हम इंसानों की बडी अजीब -सी
फितरत है ........
जो होता है , संतोष नहीं
जो नहीं है ,बस भागे चले जाते हैं
उसके पीछे ..
चैन ,सुकून सब खो बैठते हैं
बस होड़ा-होड़ .....।
अब देखो न...
प्रकृति प्रदत्त चीजें ,
जो मिली हैं उपहार स्वरूप
अलग-अलग गुणधर्म लिए
अब मिर्ची कम तीखी चाहिए
मीठे फलों में नमक मिर्च लगाएंगे
बेचारे करेले को तो नमक लगाकर कर
इस कदर निचोड लेते है
कि बेचारा आठ -आठ आँसू रो लेता है
उस पर तुर्रा ये कि ,हमारे करेले
जरा भी कडवे नहीं ...
गुण धर्म से कुछ लेना -देना ही नहीं
आपका क्या कहना है ?
शुभा मेहता
3rd May ,2025
जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारने की कला ही तो जीवन जीने की कला है
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteमिलावट है तो मिलावट करने वाले भी हम ही है ।
ReplyDeleteसही कहा आपनें
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविन्द्र जी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteअति सर्वत्र वर्जयेत। इसी लिए हर गुण को मद्धम किया जाता है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर कविता. हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteसही कहा आपने ... संतुष्टि कहाँ है इंसान को ...
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