अध्यापिका पढ़ा रही थी
मौलिक अधिकार
समानता का अधिकार ,
स्वतंत्रता का अधिकार
समझाया हर किसी को ,
है अधिकार
विचार व्यक्त करने का
तो मैंने पूछा
क्या हम भी अपने
मन के विचार व्यक्त
कर सकते हैं ?
वो बोली डाँटते हुए
चुप रहो ,कक्षा को
डिस्टर्ब मत करो
मैं बेचारी कुछ
समझ न पाई
घर जाके
पूछा माँ से
माँ ..क्या हम सभी को है
अधिकार अपने
विचार व्यक्त करने का?
है न माँ ? सच है न ?
माँ चुप ....
मैं तब भी
कुछ समझ न पाई .....
शुभा, बिल्कुल सही कहा तुमने... यहां हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं है ही नहीं। यहां तक की अपने खुद के परिवार में भी सच को नजरअंदाज करते हुए हमें कई बार परिवार में औरों की खुशी के लिए चुप रहना पडता है।
ReplyDeleteआभार ज्योति । सही है न ,शायद हम सभी को कमी,बेसी ये सहना ही पड़ता है।
Deleteबहुत खूब लिखा है शुभा जी.
ReplyDeleteDhanyawaad Alpanaji
Deleteकथनी और करनी के इसी फर्क को मिटाना होगा ...
ReplyDeleteहाँ ,प्रयत्न तो करने होंगें ।
Deleteबेटी को शुरूवात से ही अपनी आवाज बुलंद करने की हिम्मत देने की जिम्मेदारी मां की होती है लेकिन जब मां ही चुप हो जाए, फिर बेटी के मन पर क्या संदेश जायेगा। लेकिन अब समाज में बदलाव आ रहा है बेटियां बेटो से बेहतर हो रही है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteकहीं ना कहीं हम सब को अपनी बात को अपने दिल में रखने के दर्द को छिपाना पढ़ता है ,चाहे वो परिवार हो या समाज ।।शुभा जी आपने अन्तर्मन की व्यथा को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है ।
ReplyDeleteकहीं ना कहीं हम सब को अपनी बात को अपने दिल में रखने के दर्द को छिपाना पढ़ता है ,चाहे वो परिवार हो या समाज ।।शुभा जी आपने अन्तर्मन की व्यथा को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ऋतु जी।
DeleteWah kitna accha likhti h maja aa gya pdh kar bahut hi s shakt kavita h
ReplyDeleteकितनी सादगी और प्रभावशाली ढंग से आपने शुभा जी बहुत ही मार्मिक बात कह दी है .....अभिनन्दन ....
ReplyDeleteDhanyvad Rajesh ji
DeleteBhoga hua yatharth Sahi tarah se abhivyakt karna hi kala h...Well said Shubhai
ReplyDeleteWow , bahut hi shandar article . Good Job keep it up
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
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