सुबह-सुबह अचानक
मिट्टी की सौंधी खुशबू
तर कर गई
तन -मन को
उठ कर देखा
तो पाया
बरखा की बूँदो ने
भिगो दिया है
इसको ज़रा
उसीकी खुशबू थी
शायद मेरी तरह
सभी के मन को
भाती है ये खुशबू
गाँव की मिट्टी
देश की मिट्टी
क्या -क्या नहीं
करवाती ये मिट्टी
बच्चों को भी
बड़ी भाती ये मिट्टी
खेल -खेल में
इससे बनाते वो
घरौंदे, महल
मिट्टी जो है
हमारे जीवन काआधार
देती फल, फूल ,अनाज
क्यों लगती इतनी प्यारी
ये मिट्टी
आज समझ आया
अरे हम भी तो
इसी से बने हैं
तभी तो करते हैं
इससे इतना प्यार ।
Lajawab aur bachpan mein bnaye gharonde yaad krwa diye kavita ka sahi meter pakadti hai aur atisundar bhav laati h shabdon k dwara wah aaj phle toh ghazal ka upload aur bonus k roop mein itni acchi kavita khoob jiye banglaa mein kahte hain fatafati
ReplyDeleteLajawab aur bachpan mein bnaye gharonde yaad krwa diye kavita ka sahi meter pakadti hai aur atisundar bhav laati h shabdon k dwara wah aaj phle toh ghazal ka upload aur bonus k roop mein itni acchi kavita khoob jiye banglaa mein kahte hain fatafati
ReplyDeleteप्रभावी पंक्तिया ।
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर कुछ अधूरी सी कवितायेँ पुरानी डायरी के पन्ने:)
आभार संजयजी ।
ReplyDeleteआभार संजयजी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआभार । स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।
ReplyDeleteआभार । स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।
ReplyDeleteमिटटी की खुशबू में यही तो बात है ... सहज ही घुल जाती है अपने से ...
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