याद है तुम्हें जब पहली बार
कंकू भरे पैरों से तुम आई थी घर में
पायल की रुनझुन कितनी मनमोहक थी
और तुम्हारे नाजुक से पैर
मैं तो बस एकटक देखता ही रह गया ठगा -सा
कितनी खूबसूरत थी तुम .....!
याद है न तुम्हें वो लम्हें
घर का हर कोना
तुम्हारे आने से महक उठा था
और मैं ,तुम्हें पाकर सातवें आसमान पर उड रहा
समय बीता ...हमनें पाई -पाई जोडकर
एक आशियाना बनाया
"अपना घर".....
याद है न ?
अब डाइनिंग टेबल पर बैठने वाले
हम चार लोग थे
कितना अच्छा लगता था
साथ बैठकर खाना ,बातें करना
हँसना ,हँसाना ,रूठना ,मनाना
बच्चों की बीमारी में
रात-रात भर जागना ..
उन्हें पढाना -लिखाना
और ये सब करते -करते
तुम्हारे कोमल पैरों की
फटने लगी थी बिबाइयाँ
और मैं बच्चों को अच्छा खिलानें और
पढानें के चक्कर में
लगा रहता दिन भर कामों में
हमारे लिए समय ही न रहा
याद है न तुम्हें ..
बोलो न ...
मैं भी कितना पागल हूँ
कभी तस्वीरेँ भी बोला करती हैं भला
वैसे अच्छा ही हुआ
तुम जल्दी चली गई
वरना सह न पाती
. आज डाइनिंग टेबल पर
मेरे लिए कोई कुर्सी खाली नहीं
"अपना घर"पराया सा हो गया ..।
शुभा मेहता
31st January ,2019