Wednesday, 20 June 2018

अंकुर

इक बीज के हृदयतल में
   बसता है इक छोटा अंकुर
    अलसाया सा....
    सोता हुआ.....
     उठो ,उठो ..
     रवि नें आकर चुपके से कहा
      उठो ,उठो ....
     वर्षा की बूँदों नें
      आवाज़ लगाई ....
       सुना उसने ..
       सोचने लगा ..
      इस बीज के बाहर
     कितना सुंदर जग होगा !!
     वर्षा की बूँदों से
      सूरज की किरनों से
       इक बीज अंकुरित हुआ
     जग को जिलाने ..
      छाँव दिलाने.।

   शुभा मेहता

Saturday, 16 June 2018

अंधकार

अँधेरा मन में है
   दिया जलाया मंदिर में
    मन का अँधेरा दूर कर
    जग प्रकाशित हो जाएगा ।
      नफरत की आग मन में लिए
      क्यों बैठा सत्संग में
        मन से तू ये आग बुझा
        ये जग सुंदर हो जाएगा ।

Sunday, 10 June 2018

मेघा

  मन महक उठा
  माटी की सौंधी खुशबू से
   बादलों के खुले नलों से
   जब बूँदें गिरी  अवनि पर
   भिगो गई सूखी माटी को
   कोई भी इत्र इस खुशबू को
   मात नही दे सकता ।
    मन महक उठा
     खिल उठी सारी बगिया
      पंछी गाते....
     गुनगुनाते...
    चिडिया चहकचहक कर
     पानी में नहाती
     गरमी से राहत पाती ।
  
    शुभा मेहता..
    10 June,2018
   
   

  

Friday, 8 June 2018

दहलीज़

  भोर से ही आज
   चित्त कुछ उदास था
   याद मायके की
     सता रही थी
     वो पापा का दुलार
      मम्मी का प्यार
     भैया का झगड़ा
     सभी कुछ तो
     अभी कुछ दिनों
      पहले ही तो आई थी
      छोड़ उस आँगन को
      इस दहलीज़ पर ...
      तभी खाने की टेबल पर
      कुछ हंगामा सा हो गया
       किसी ने खाना छोडा
       किसी ने उसको कोसा
        बात तो ज़रा सी थी
        सब्जी में थोड़ी खारास थी
        पर कैसे  ? न पूछा किसीने ..
        आँख की दहलीज़ से
          अश्रु की इक बूँद
         जा गिरी थी उसमें..।

   शुभा मेहता