इक बीज के हृदयतल में
बसता है इक छोटा अंकुर
अलसाया सा....
सोता हुआ.....
उठो ,उठो ..
रवि नें आकर चुपके से कहा
उठो ,उठो ....
वर्षा की बूँदों नें
आवाज़ लगाई ....
सुना उसने ..
सोचने लगा ..
इस बीज के बाहर
कितना सुंदर जग होगा !!
वर्षा की बूँदों से
सूरज की किरनों से
इक बीज अंकुरित हुआ
जग को जिलाने ..
छाँव दिलाने.।
शुभा मेहता