प्रकृति का सानिध्य
कितना भला लगता है
हर-भरे विशाल वृक्षों के
बीच से गुजरना
दे जाता है...
कितना सुकून मन को
दू..र से आती आवाज़
निर्मल झरनों की
गहरे काले बादल
साथ में बिजलियों का नर्तन
डालियों से टपटप गिरती बूँदें
चिडियों की चहचहाहट
कितनी नैसर्गिक भाषाएँ..
मेंढक भी टर्रा कर
कराते हैं अहसास
अपनी उपस्थिति का
मोर ,कोयल ,पपीहा
गाते सब राग मल्हार
पर ...आने वाली पीढियों को
क्या होगें ये नजा़रे
मयस्सर..?
क्यों नही ..कोशिश तो की जा सकती है
तो चलिए..
लेते हैं संकल्प
उगाएगें सभी वृक्ष..
करेंगे उनका जतन
वृक्ष ,वर्षा, प्रकृति
होगें सभी समृद्ध...
सब समृद्ध..।
शुभा मेहता
30th May 2018