गांधी जी के बंदर तीन ,सीख हमें देते अनमोल ,
बुरा दिखे तो मत दो ध्यान, बचपन में पढी थी ये कविता ।
पर आज तो मानव को बुराई देखने में ही रुचि है ,
हर तरफ उसे ही खोजता है ,
लगता है शायद अब अच्छाई देखने वाला ,चश्मा ईजाद करना पडेगा ।
बुरी बात पर मत दो कान,पर हमें तो कान लगाकर बुराई सुनने की आदत है ,
जहाँ चार लोग इकट्ठा हुए ,कि शुरू हो गई किसी की बुराई ।
और कडवे बोल बोलने में तो इंसान माहिर है ,
चाहे किसी के दिल को अच्छा लगे या ना लगे,
शायद हम यह उक्ति भूलते जा रहे है ,
वचनम् किं दरिद्रम
आज कहाँ है वो गांधी जी की सीख ,
आओ कोशिश करें, मिलकर ढूँढने की ।
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