Thursday, 23 January 2014

शरीर में मनोभावों का संग्रह

वो कहते है न कि जैसा मन वैसा तन अर्थात शरीर और मन की स्वस्थता एक दूसरे पर आधारित हैं ।जैसे हमारे मन के विचार व भावनाएं होगी उसी के अनुरूप हमारे
शरीर का  गठबंधन होगा । सकारात्मक विचार और भावनाएं हमारे शरीर को फ्लेक्सिबल और स्वस्थ बनाकर आकषर्ण प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक विचार और भावनाएं शरीर को कठोरता प्रदान करते हैं ।
   व्यक्ति के शरीर का हर एक अंग अलग-अलग प्रकार के विचार तथा भावनाओं को प्रदर्शित करता है । जैसे शरीर का आगे का भाग क्रोध ,जागरूकता ,आभार, दुख,प्रेम,धिक्कार, आनंद, इर्षा आदि भावों को प्रदर्शित करता है । और पीछे के भाग मे हमारी अवचेतन अवस्था की भावनाओं और विचारों का संग्रह होता है ।
    हमारे विचार और शरीर के अलग-अलग अवयव  और शारीरिक समस्याएं एक दूसरे से जुडी हुई हैं । अपने नकारात्मक विचारों के कारण हम जाने अनजाने रोगों को आमंत्रित कर लेते है ।
     हमें रेकी की दूसरी डिग्री के दौरान सिखाया गया था कि पुरानी नकारात्मक विचारधारा को छोडकर नई विचारधारा का सर्जन करें । आगे सब मंगल होगा ।

Sunday, 19 January 2014

क्रोध पर विजय

जब मै पहलीबार 'रेकी' शिविर मे गई थी तब हमें इसके पाँच सिद्धांतो के बारे में बताया गया ,उसमें से एक है "।केवल आज के लिये मै क्रोध नही करूँगी " । तब मुझे लगा कितना आसान तरीका है क्रोध पर विजय पाने का ।जैसे रोज नहाना, खाना  वैसे ही क्रोध न करना ।केवल एक दिन के विचार से मन पर अधिक जोर भी नही पडता  ।
   मैंने कहीं पढा था कि केवल एक मिनट क्रोध करने से दस किलोमीटर दौडने जितनी शक्ति खर्च होती है ।आपने कभी सोचा है कि हमें क्रोध किन बातों पर आता है -*बीती बातों पर ।
   *चल रही बातों पर
    *या फिर आने वाली बातों पर ।
      अगर हम ध्यान दे तो पाएंगे कि क्रोध उन घटनाओं,व्यक्तियों पर आता हैं जो हमें पसंद नहीँ है ।जब-जब ऐसी घटनाएँ याद आती है या फिर ऐसे व्यक्ति सामने आते है क्रोध आता है  ।हम यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि क्रोध करके हम परिस्थिति में कोई परिवर्तन नहीँ ला सकते ।हाँ अगर प्रेमभरा व्यवहार करने में आए तो परिवर्तन की संभावना रहती है ।
     दूसरों पर क्रोध करके हम कहीँ ना कहीँ स्वयं का ही नुकसान करते है क्योंकि तनावग्रस्त रहकर हम बहुत सी बीमारियों को आमंत्रित करते हैं  ।
       चिकित्सकों का कहना है कि क्रोध,भय वग़ैरह आवेशों से हमारे पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का प्रवाह अधिक होता है जो सामान्यत: भोजन के कठोर अंश को पचाने में सहायक होता है । पर जब क्रोध के कारण इस एसिड का निर्माण होता है उस समय पेट में भोजन के कठोर अंश न होने के कारण ये पेट के  पाचक तत्वों का नाश करना शुरू कर देता है और व्यक्ति बीमारी का शिकार हो जाता है ।
   इसलिए आप भी रोज सुबह उठ कर दोहराए केवल आज के लिए क्रोध नही करेगें । आशा है इससें आपका जीवन अधिक सुखमय हो सकेगा ।

Saturday, 11 January 2014

निंद्रा देवी

देखने में तो यह ढाई अक्षर ,का शब्द है,पर हमारे जीवन में इसका कितना महत्व है यह तो वही जान सकता है जिसे नींद नहीँ आती ।मुझे याद है बचपन में हम खेल-खेल में इसे निद्रादेवी कहते थे । उस समय पता नही था कयों ? पर अब लगता सच ही है  । जिस पर निद्रा देवी प्रसन्न है वह कितना सुखी है । जब हमारे घर कोई मेहमान आते हैं या फिर हम कहीँ जाते हैं तो सुबह सबसे पहला प्रश्न यही पूछा जाता है -नींद आई ?इससे ही पता चलता है कि यह हमारे जीवन का अहं हिस्सा है ।
         अगर हमें अच्छी नींद आती है तो हमारी  जीवन शक्ति, उर्जा और कार्य क्षमता बढती है । जब हम सो रहे होते हैं तब हमारा बाहरी शरीर ही आराम मे नहीं होता बल्कि आंतरिक चेतना, अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ और ज्ञानेन्द्रियों को भी आराम मिलता है । संक्षेप में हम कहें तो नींद से तन-मन तंदुरुस्त बनता है ।
        मानव मस्तिष्क में जाग्रत चेतन व अवचेतन अवस्था हमेशा कार्यरत रहती हैं परंतु नींद के समय चेतनता सुषुप्त हो जाती है  लेकिन अवचेतन अवस्था के अंदर समग्र स्मृतियाँ ,विचार, अनुभव आदि प्रवर्त रहते हैं ।
       अब प्रश्न ये है कि जिन लोगों को कम नींद आती है उसका कारण कया है? मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अनिद्रा के कारण बहुत गहरे नही होते । छोटी-छोटी बातों पर लोग विचाराधीन हो जाते हैं और अनिद्रा के शिकार हो जीते हैं । नींद न आने पर लोग अनेक प्रकार की दवाओें का सेवन करते है लेकिन उनसे शरीर केवल तंद्रा में रहता है और शरीर सुस्त व क्षमता शून्य बनता है ।
     अगर थोड़ा प्रयास किया जाए तो धीरे-धीरे अनिद्रा रोग पर विजय पाई जा सकती है ।
   * सोने का समय निश्चित करें ।
   * गुनगुने पानी से स्नान करके सोएं ।
    *भोजन व सोने के बीच कम से कम दो घंटे का अंतर रखें ।
   *ज्ञान मुद्रा का अभ्यास दस से पंद्रह मिनट करें ।यह अनिद्रा रोग के लिए राम बाण है ।
*और अंत में मस्त रहो मस्ती में ।

Sunday, 5 January 2014

संकल्प

नये वर्ष के आगमन को पाँच दिन हो चुके हैं ।"हेप्पी न्यू इयर " का उत्साह धीरे-धीरे कम हो रहा है ,जिंदगी वापस उसी ढर्रे पर चलने लगी है। इसी तरह साल ब साल गुजरते जा रहे हैं ।हर साल के शुरुआत में हम जोरशोर के साथ संकल्प लेते हैं कुछ नया करने का,आगे बढने का ,लेकिन कुछ दिनो के बाद सब ज्यों का त्यों   ।                      आइये इस वर्ष को यूँ ही न गुजरने दें,कोशिश करें इसे अपने जीवन का बेस्ट वर्ष बनाने की ,और जो संकल्प हमने अपने आप से किये हैं उन्हें पूरा करने कीं जी-जान से कोशिश करें ।इस साल को अपने जीवन परिवर्तन का साल बनाएं ।     सबसे पहले हम यह निश्चित करें कि हमारे लिये सबसे महत्वपूर्ण कया है?हमार लक्ष्य कया है ?फिर आप अपने-आप से पूछें -क्याआप तैयार हैं इस वर्ष को अपना 'बेस्ट इयर' बनाने के लिये ?अगर हाँ तो बढ़ाइये अपना पहला कदम आज ही ।एक बार आपने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर कदम बढा लिया तो आपकी सफलता निश्चित है ।
     खुल कर सोचें, बीती हुई नकारात्मक यादोँ के बारे में न सोचें ।अपने आप से पूछें कि आप स्वयं को कहाँ खडा हुआ देखना चाहते हैं? और हाँ आगे बढने से पहले सोचें कि पिछले वर्षों में अपने लक्ष्य को पाने में आपसे कहाँ चूक हुई है ?उनसे सीख लेते हुए दोबारा न होने दें ।
    तभी जाकर सही अर्थों में यह वर्ष 'हेप्पी न्यू इयर' बनेगा । all the best ,