माँ ..माँ ,बड़े भैया का फोन था ,कह रहे थे इस दिवाली सब एक गेट टुगेदर रखते हैं .. ..बोलते हुए राघव ने कमरे में प्रवेश किया ।अच्छा ,सुधा की आँखे खुशी से छलछला उठी बोली ,अच्छा कब आ रहे हैं सब ?
नहीं माँ ,भैया कह रहे थे कि हम तीनों भाई और दीदी
सब मिलकर कहीं एक जगह जाएंगे दो -तीन दिन के लिए ..घूमना भी हो जाएगा और गेट टुगेदर भी ।
अरे तो वो सब यहाँ अपने ,खुद के घर भी तो आ सकते हैं न, क्यों पहले भी तो हम सब साथ रहते थे न इसी घर में ,कितनी धमाचौकड़ी मचाते थे तुम लोग दिन भर और नीला ,तेरी दीदी वो तो बात-बात में रूठ जाती थी ,और फिर तुम सब मिलकर उसे कैसे मनाते थे।
नहीं माँ ,भैया कह रहे थे कि किसी रिसोर्ट में चलेंगे
यहाँ कहाँ इतनी जगह है ...भाभियाँ ,बच्चे सभी तो होंगे ...आजकल तो सभी को अलग कमरे चाहिए होते हैं न ..
सुधा बोली ,ठीक है ,जैसा तुम लोगों को अच्छा लगे ..
और फिर रोज फोन पर राघव अपने भाइयों के साथ इस गेट टुगेदर के बारे में बात करता , वार्तालाप के कुछ अंश उसे भी सुनाता । जाने का दिन व समय तय हो गया , एक अच्छे से रिसोर्ट में सबके अलग -अलग कमरे बुक हो गए ।राघव ने उसे बताया ..माँ तुम्हारे लिए भी अलग कमरा बुक करवाया है भैया नें । दो दिन सब साथ रहेगें ,कितना मजा आएगा न ,राघव नें कहा।
राघव उसका सबसे छोटा बेटा ,अभी पढाई कर रहा है ,वो और राघव अभी यहीं अपने घर में रहते है ।बच्चों के पिताजी तीन साल पहले ही हम सबको अलविदा कह गये । दोनों बडे बेटे अपने अपने परिवार को लेकर दूसरे शहरों म़े रहते है ।बेटी अपने ससुराल म़े सुखी है ,ओर क्या चाहिए उसे ।
आखिर गेट टुगेदर के लिए जाने का दिन आ गया ..
मैं भी तैयार थी मन में बहुत खुशी थी ,सब बच्चे एक साथ जो होंगे । मेरा बैग तैयार था , चलते वक्त राघव बोला ,माँ क्या भरा है इसमें जो इतना भारी है ...
अरे कुछ नही बेटा ,थोड़ी गुजिया ,मठरी ,सेव बना कर लिए है ,तेरे भाइयों और दीदी को बहुत पसंद है न ।
आखिर चार घंटे के सफर के बाद हम पहुँचे गन्तव्य को ....सब बच्चों ने आकर जब पैर छुए तो ,बरबस खुशी के आँसू निकल पडे । बेटे ,बहुएँ ,पोते -पोतियाँ ....कितना अच्छा लग रहा है ..उसनें मन ही मन सोचा ,कहीं नज़र न लग जाए मेरे परिवार को ।
उसके बाद बडे़ बेटे ने कहा ..चलो अब बहुत थक गए होंगे सब ,सब अपने अपने कमरों में आराम करते हैं ।शाम को फिर मिलेंगे । सुधा की समझ कुछ नही आया ,सोचने लगी पहले तो जब सब मिलते थे तब साथ बैठकर कितनी बातें करते थे रात देर तक कोई थकता ही
नहीं था । चलो ,शाम को इकट्ठे होगें सोचते हुए वो भी अपने कमरे में आ गई । उसकी आँखो को भी नीँद ने आ घेरा ।
माँ ...तुम्हारी चाय यहीं मँगवा ली है ,तुम यहीं आराम करो ...नीला ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा ...और सब कहाँ हैं ,मैंने पूछा ... सब नीचे हैं ..फिर बोली रात को फेमेली फोटो सेशन करेगें माँ ..अच्छी सी साडी़ पहन के तैयार होना माँ.....
रात को खाने के समय सबने अपने अपने कैमरे से फोटो लेना शुरु किया ....और फिर सब अपने.अपने सेल फोन में लगे शेयर करने ,सिलसिला शुरु हुआ ,किसके कितनें लाइक्स ,कितने शेयर ...किसे अच्छे कमेन्ट्स मिले ...किसी को भी एक दूसरे के साथ बैठकर भी बात करनें की फुरसत नहीं थी ....
सुधा मन ही मन सोच रही थी ....ये कैसा गेट टुगेदर ........इसे स्नेह मिलन तो नही कहा जा सकता ...
वो धीरे से कुर्सी से उठी ,और अपने कमरे की ओर चल दी .........आकर पलंग पर बैठ कर एक गहरी साँस ली कि अचानक उसका हाथ लगा ,टेबल पर रखा बैग नीचे गिर गया ...अदंर रखे गुजिया, मठरी ,सेव सब चूर चूर हो गए ........
शुभा मेहता
12oct 2017
वाह..... बहुत बड़िया और आज का यथार्थ तकनीकी युग की सच्चाई मां की गुजिया मठरी का ठीक उसके सपनों की तरह टूटना बिखरना उसके अन्तःमन की व्यथा दर्शाता है।जितनी सुन्दर कवियित्री है उतनी ही सुन्दर कथाकार है। खुश रह सुखी हो बहुत-.बहुत प्यार और आशीर्वाद तुझे और तेरी लेखनी को 😊😊😊😊😊👌👌👌👌👌😘😘😘😘👏👏👏👏
ReplyDeleteयथार्थ चित्रण कर गयी आपकी कसानी शुभा जी। मन को छूती,आधुनिक युग की पारिवारिक तस्वीर जीवंत हो गयी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी।
बहुत -बहुत धन्यवाद श्वेता जी ।
Deleteबहुत सुंदर भाव संयोजन आपकी रचना जो आजकल के परिवेश के सच है दिल को छू गयी।
ReplyDeleteधन्यवाद रितु जी
Deleteदिल को छू गयी बहुत अच्छी कहानी...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी ।
ReplyDeleteरुला दिया शुभा जी । वास्तव में अपनों के लिए टाइम कहाँ छोड़ा है इस सोशल मीडिया और डिजिटल क्रांति ने । बेहद मर्मस्पर्शी । नमस्कार ।।🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद राजेश जी ।
Deleteसुन्दर! डिजिटल गेट टुगेदर! माँ तो हमेशा माँ ही रहेगी, कथानक की कथावस्तु!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteअच्छी कहानी...
ReplyDeleteवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
धन्यवाद संजय जी । जी जरूर ।
Deleteबहुत बढ़िया यतार्थ को छूती कहानी। आज ऐसा ही गेट टुगेदर होता हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी ।
Deleteवर्तमान समय की सच्चाई को उजागर करती सार्थक और सटीक कहानी
ReplyDeleteबधाई