Wednesday, 2 April 2014

मैं...

है शब्द एक अक्षर का ,
    लेकिन इसमें सारी दुनिया है समाई ।
    जिधर देखो उधर "मैं"की माया है छाई ।
     इस एक "मैं"पर लिखे जा सकते है,
     बड़े-बड़े ग्रन्थ ,
     मै ऐसा ,मै वैसा और न जाने क्या-क्या ।
      यहाँ तक कि जब हमारा कोई प्रियजन ,
    विदा लेता है हमसे ,
     तब भी बरबस मुँह से यही निकलता है
     हाय राम अब "मेरा क्या होगा ।

No comments:

Post a Comment