सर्द ठिठुरती रात में
एक चादर भी
मयस्सर नहीं जिन्हें
कुछ चिथड़े से लपेटे हुए
देखा है कई बार इन्हें
सर्द हवा के झोंकों से
बचने की नाकाम कोशिश
करते हुए....
ना कोई ठौर ना ठिकाना
फुटपाथ हीं इनका बसेरा है
देखा है छोटे -छोटे बच्चों को
टूटे-फूटे खिलौनों से
खेलते हुए और
सिगनल पर
नए खिलौने बेचते हुए
सर्द हवा से बचने के लिए
जुगाड़ करते है
कुछ लकड़ी के टुकड़े
अलाव जलाने को
नींद आती है लेकिन
सो नहीं पाते
इस डर से कि
कहीं कोई तेजी से
आती हुई कार
कुचल न डाले उन्हें
इसलिए जागते है रात भर
उनके लिए तो ,उनकी ज़िन्दगी है
अनमोल ....
औरों के लिए हो ना हो
जी हाँ ....ये हैं फुटपाथी ।
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..और बहुत ही अच्छी रचना पढने को मिली.
ReplyDeleteआभार शुभा जी.
स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।
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ReplyDeleteअहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद संजय जी ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद संजय जी ।
ReplyDeleteबहुत खूब शुभा जी ,देखा है,छोटे-छोटे बच्चों को टूटे खिलौनो से खेलेते हुए और सिग्नल पर नये खिलौने बेचते हुए 😢
ReplyDeleteबहुत सुंदर या अभीव्यक्ति।
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