वो कहते है न कि जैसा मन वैसा तन अर्थात शरीर और मन की स्वस्थता एक दूसरे पर आधारित हैं ।जैसे हमारे मन के विचार व भावनाएं होगी उसी के अनुरूप हमारे
शरीर का गठबंधन होगा । सकारात्मक विचार और भावनाएं हमारे शरीर को फ्लेक्सिबल और स्वस्थ बनाकर आकषर्ण प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक विचार और भावनाएं शरीर को कठोरता प्रदान करते हैं ।
व्यक्ति के शरीर का हर एक अंग अलग-अलग प्रकार के विचार तथा भावनाओं को प्रदर्शित करता है । जैसे शरीर का आगे का भाग क्रोध ,जागरूकता ,आभार, दुख,प्रेम,धिक्कार, आनंद, इर्षा आदि भावों को प्रदर्शित करता है । और पीछे के भाग मे हमारी अवचेतन अवस्था की भावनाओं और विचारों का संग्रह होता है ।
हमारे विचार और शरीर के अलग-अलग अवयव और शारीरिक समस्याएं एक दूसरे से जुडी हुई हैं । अपने नकारात्मक विचारों के कारण हम जाने अनजाने रोगों को आमंत्रित कर लेते है ।
हमें रेकी की दूसरी डिग्री के दौरान सिखाया गया था कि पुरानी नकारात्मक विचारधारा को छोडकर नई विचारधारा का सर्जन करें । आगे सब मंगल होगा ।
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