नलों से
   जब बूँदें गिरी  अवनि पर
   भिगो गई सूखी माटी को
   कोई भी इत्र इस खुशबू को
   मात नही दे सकता ।
    मन महक उठा
     खिल उठी सारी बगिया
      पंछी गाते....
     गुनगुनाते...
    चिडिया चहकचहक कर
     पानी में नहाती
     गरमी से राहत पाती ।
  
    शुभा मेहता..
    10 June,2018
   
   

  

Friday, 8 June 2018

दहलीज़

  भोर से ही आज
   चित्त कुछ उदास था
   याद मायके की
     सता रही थी
     वो पापा का दुलार
      मम्मी का प्यार
     भैया का झगड़ा
     सभी कुछ तो
     अभी कुछ दिनों
      पहले ही तो आई थी
      छोड़ उस आँगन को
      इस दहलीज़ पर ...
      तभी खाने की टेबल पर
      कुछ हंगामा सा हो गया
       किसी ने खाना छोडा
       किसी ने उसको कोसा
        बात तो ज़रा सी थी
        सब्जी में थोड़ी खारास थी
        पर कैसे  ? न पूछा किसीने ..
        आँख की दहलीज़ से
          अश्रु की इक बूँद
         जा गिरी थी उसमें..।

   शुभा मेहता
       

 

 
    
      
     
   

Thursday, 31 May 2018

प्रकृति...

प्रकृति का सानिध्य
कितना भला लगता है
हर-भरे विशाल वृक्षों के
बीच से गुजरना
दे जाता है...
  कितना सुकून मन को
   दू..र से आती आवाज़
    निर्मल झरनों की
    गहरे काले बादल
   साथ में बिजलियों का नर्तन
   डालियों से टपटप गिरती बूँदें
   चिडियों की चहचहाहट
   कितनी नैसर्गिक भाषाएँ..
  मेंढक भी टर्रा कर
   कराते हैं अहसास
   अपनी उपस्थिति का
  मोर ,कोयल ,पपीहा
   गाते सब राग मल्हार
    पर ...आने वाली पीढियों को
    क्या होगें ये नजा़रे
    मयस्सर..?
   क्यों नही ..कोशिश तो की जा सकती है
    तो चलिए..
   लेते हैं संकल्प
   उगाएगें सभी वृक्ष..
   करेंगे उनका जतन
  वृक्ष ,वर्षा, प्रकृति 
    होगें सभी समृद्ध...
    सब समृद्ध..।

शुभा मेहता
   30th May 2018
  

Tuesday, 22 May 2018

तपती दुपहरी..

जेठ की इस
  तपती दुपहरी में
हाल -बेहाल
  पसीने से लथपथ
   जब काम खत्म कर
   वो निकली बाहर
   घर जाने को
   बडी़ गरमी थी
   प्यास से गला
   सूखा.......
   घर पहुँचने की जल्दी थी
   वहाँ बच्चे कर रहे थे
    इंतजार उसका
    सोचा ,चलो रिक्षा कर लूँ
     फिर अचानक बच्चों की
     आवाज कान में गूँजी..
   "माँ ,आज लौटते में
    तरबूज ले आना
    गरमी बहुत है
    मजे से खाएंगे"
    और उसके कदम
    बढ़ उठे उधर
    जहाँ बैठे थे
    तरबूज वाले
    सोचा ,बच्चे कितने खुश होगें
    मैं तो पैदल ही
     पहुंच जाऊँगी ...
     पसीना पोंछ
     मुस्कुराई ...
     तरबूज ले
    चल दी घर की ओर ....माँँ जो थी ..।

.   शुभा मेहता 

  23May ,2018




     

Sunday, 6 May 2018

हद ...


कितना सरल होता है  
  दूसरों के लिए अच्छा
   बन जाना....
    बस सबका कहा करते चलो
    अपनी बात पर अड़ो नही
     गलत हो तो भी सह जाओ
     हाँ इंसा हो ,क्रोध भी आएगा
     पर जरा गरम होकर
    ठंडा हो जाना
    जरूरी नहीं कि
   सच्ची हो सभी बातें
    पर बोलने का यहाँ
   है मोल ही क्या
   तो बस ,बिना बोले
   ज़रा सा मुस्कुरा देना
    अगर हो बात कोई
    नापसंद हमें
   चुपचाप वहाँ से खिसक जाना
  कितना सरल होता है
   दूसरों के लिए अच्छा बन जाना ...
   अपनी अच्छाई की तारीफें पा लेना
   पर अब समझ आने लगा है सब
   ख्वामख्वाह अच्छा बनने के चक्कर में
   अपना जीवन यूँ ही गँवा रहे हैं हम
   शायद ,अब बुरे लगने लगे हैं
  क्योंकि अब नही रहते हाजिर
   पहले सभी काम कर दिया करते थे
   हँसते हँसते ...
    पर धीरे धीरे
    फायदा उठाने लगे लोग
    लादने लगे काम का बोझ
     और हम धीरे धीरे
    होने लगे दिल और दिमाग से बोझिल
     पीठ पीछे वो ही लोग
     हमें बेवकूफ समझते
      मजाक भी उडाते
      बस अब तो हद हो गई ........
     इन सभी के बीच
    कहाँ खो गया
      हमारा अस्तित्व...?
     बस अब मन में ठान लिया
     अब और नही.....
     जीना है अब हमें
     कुछ अपने लिए भी
    शायद इसलिए
     बुरे लगने लगे है
     पर खुश है हम ...
    अन्तकरण से ..।
       
शुभा मेहता ..
  6th May 2018
 

Tuesday, 1 May 2018

इंतजार ...

इंतजार , सभी को होता है
किसी न किसी चीज़ का
  प्रेमी को प्रेयसी का
   परिक्षार्थी को परिणाम का
    कृषक को वर्षा का
     बच्चों को छुट्टियों का
     कलाकार को प्रसिद्धि का
      भूखे को भोजन का
        बस ऐसे ही कट जाता है जीवन
        इंतजार करते करते
       और फिर चुपके चुपके
        आने लगता है वो
        जिसका किसी को इंतजार नही होता
        अपनी झोली और डंडा लेकर
         देता जाता है बालों में सफेदी
      माथे पर लकीरें
       जिन्हें छुपाने की भरसक
          कोशिश करते हैं हम
           सच पर चढाते है
         मुलम्मा झूठ का
         रंग -रोगन से ..।

शुभा मेहता
        
    

Friday, 20 April 2018

कदम.

  तेरे नन्हे नन्हे. कदमों से
  जब तू चलती ठुमक ठुम
हो जाता है घर का हर इक कोना रोशन
  मेरी गुडिया कितनी प्यारी
   सबसे न्यारी , राजकुमारी
   बदल गया है मेरा जीवन
  जब से तू है आई  ।
अब तू थोडी़ बडी़ हो रही
रचती कल्पना का संसार
  कभी तू बनना चाहे डॉक्टर
  कभी कहती बनूंगी टीचर
   और कभी बन जाती डांसर
   सारे सपने करना पूरे
   जो भी चाहे बनना प्यारी
   हर क़दम हूँ तेरे साथ
    जीतेगी इक दिन संसार ।

शुभा मेहता
  21 st April 2018
  
  
 

Wednesday, 11 April 2018

डर...

डर , ये तो इक हिस्सा है
   जिंदगी का...
   कुछ खोने का .
कुछ न ,पाने का
  एक अहसास है
  जो सभी को होता है
  बहुत नोर्मल चीज है
   जिंदगी की
   डर , नकारात्मकता नही
   सभी को लगता है डर
    किसी न किसी चीज से
    और जो दावे करते है
   न डरने के ..
  कभी छोटी सी छिपकली
   देख जाते हैं डर ..।

शुभा मेहता.
   

Thursday, 29 March 2018

तन्हाई....

अपनी तन्हाई को
सीने में समेटे रहती हूँ
   कभी हँस लेती हूँ
  .कभी चुपचाप
   कुछ अश्क पी लेती हूँ
     कभी पलट पन्ने डायरियों के
      सूखे फूलों की महक लेती हूँ
        बैठ झरोखों मेंं यादों के
         कुछ सैर किया  करती हूँ
         अब तन्हाई रास आ गई है मुझको
         सिर्फ ख्वाबों में तेरा नाम लिया करती हूँ।
        
         शुभा मेहता ..

Friday, 23 March 2018

एहसास..

बचपन ,भोलापन ,निष्फिक्र
  गाना ,नाचना ,हँसना ,रोना
   सब कुछ कितना प्यारा
     जैसे जैसे उम्र बढी़
      ये सब बातें कब भूल गए
      एहसास ही न हुआ
        भूल गए वो पल
       जो बचपन में जिये
      न जाने कहाँ गया वो भोलापन
      फिर दौडने लगे
     पैसे और स्टेटस की अंधी दौड़ में
    कब किसका दिल दुखाया
     एहसास  ही न हुआ 
      परवाह नहीं कि
      किसके आँसू बहे
      वो रिश्तों की गरमाहट
      खो गई इस अंधी दौड़ में ...।

  शुभा मेहता .
      
     

     
    

      
     

Wednesday, 21 March 2018

जल ,अनमोल .....

जल ही जीवन है
   जानते हैंं सब
   पर रखते इसका ध्यान कितने
   कि बचाना है इसको
    करके जतन
    समझना होगा इसका मोल
    क्योंकि ये तो है अनमोल
    बहते नल दिन रात कहीँ
    नल चलते जब ब्रश करते
    नल चलते ,बरतन धुलते
     सोचो कितना है नुकसान
       जान लो हर बूँद की कीमत
        समय रहते पहचान लो ये बात
         रखो ध्यान ,रखो ध्यान ...।

   शुभा मेहता.
    22March 2018

Tuesday, 20 March 2018

डर..

  इस शहर से कुछ दूर
  इक बस्ती है ..
   बसते है वहाँ भी
   कुछ इंसान
   घरों के नाम पर हैं
   कुछ टूटे-फूटे
  टाट के पैबन्द लगे दरवाजे़
  टीन की दीवारें
   गरमी मेंं झुलसते तन
    ठंड में ठिठुरते
   और बारिश में तो
   न जाने कितनी बार नहाते
   चिथड़ों मेंं लिपटे छोटे छोटे बच्चे
   सुबह खाया तो शाम का ठिकाना नहीं
   पर शायद डर नहीं कोई मन मेंं
   कुछ चोरी हो जाने का
    या फिर अपमानित होने का
    हार जानें का या कुछ खो लेने का
     दिखावे का या मान सम्मान का
       रोज अपमानित होने की आदत जो पडी हुई है
      अपने ही जैसे इंसानों से
       न आँधी का डर न तूफान का ,
        उड गई जो टीन की दीवारें
         सो लेगें कुछ रोज
         खुले  आसमाँ के तले
          जोड लेगें फिर से
         लगाएगे पैबंद नए.....

  .शुभा मेहता
    11th April 2018
       

         
          
       
       
   
  

   
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Wednesday, 14 March 2018

हसरतें

हसरतों की दुनियाँ
   उम्मीदों का दामन पकडे़
    चली जा रही हैंं
      मंजिल की ओर
      सफलता, असफलता
     आशा ,निराशा
     सभी को साथ लिए
    हसरतों का क्या
    एक पूरी हुई तो
    तत्काल दूसरी का हुआ जन्म
     सिलसिला जारी
ता उम्र ...।
     

उम्मीद

  न जाने किस उम्मीद मेंं
   पथराई आँखें
   रोज टकटकी लगा
   देखा करती बंद दरवाजे को
    निरन्तर  ..
   इक आस है
    अभी भी
    दिल के किसी कोने में
     एक दिन जरूर लौटेगा
      लाल उसका
       सात समुंदर पार से ..
      याद है जब बचपन में
      खेलता था
        हवाई जहाज से
       कहता उडना है इसमें बैठकर
       तब क्या पता था
       सच में छोड़ ये बसेरा
       उड़ जाएगा ....दू.....र...।

     शुभा मेहता

       

Wednesday, 7 March 2018

सबला ...

सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...

नहीं है तू अबला
दिखा दे जमाने को
  थाम हाथ इक दूजे का
  चल साथ -साथ
   बना ले मुट्ठी
   पथ मेंं हों चाहे
   लाखों कंटक
    न रुक, चल बढ़
    लाँघ ले हर बाधा
    न होने दे अब
    कोई अग्नि परीक्षा
   न बने कोई अब, उपेक्षित उर्मिला
     चल निकल पड़
      पाने को मंजिल
     छू ले आसमाँ ....।
 
शुभा मेहता ..
8 th March ,2018
  

Wednesday, 28 February 2018

उदास बचपन

  उदास मन ,उदास तन
   चारों ओर उदासी
    न है कोई आसपास अपना
    न समय किसी के पास
    कोई तो पूछे
     मेरे दिल का हाल
     माँ -पापा... बस काम ही काम
     हाँ लाकर जरूर दिए हैंं
    ढेरों खिलौने
     पर खेलूँ किसके साथ
    कितने सारे गेजेट्स ..
    उन्हें क्या मालूम
     कितना हूँ अकेला
    बस चाहत है
    कुछ पल तो रहें
    वो मेरे साथ
     क्या करूँ..?
    कोई दवा है
    जो दे दे खुशी
     या उदासी को ही गले लगाऊँ
     या फिर खो जाऊँ सपनों मेंं
     या फिर नाचूँ ,गाऊँ
     अकेले मेंं चुपके से कह लूँ
      नहीं है प्यार मुझसे किसी को
   या फिर इस उदासी को
     घोल के पी जाऊँ शरबत में ....।

  शुभा मेहता..

Thursday, 15 February 2018

खलल....

जी हाँ ,पडती है खलल
जीवन में मेरे जब
  आकर कोई कर जाता
  है सपनों को ध्वस्त मेरे
   देता है झकझोर मेरे
    समूचे अस्तित्व को,
  कितनी आसानी से
  कह जाता है ,
  ये करो ,वो मत करो
   शायद उनकी
  नजरों में
   मेरा न कोई अस्तित्व है
  न व्यक्तित्व
    जब भी बुनना चाहूँ
      सपने ,ठानू उन्हें
     पूरा करनें की
   फिर कोई हाथ
   आकर झकझोर जाता है..
    डाल जाता है
      खलल ....अनचाही ...।

शुभा मेहता ..

 

Tuesday, 6 February 2018

नदी ....

मैं हूँ नदी .....
निकल कर पहाड़ों की गोद से ,
  आ पहुँचती धरा पर
    सबका जीवन
   निर्मल करने
      रवि किरणें जब
      मुझको छूती
     मैं चमक उठती रजत सी
      इठलाती ,बलखाती
    चंचल, चपल
    जीवन देनारी ।
    पर  हे मानव ....
   तू क्यों है
   इतना स्वार्थ मगन
    करता क्यों नहीं मेरा जतन
    उँडेल कर जमाने का करकट
    करता है क्यों मुझको मैला
    कहती हूँ तुझसे
    अब भी संभल जा
     नहीं तो तुझको
    कष्ट पडे़गा सहना
      कहीं ये तेरी करनी
     पड़ जाए तुझे न
    मँहगी ....
    संभल जा अभी भी ...
    ओ मानव संभल जा ....।
    
   शुभा मेहता
   7th Feb .2018