अभी कुछ दिनों पहले की बात है मै अपनी पोती को लेकर नीचे बगीचे मे गई थी ।वहाँ बहुत से बच्चे खेल रहे थे उसमें से कुछ तो बहुत आधिक शरारत कर रहे थे । खेल-खेल में अचानक झगड़ा करने लगे । पास मे उनकी माताएँ ,जो बातों में मशगूल थी उन्हें डांटने लगी कि "इतने मँहगे स्कूल मे पढाते हैं फिर भी ऐसे करते हो । देखो सब कया कहेगें " ।और फिर से वो लोग अपनी बातों में लग गई ।
मेरे मन में सवाल उठा कि कया मँहगे स्कूल में भेजने से हो जाती है कर्तव्यों की इतिश्री । बच्चे स्कूल से अधिक समय घर मे बिताते हैं ।
सबसे जरूरी चीज है बालमन को समझना । उनका मन बहुत कोमल होता है ।हमारे द्वारा कही गई किसी भी बात का उनके मन पर बहुत गहरा असर होता है ।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बालक के प्रथम पाँच वर्ष सीखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं । इस दौरान वह एक साथ बहुत सी चीजें सीखते हैं । आसपास के वातावरण से,माता पिता के वर्तन से,अवलोकन द्वारा वह बहुत कुछ सीखने लगता है ।
बालक जब पृथ्वी पर आता है तब से जब तक उसकी स्वतंत्र निर्णय शक्ति जाग्रत न हो जाय तब तक उसका सम्पूर्ण ध्यान रखना माता-पिता का कर्तव्य होता है ।अगर इन वर्षोँ में माता-पिता बालक का संपूर्ण ध्यान रखे तो उनके शरीर व मन का संपूर्ण विकास होता है । इसके लिए शुरू से ही कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिये जैसे अगर उसे बचपन से अंगूठा चूसने की आदत या इस तरह की कोई और आदत पड़ जाए तो समय रहते छुडाने की कोशिश करनी चाहिए अन्यथा बड़ा होकर बालक लघुताग्रन्थि से ग्रस्तहो जाता है ।
पहले से ही बालक को पोष्टिक खुराक देना चाहिये । अगर पहले से ही उनको जो पसंद है वही खिलाया जाता हैतो उनके मन मे यही बैठ जाता है कि जो अच्छा लगे वही खाना है और इस तरह वे संपूर्ण पोषण से वंचित रह जाते है जो आगे जाकर उनके विकास मे बाधक बनता है । बच्चों को खाने का प्रलोभन देकर काम नही करवाना चाहिये ।
पर्याप्त नींद भी बच्चों के लिए अतिआवश्यक है ।बचपन से ही उन्हें शरीर केएक के बाद एक भाग को ढीला छोडकर आराम षे सोना सिखाया जाना चाहिये । जो बालक पहले से ही ऐसी सचेतन निंद्रा लेना सीख जाए तो आगे जीवन भर स्वस्थ्य रह सकेगा । इन सबके साथ उनको नियमित व्यायाम व खेल कूद के प्रति भी प्रोत्साहित करना चाहिये ।
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