मन ने कहा ,चलो आज
चलोगी आत्म भ्रमण पर
मैं बोली क्यों नही
सबसे पहली मुलाकात
स्वयं के अहम् से
गुफ्तगू हुई
शायद इसी के
कारण उलझनें हैं कई
चाहा छोड़ दूँ राह पर इसे
कम्बख्त ,छोड़ता ही नहीं
साथ ही चला वो
आगे मिला क्रोध ..
बना दिया है
जिसने कइयों को
नाराज़ , खुद को बीमार
फिर टकराए .ईर्ष्या ,द्वेष
न खुद रहते चैन से ,न रहने देते
कब से खोज रही थी
जिस निर्मल प्रेम को
देखा तो दुबका बैठा था
इक कोने में
जगाया , झकझोर के उठाया
कहा ,जागो ....
आज दुनियाँ को
सबसे अधिक जरूरत है
तुम्हारी ,चलो
बना दो जग को
प्रेममय ,छेड़ो कोई
तान मधुर
सब रंग जाएँ
रंग तुम्हारे ......
मैं भी ....।
शुभा मेहता
10 May ,2017
Bahut itminan se likhi gyi h aur aaj ki jaroorat bhi h har taraf jhagda kahin aham toh kahin irsha dvesh aur anth bahut hi sakaratmak bhasha har baar ki taraf saral suljhi huyi aur ander baithti huyi bas likhe jaa bahut jldi sangrah bhi aayega teri kavitaon ke vishay sach mein kafi samay ke anuroop mil rhe hain bahut yashasvi ho deerghayu ho bahut bahut pyaar aur ashish
ReplyDeleteकब से खोज रही थी जिस निर्मल प्रेम को दुबका बैठा था एक कोने में ,उसे जगाया झकझोर के उठाया ,कहा जागो दुनियाँ को सबसे अधिक जरूरत्त तुम्हारी है ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर विचारों के साथ सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत -बहुत धन्यवाद ऋतु जी ।
Deleteकई दिनों बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर... पोस्ट पढ़ी तो शानदार लगी लफ़्ज़ों में गहरे अहसास .....बहुत ही खूबसूरत.....
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार संजय जी ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत -बहुत आभार ।
Deleteबहुत -बहुत आभार ।
Deleteकहा जाता है कि इंसान को सबसे ज्यादा यदि किसी चीज की आवश्यकता है तो वो है प्रेम। इंसान उसी प्रेम को भुला बैठा है। उसको जागृत करने का प्रयास करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी ।
Deleteबहुत ही शानदार और प्रभावी रचना की प्रस्तुत। मुझे बेहद पसंद आई।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद जमशेद आज़मी जी ।
Deleteआत्म भ्रमण में मन के विकारों से मुलाकात । और इन विकारों के बीच प्रेम भला कैसे ठहर सकता है ! लाजवाब प्रस्तुति ।
ReplyDeleteस्वागत है राजेश जी आपका मेरे चेनल पर ,बहुत बहुत धन्यवाद ।
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्द रचना और गहरे भाव शुभा जी।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
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ReplyDeleteव्यक्ति में पलते मनोविकारों का प्रभावी व प्रवाहमयी प्रस्तुतीकरण जिसमें सकारात्मकता के सुखद अंकुरण समाहित हैं। प्रेम को प्राथमिकता देना निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि नकारात्मक विचारों से अब दिल ऊब चुका है , वे अब नाक तक भर आये हैं । बधाई शुभा जी।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद यादव जी ।
Deleteआत्मभ्रमण ...मन के साथ...
ReplyDeleteराग द्वेष क्रोध के पीछे प्रेम कहाँँ स्थान पा सकता है....
इन्हें छोड़ो फिर पाना है प्रेम को...
लाजवाब......
ज्ञानवर्धक...
बहुत -बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
Deleteआदरणीय शुभा जी मैं चाहता हूँ कि मेरी कुछ चुनिंदा रचनाओं को आप आवाज दें आभार। "एकलव्य"
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