है शब्द एक अक्षर का ,
लेकिन इसमें सारी दुनिया है समाई ।
जिधर देखो उधर "मैं"की माया है छाई ।
इस एक "मैं"पर लिखे जा सकते है,
बड़े-बड़े ग्रन्थ ,
मै ऐसा ,मै वैसा और न जाने क्या-क्या ।
यहाँ तक कि जब हमारा कोई प्रियजन ,
विदा लेता है हमसे ,
तब भी बरबस मुँह से यही निकलता है
हाय राम अब "मेरा क्या होगा ।
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