11 दिसंबर 2014 गुरुवार को संयुक्त राष्ट्रसंघ की महा सभा में घोषणा की गई थी कि 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा ।योग के द्वारा हमें मिलती है सकारात्मकता से जीने की प्रेरणा ।
जब भारत के राजदूत द्वारा इसे पेश किया गया तो 177 दूसरे देशों ने इसका समर्थन किया । इस प्रस्ताव को पारित किया गया ग्लोबल हेल्थ के एजेंडा के अन्तर्गत ।
अब जब हम 21 जून की योग दिवस के रूप में मनाएंगे तो ये जानना अति आवश्यक है के वास्तव में योग है क्या ? क्योंकि इस बारे में अभी अनेक भ्रांतियां हैं ।
क्या योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम है ?
क्या ये कोई धर्म है ?
क्या ये अच्छा इंसान बनने का रास्ता है ?
नहीं , योग इनमे से कुछ भी नहीं है ।
असल में योग एक विज्ञानं है । योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। इसके अभ्यास से हम न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वस्थ्यता भी प्राप्त कर सकते हैं। पतंजलि योग सूत्र के अनुसार "योगस्य चित्तवृत्ति निरोधः " । योग केद्वारा चित्त को स्थिर बनाया जा सकता है ।श्री कृष्ण ने गीता में कहा है"योगः कर्मसु कौशलम् "यानि जब किसी कार्य को निर्लेप भाव से किया जाये तब वो योग कहलाता है ।
योग के आठ अंग हैं -यम,नियम, आसन ,प्राणायाम ,प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान और समाधि ।
आज शारीरिक ,मानसिक और व्यवहारिक असमानता के इस युग में योग का महत्व लोगों को समझ आने लगा है । परंतु योग शब्द के साथ अनेक नाम और अर्थ जुड़े हुए हैं जैसे - हठ योग ,भक्ति योग,ज्ञान योग ,कर्म योग ,राजयोग इत्यादि ।
जब भी जीवन में कोई कमी नज़र आये चाहे वो शारीरिक हो अथवा मानसिक तो योग के द्वारा उसे काफी हद तक ठीक किया जा सकता है । सामान्यतः मानव जीवन का लक्ष्य होता है -शांति , सुख़ और निस्वार्थ प्रेम प्राप्त करना ।लेकिन ऐसा हो नहीं पाता और फिर उदभव होता है मानसिक अशांति का जिसका असर शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है ऐसी परिस्थिति में अगर योग को अपनाया जाये तो शरीर व मन दोनोँ से स्वस्थ बना जा सकता है ।
योगासनों की शुरुआत प्रार्थना ,श्लोक आदि के द्वारा की जाती है । ये धीरे -धीरे पूरक ,कुंभक और रेचक के साथ तालबद्ध गति में शांत और अन्तर्मुखी भाव से किये जाते हैं
जीवन के छोटे -बड़े किसी भी काम को सहजता से करने के लिए शरीर और मन दोनों का स्वस्थ्य होना जरूरी है और इसके लिए योग की आवश्यकता है । योग शरीर के सभी अंगों को एक समान व्यायाम देता है । इसके तालबद्ध अभ्यास से शरीर के प्रत्येक अवयव को कुदरती श्रम मिलता है जिससे इन ग्रन्थियों के आरोग्यवर्धक रस अधिक मात्रा में खून के साथ मिलते हैं और तंदरुस्ती प्रदान करते हैं ।
वैज्ञानिक तरीके से आसन करने से शारीर व मन पर श्रम नहीं पड़ता । ये हमेशा शांत चित्त ,एकाग्रता व धीरज के साथ यथाशक्ति ही करने चाहिए ।सही तरीके से किये गए आसनों से हर स्नायु को नई शक्ति और स्फूर्ति मिलती है ।
जोड़ों के आसपास के बंधन आसनों द्वारा सुदृढ़ बनते हैं ।
हड्डियों में रक्त संचार बढ़ने से उनकी मजबूती एवम् स्थितिस्थापकता बढ़ती है ।
ह्रदय और धमनियों में रक्त प्रवाह बढ़ने से इनके कार्य करने की क्षमता बढ़ती है ।
प्राणायाम से श्वसन प्रक्रिया सुधरती है और स्वच्छ रक्त का निर्माण होता है । साथ ही मन की एकाग्रता बढ़ती है ।
शरीर की स्वस्थ्यता का सीधा सम्बन्ध मन से है । योग के अभ्यास से जब मन प्रसन्न रहेगा तो शरीर अपने आप स्वस्थ्य रहेगा । तो आइये स्वस्थ जीवन की शुरुआत करें ।
योग को अपने जीवन में स्थान दें ।
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