Saturday, 4 April 2015

समन्वय

केलेंडर बदल गया
     खूंटी वही है 
      रातें गुजरती हैं
      तारीखें बदलती हैं
      कभी सोचा है
      कि हम कहाँ हैं
     खूंटी की तरह वहीँ
       या फिर तारीखों की तरह
       आगे बढ़ रहे हैं  ।
     या फिर  पकड़े हैं
     अपनी लकीर की फकीरी ।
  समय के साथ चलना सीखो
       आगे बढ़ के जीना सीखो
करो समन्वय नई पीढ़ी के साथ
        चलों मिला कर हाथों से हाथ
      तभी तो होगी जीत तुम्हारी
       पाओगे ना कभी तुम हार
  पथ के कंटक फूल बनेगें
        राह बने सदा  गुलजार ।
       

    

Thursday, 2 April 2015

मन की बात

  लगता है जैसे
      अभी कल ही की बात हो
       माँ का ऊँगली पकड़ चलना सिखाना
        बड़े प्यारसे खाना खिलाना
     हाथ पकड़ शाला ले जाना
      पढ़ाना, लिखाना
      बिन पूछे ही जान जाती वो
      मेरे मन की सारी बात
     माँ..,.जो ठहरी ।
     
      आज जब लगा खाना कुछ बेस्वाद
      बोला माँ से -आज कैसा खाना बनाया है
     वो धीरे से बोली बेटा अब उम्र हो गई है ना
     शायद नज़र कमजोर हो गई है
     मैं अवाक् सा देख रहा था उसे
      कभी कहा नहीं उसने
      पर क्यों न समझ पाया मैं
      उसके मन की बात ?
    और आज माँ है बहुत बीमार
     बैठा हूँ सामने उसके
      देख रहे दोनों एकटक
      एकदूजे को
     आज समझ रहा हूँ
     उसके मन की बात
      वो  सोचे है -अब तो उठा ले ईश्वर
      मत बना बोझ
     और मैं  रहा था सोच  -हे ईश्वर
     अगले जन्म में
     बनाना इन्हें बेटी मेरी
     शायद ममता का
      थोडा कर्ज तो उतार सकूँ