Thursday, 31 May 2018

प्रकृति...

प्रकृति का सानिध्य
कितना भला लगता है
हर-भरे विशाल वृक्षों के
बीच से गुजरना
दे जाता है...
  कितना सुकून मन को
   दू..र से आती आवाज़
    निर्मल झरनों की
    गहरे काले बादल
   साथ में बिजलियों का नर्तन
   डालियों से टपटप गिरती बूँदें
   चिडियों की चहचहाहट
   कितनी नैसर्गिक भाषाएँ..
  मेंढक भी टर्रा कर
   कराते हैं अहसास
   अपनी उपस्थिति का
  मोर ,कोयल ,पपीहा
   गाते सब राग मल्हार
    पर ...आने वाली पीढियों को
    क्या होगें ये नजा़रे
    मयस्सर..?
   क्यों नही ..कोशिश तो की जा सकती है
    तो चलिए..
   लेते हैं संकल्प
   उगाएगें सभी वृक्ष..
   करेंगे उनका जतन
  वृक्ष ,वर्षा, प्रकृति 
    होगें सभी समृद्ध...
    सब समृद्ध..।

शुभा मेहता
   30th May 2018
  

Tuesday, 22 May 2018

तपती दुपहरी..

जेठ की इस
  तपती दुपहरी में
हाल -बेहाल
  पसीने से लथपथ
   जब काम खत्म कर
   वो निकली बाहर
   घर जाने को
   बडी़ गरमी थी
   प्यास से गला
   सूखा.......
   घर पहुँचने की जल्दी थी
   वहाँ बच्चे कर रहे थे
    इंतजार उसका
    सोचा ,चलो रिक्षा कर लूँ
     फिर अचानक बच्चों की
     आवाज कान में गूँजी..
   "माँ ,आज लौटते में
    तरबूज ले आना
    गरमी बहुत है
    मजे से खाएंगे"
    और उसके कदम
    बढ़ उठे उधर
    जहाँ बैठे थे
    तरबूज वाले
    सोचा ,बच्चे कितने खुश होगें
    मैं तो पैदल ही
     पहुंच जाऊँगी ...
     पसीना पोंछ
     मुस्कुराई ...
     तरबूज ले
    चल दी घर की ओर ....माँँ जो थी ..।

.   शुभा मेहता 

  23May ,2018




     

Sunday, 6 May 2018

हद ...


कितना सरल होता है  
  दूसरों के लिए अच्छा
   बन जाना....
    बस सबका कहा करते चलो
    अपनी बात पर अड़ो नही
     गलत हो तो भी सह जाओ
     हाँ इंसा हो ,क्रोध भी आएगा
     पर जरा गरम होकर
    ठंडा हो जाना
    जरूरी नहीं कि
   सच्ची हो सभी बातें
    पर बोलने का यहाँ
   है मोल ही क्या
   तो बस ,बिना बोले
   ज़रा सा मुस्कुरा देना
    अगर हो बात कोई
    नापसंद हमें
   चुपचाप वहाँ से खिसक जाना
  कितना सरल होता है
   दूसरों के लिए अच्छा बन जाना ...
   अपनी अच्छाई की तारीफें पा लेना
   पर अब समझ आने लगा है सब
   ख्वामख्वाह अच्छा बनने के चक्कर में
   अपना जीवन यूँ ही गँवा रहे हैं हम
   शायद ,अब बुरे लगने लगे हैं
  क्योंकि अब नही रहते हाजिर
   पहले सभी काम कर दिया करते थे
   हँसते हँसते ...
    पर धीरे धीरे
    फायदा उठाने लगे लोग
    लादने लगे काम का बोझ
     और हम धीरे धीरे
    होने लगे दिल और दिमाग से बोझिल
     पीठ पीछे वो ही लोग
     हमें बेवकूफ समझते
      मजाक भी उडाते
      बस अब तो हद हो गई ........
     इन सभी के बीच
    कहाँ खो गया
      हमारा अस्तित्व...?
     बस अब मन में ठान लिया
     अब और नही.....
     जीना है अब हमें
     कुछ अपने लिए भी
    शायद इसलिए
     बुरे लगने लगे है
     पर खुश है हम ...
    अन्तकरण से ..।
       
शुभा मेहता ..
  6th May 2018
 

Tuesday, 1 May 2018

इंतजार ...

इंतजार , सभी को होता है
किसी न किसी चीज़ का
  प्रेमी को प्रेयसी का
   परिक्षार्थी को परिणाम का
    कृषक को वर्षा का
     बच्चों को छुट्टियों का
     कलाकार को प्रसिद्धि का
      भूखे को भोजन का
        बस ऐसे ही कट जाता है जीवन
        इंतजार करते करते
       और फिर चुपके चुपके
        आने लगता है वो
        जिसका किसी को इंतजार नही होता
        अपनी झोली और डंडा लेकर
         देता जाता है बालों में सफेदी
      माथे पर लकीरें
       जिन्हें छुपाने की भरसक
          कोशिश करते हैं हम
           सच पर चढाते है
         मुलम्मा झूठ का
         रंग -रोगन से ..।

शुभा मेहता