Tuesday, 31 December 2019
अगवानी
Saturday, 14 December 2019
चाय -दर्शन
Thursday, 12 December 2019
अलाव
Thursday, 5 December 2019
हालात
Sunday, 1 December 2019
बिटिया
Tuesday, 26 November 2019
शहर
Friday, 22 November 2019
बधाई.....
Monday, 11 November 2019
बाल दिवस
Saturday, 19 October 2019
दीवाली
Tuesday, 24 September 2019
सुर की महिमा ...
सुर से जीवन
जीवन से सुर
नाद ब्रह्म ओंकार सुर
सुर की महिमा क्या गाऊँ मैं
पाऊँ सारी सृष्टि मेंं सुर
नदियों की कलकल मेंं सुर
पंछी की चीं-चीं मेंं सुर
भौंरे की गुंजन मेंं सुर
बर्षा की बूंदों मेंं सुर
मंदिर के घंटों मेंं सुर
बालक के हँसने मेंं सुर ..।
जब लगता है गीत शब्द मेंं
सम् उपसर्ग.....
बन जाता संगीत
सात सुरों का संगम है ये
शुद्ध -विकृत मिल बनते बारह
श्रुतियाँ हैं बाईस.....
स्वर और श्रुति मेंं भेद है इतना
जितना सर्प और कुंडली मेंं
जब फैले है सुरों का जादू
मन आनंदित हो जाता
सुर की महिमा क्या गाऊँ मैं
परम लोक ले जाए सुर ।
शुभा मेहता
25thSept. 2019
Friday, 13 September 2019
मेरी हिंदी .....
हिंदी मेरी आन है
हिंदी मेरी शान है
हे मातृभाषा मेरी
तुझको मेरा प्रणाम है
कितनी मीठी ,
कितनी सहज
शब्दों का भंडार है
अलंकारों से शोभित होती
जैसे तिय ललार बेंदी
गर्व से कहती हूँ
हिंदी लिखती हूँ
हिंदी बोलती हूँ ..
नमन है तुझको 🙏।
बस यूँ ही .....मन की बात ...
( 1)
पागल प्रेम
याद का मोती बनाए
आँख के तले ।
(2)
. झूठा कागा
पिया नहीं आए
बरसी अँखियाँ ।
( 3)
धूप ,छाँव
कोयल का राग
मेघा आए ।
(4)
चाँदनी बैठी
वृक्ष के नीचे
मुख देखे चंदा का ।
(5)
टप-टप ,टिप -टिप
बूँदों का राग
मन को भाए ।
शुभा मेहता .
Tuesday, 10 September 2019
खा़मोश बचपन
खा़मोश -सा बैठा
रहता हरदम
कहाँ गए रे
बचपन तेरे
वो खेल-कूद
वो उछल-कूद
शाला मेंं शिक्षक
घर मेंं माता-पिता ..
सबकी हैं ख्वाहिशें
किस-किस की ख्वाहिशें
पूरी करे ये बचपन
भारी बस्तों के
बोझ तले दबा
कंधों और पीठ दर्द की
फरियाद करता बचपन
घर से शाला ,
शाला से घर
गृहकार्य के बोझ से
लदा बचपन
ऊपर से ये क्लास
वो क्लास ..
आखिर क्या-क्या
करे ये बचपन
कोई ना पूछे
चाहे क्या , तू बचपन
अभी से दिमागी परेशानी से
घिरने लगा तू
कैसा हो गया है रे तू
बचपन ....... ।
शुभा मेहता
10th Sept .2019
Wednesday, 14 August 2019
तस्वीर
पता है न ....
एक दिन तुम भी
टँग जाओगे
तस्वीर में
घर के किसी
कोने में
किसी खूँटी पर ..
इसीलिए .....
प्रेम बीज बोओ
उन्हें प्रेम से पालो
सींचो प्रेम से
प्रेम फल पाओगे
क्या धरा है
झगड़े -लड़ाई में
प्रेम बोओगे
.सबके दिलों मेंं
रह जाओगे ।
शुभा मेहता
Tuesday, 6 August 2019
प्रकृति
छत पर ठंडे बिछौने पर लेट
खुला आसमान निहारना
कितना सुखद !
चलते हुए बादल ..
कभी लगते गाय से
कभी खरगोश से
अलग -अलग आकृतियां
बनती -बिगडती
घंटों ताका करती
और वो चाँद ..
कितना सुंदर
माँ कहती देखो ..
चाँद में बैठकर
बुढिया चरखा कात रही
उस बुढिया को ढूँढती
अलग-अलग कोंण से
ढूँढते -ढूँढते कब आँख लग जाती
पता ही नहीं चलता ..
छत पर ठंडे बिछौने पर .......।
शुभा मेहता
29th August ,2019
Monday, 29 July 2019
मिठास
कितने खुश रहते थे हम सब
मिल जाती थी खुशियाँ
छोटी-छोटी बातों में
मिल-बाँट के खाते
बिन खिलौने भी
कितने ही खेल खेलते
कभी छोटे-छोटे
पत्थर के गोल -गोल
टुकड़ों से ....
कभी इमली के बीजों से
कभी माँ की चूड़ियों से
सब के बीच होती थी
एक ही गेंद ...
फिर भी .....
कितने खुश रहते थे हम सब ।
आज चाहे कितनी भी मिठाइयाँ हों
तरह-तरह के फल .....
पर जो मिठास माँ के बनाएं
चीनी के पराँठे में थी
वो इन सब में कहाँ ..।
शुभा मेहता
30 July ,2019
Monday, 8 July 2019
सुबह ....
(1)
चूडियों की खनक
दूध वाले की घंटी
चाय की महक
सुबह हो गई ....।
( 2)
चिडियों की चहचहाहट
बच्चों और मम्मी की भागमभाग
कूछ भूले तो नहीं ?
बस्ता ठीक से भरा ?
टिफिन मेंं क्या रखा ?
चिल्लम -पुकार
सुबह हो गई ...।
(3)
मंदिर मेंं घंटी की आवाज़
मीठे भजन का नाद
जाग -जाग जदुनंदन प्यारे ...
धूप की मीठी सुगंध
प्रसाद की महक
सुबह हो गई ..।
शुभा मेहता
7th July 2019
Wednesday, 3 July 2019
किताब ....(किताबें हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं )
इक सुंदर से कवर वाली किताब
जैसे ही पढने को खोली
मैंं तो उसमें खो ही गई ...
शायद ही कोई ढूँढ पाएगा मुझे
मेरी कुर्सी , मेरा घर
मेरा गाँव .......
सब कुछ पीछे छूट गया
रानी के साथ घूमी-फिरी
राजकुमारी के साथ खेली
राजा के साथ भोजन किया
मछलियों के साथ समुद्र की यात्रा की
कुछ दोस्त भी बने
जिनका दुख-सुख साथ मेंं बाँटा
पर जैसे ही आखिरी पन्ना खत्म हुआ
फिर वही कुर्सी ,वही घर ,वही गांव
पर मन के अंदर रह गई सुनहरी यादें
एक सुकून ........।
शुभा मेहता
3rd july ,2019
Tuesday, 25 June 2019
बारिश
बारिश की इक बूँद हूँ मैं
छोटी -सी ,नन्ही -सी
एक से एक जब मिल जाएँ
घट भर जाए ......
प्यास बुझाए ....
मुझ बिन सूना
सब संसार
जतन करो ..
जतन से ...।
शुभा मेहता
25 th June 2019
Tuesday, 11 June 2019
इंसानियत
इंसान ही मर चुका जब
कहाँ से आएगी इंसानियत ?
हैवान बन गया वो
हैवानियत ही हैवानियत ..
गुड्डे -गुडि़या खेल -खिलौने
खेलने थे जब ...
नोंच -नोंच कर खा गए
इंसान के खोल में
गिद्ध ,चील ,कौवे
कहाँ का इंसान
और कहाँ की इंसानियत ।
शुभा मेहता 12th,July 2019
Monday, 27 May 2019
रानी (लघुकथा )
छोटी सी ,प्यारी सी गुडिया सी थी वो ,नाम था उसका रानी । माँ ,पापा ,दादा ,दादी सबकी दुलारी । हमेशा मुस्कुराती रहती और बहुत मीठा बोलती थी ।
बहुत बडा सा घर था उनका ,न जाने कितने छोटे -बडे़ कमरे थे । घर के नीचे लाइन से आठ ;दस दुकानें थी ,जो सभी किराए पर दी हुई थी ।
रानी रोज उन दुकानों का चक्कर लगाती ,और जब दुकानदार आदर से उसे हाथ जोड नमस्ते करते ,तब वो अपने आप को किसी राजकुमारी से कम न समझती ।
उन सभी दुकानों में एक दुकान किराने की भी थी ,रानी को वहाँ बैठना सबसे अच्छा लगता था । वहाँ बैठकर वह लोगों को चीजें खरीदने देखती थी ।
रानी देखती ,कि कुछ लोग रोज बहुत थोडी थोडी चीजें खरीदते थे एक या दो रुपये में शक्कर ,चाय ,दाल थोडा सा तेल । वो दुकान वाले चाचाजी से पूछती ,ये लोग रोज इत्ती -इत्ती सी चीजें क्यों लेते हैं एक साथ क्यों नहीं लेते ..तब दुकान वाले चाचाजी उससे कहते ..बेटा ये रोज़ कमाकर रोज़ खाने वाले लोग है बहुत गरीब हैं ।
रानी को तब समझ नहीं आता ये गरीब क्या होता है ?
समय गुज़रा और देखते-देखते रानी सयानी हो गई ,पढाई पूरी होते -होते उसका विवाह भी अच्छे घर में निश्चित हो गया ,और रानी ब्याह कर ससुराल चली गई । कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा फिर अचानक एक दिन जोरों की बाढ़ आई और बहा ले गई उसके घरोंदे को , इतने जतन से बसाया घर मिनटों में तहस -नहस । पूरे घर का सामान बाढ़ की भेंट चढ़ गया । रानी नें हिम्मत न हारी ,अपने पति और परिवार वालों के साथ फिर से लगन व मेहनत से घरौंदा बनाया । आराम से गृहस्थी चलनें लगी । इस बीच रानी दो प्यारे -प्यारे बच्चों की माँ बन गई । समय पंख लगाकर उडने लगा ।
अचानक फिर से जोरों का तूफान आया ,रानी का जीवन फिर से हिचकोले खाने लगा । और इस बार तूफान नें सब कुछ तहस -नहस कर दिया ।
कुछ समझ नहीं आ रहा था करें तो क्या करें ।
बच्चे भी अब बडे़ हो चले थे । उनकी शिक्षा में कोई कमी नहीं आनी चाहिए ,यह सोच रानी अपने पति के साथ फिर से हिम्मत के साथ जूझ पडी ,अपने घरौंदे को फिर से बनाने में । उसे भरोसा था ,कल जरूर अच्छा होगा ।
अब उसे समझ आ गया था कि गरीबी क्या होती है ...,जब वो सौ रुपये में शक्कर ,दाल थोडा सा तेल लाती ,आँख से दो अश्रु बिंदु आनायास ही निकल पड़ते ।
शुभा मेहता
26th June ,2019
Wednesday, 22 May 2019
आओ ,,मिलकर वृक्ष लगाएं...
चलो .....,कुछ अच्छा करते हैं
सब मिलकर ,कुछ अच्छा करते हैं
ले आओ कुछ बीज
वृक्षारोपण करते हैं
चलो ..कुछ अच्छा करते हैं
वट ,पीपल ,नीम ,गुलमोहर
आम,अनार और अमरूद
कहीं बिछा दे ,दूब हरी सी
जो लगे हरे गलीचे सी
धरती माँ को खूब सजा कर
दुल्हन सा बनाएं .
चलो ,कुछ अच्छा करते हैं ।
शुभा मेहता
25th May ,2019
Wednesday, 8 May 2019
गुलमोहर
सडक के उस पार
गली के छोर पर
हुआ करते थे
दो गुलमोहर ...
बडे़ मनोहर लगते थे मुझे
जब लद जाया करते थे
फूलों से .....
एक केसरी
और दूसरा पीला
मेरे मन को बहुत भाते थे
खिडकी से बस दूर से निहारा करती
वृक्षों के नीचे खिरे हुए फूलों की
चादर सी बिछ जाती थी जब
मानो हो मखमली कालीन
मन करता था जाकर
पग फैलाकर
कर लूँ क्षण आराम ..।
पर अब वो नहीं हैं
काट डाला
कुछ इंसानों ने मिलकर
नहीं दिखता वो
मखमली कालीन
क्योंकि वहाँ तो
तिमंजिला मकान बन गया है ...।
शुभा मेहता
9th May ,2019
Wednesday, 1 May 2019
टिफिन
ऑफिस में मित्रों के साथ
लंच टाइम में
जब भी टिफिन
खोलकर बैठती
सबकी नज़रें
मेरे खाने की
ओर ही होती
रोटी,सब्जी
दाल ,चावल
अचार ,पापड
दही ,मिठाई
कितना कुछ ..
साथी कहते , लगता है
माँ बनाती है तुम्हारा टिफिन
तभी इतना स्वाद
होता है खाने में
माँ से जब भी मैं कहती
माँ इतना कुछ
क्यों रखती हो
इतना तो समय भी नहीं होता
इतना खा भी नहीं पाती
माँ हँस कर कहती
सबको खिलाया कर
कहती ,अरे ...
क्यों करती हो इतना काम
पेट के लिए ही न
और मैं निरुत्तर हो जाती
मित्र रोज नई चीज की
. फरमाइश करते
और माँ बडे प्यार से बनाती
साथी कहते बडे नसीबों वाली हो
सच ही तो है
माँ तो बस माँ ही होती है .....!!
माँ को सादर सर्मपित ...
शुभा मेहता
8thMay ,2019
Saturday, 27 April 2019
चवन्नी (लघुकथा)
माँ ,मुझे सौ रुपये चाहिये ,कलर्स लेने हैं कल ड्रॉइंग की परीक्षा है ,। जा ,मेरे पर्स में से ले ले , मैं खाना बना रही हूँ , मैंने रोटी बेलते हुए रानी से कहा ।
माँ ,तुम ये चवन्नी अपने पर्स में हमेशा क्यों रखती हो ?रानी नें पैसे निकालते हुए पूछा ।
बेटा इस चवन्नी का मेरे जीवन में बहुत महत्व है ,बहुत बडी सीख दी है इस चवन्नी ने मुझे ..
बताओ न माँ ..भला चवन्नी से क्या सीख मिली आपको ....ठीक है बताती हूँ ,मैंनें गैस बंद करते हुए कहा ....
बात उन दिनों की है जब मैं छठी कक्षा में पढती थी । हम एक संयुक्त परिवार में रहते थे । स्कूल के लिए हमें घर से टिफिन मिलता था जिसमें पराँठा और अचार मिलता था रोज ही । हमारे स्कूल के अंदर एक चाट के ठेले वाला भी आया करता था ,जो समोसे ,पापड़ी चाट लाता था ,चवन्नी मेंं मिलती थी एक प्लेट । बहुत सी लडकियां खाने की छुट्टी में ठेले के इर्दगिर्द खडी होकर मजे ले कर खाया करती थी ।मन तो हमारा भी बहुत करता था ,पर हमें तो बस पराठे आचार से ही संतोष करना पडता था ।
एक दिन मेरी एक सहेली बोली ,तू क्या रोज -रोज यही खाती है ,चल आज समोसे खाने चल । मैं बोली ,मेरे पास पैसे नही है ..उसनें कहा चल मै खिलाती हूँ तुझको ...
मन तो होता ही था ,मैं भी चल दी उसके साथ ..
वाह क्या आनंद आया था ..पर सारा आनंद तब फुर्र हो गया जब बाद मेंं उसने कहा कि कल मेरी चवन्नी वापस करना । मैं तो जैसे आसमान से गिरी । घर पर जाकर कैसे कहूँगी ...। कोस रही थी अपने चटोरेपन को ।
खैर दो -तीन दिन तो उससे झूठ बोलती रही कि भूल गई ,पर कितने दिन । तीसरे दिन तो उसने धमकी दे डाली ,कि कल नहीं लाई तो वो मैडम से कह देगी
अब तो कोई चारा नहीं था ,डरते-डरते माँ को बताया ,
पहले तो पडी डाँट,फिर माँ ने पैसे देते हुए समझाया कि आगे से ऐसा मत करना ।
मैंने खुशी -खुशी चवन्नी अपने बस्ते मेंं संभाल कर रखी ,और सोचने लगी कि कल जाते ही चवन्नी दे दूंगी ।
ठीक ही तो है माँ , इसमें आपने सबक क्या सीखा ।
सीधे सीधे किस्सा खत्म । रानी ने मुझे बीच में ही टोका ।
नहीं बेटा,असल बात तो अब शुरु होती है ।
तो फिर क्या हुआ ?रानी अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी ।
होना क्या था बेटा ,मैंने भी मन ही मन उसे चिढाने का सोचा । स्कूल जाते ही बोली ..अरे आज भी मैं तेरे पैसे भूल गई ..वो बोली चल मैडम के पास ..मैं फिर उसे चिढाते हुए बोली , नहीं आती बोल ...।
हमारी ये बहस चल ही रही थी ,तभी हमारी मैडम ने क्लास में प्रवेश किया ।
हाजिरी के बाद आखिर उसनें मैडम से कह ही दिया कि ये मेरी चवन्नी वापस नहीं कर रही । मैं ने झट से कहा नहीं मैडम मैं दे रही हूँ । और अपना बस्ता खोलकर चवन्नी निकालने लगी ,पर चवन्नी मिली नहीं ,मैंने सारा बस्ता ढूँढ मारा ,अब तो मैं रुआंसी हो गई ,मैडम से कहा मैं लाई थी पर जाने कहाँ गई ।
मेरी बात मानने को कोई तैयार नहीं था ,क्योंकि थोड़ी देर पहले मैंनें ही कहा था कि ,मैं नहीं लाई ।
तभी मेरे पीछे बैठी मेरी सहपाठिनी को नीचे चवन्नी पडी दिखाई दी ,वो चिल्लाई ..वो रही......।
और मैंनें सबके सामने उसे चवन्नी लौटाई ।
शायद बस्ता खोलते वक्त गिर गई होगी ।
चवन्नी से मैं ने यही सबक सीखा कि ...कभी किसी से उधार नहीं लेना ,वो भी स्वाद के लिए ?कभी नही ।
पैसों के मामले में कभी मजाक मत करना। लेने के देने पड सकते है ।
बात तो आपकी सही है माँ ,रानी मुस्कुराती हुई कलर्स लेने चली गई ।
शुभा मेहता
1st May ,2019
Wednesday, 24 April 2019
वेदना
खुला गगन था
बादल थे
मेघधनुष भी था
पानी था
कलकल बहता
बस नही था कोई
तो बस वो तुम थे
पर ,यादों की चादर थी
कुछ धुंधली ,कुछ उजली
चादर ओढ़ उनमें झाँकने की
कोशिश करती मैं थी
कह कर गए तो थे
लौटूंगा ....
बरसों बीते
व्यर्थ इंतजार
कहाँ छुपाऊँ
मन की वेदना ...
शायद ,इसीलिए
यादों की चादर से
ढाँप लेती हूँ खुद को ।
शुभा मेहता
25th April ,2019
Sunday, 21 April 2019
जननी ...
सुनो...
मेरे बच्चों .......
ये कचरे का ढेर हटाओ..
ये थैलियां ,प्लास्टिक की
हटाओ.......
दम घुट रहा है ...
साँस रुंध चली है
क्या मार ही डालोगे ?
माँ के साथ ऐसा बर्ताव?
उफ ....कुछ तो ख्याल करो
सोचो , कैसे जी पाओगे
तुम ,और तुम्हारी आने वाली पीढियां
मुझे गंदा करके
नदियों को मैला करके
क्या होगा हासिल ?
शायद तुम अभी
समझ नहीं पा रहे
क्या होगा भविष्य
आने वाली पीढियों का
न देख पाएगी
कलकल झरनें ,
बहती नदियां
इसी लिए कह रही हूँ
वक्त है अभी भी
संभल जाओ मेरे बच्चों
यही एक माँ की अरज है .....।
विश्व पृथ्वी दिवस पर धरती माँ की अरज ..
शुभा मेहता
22nd April ,2019
Saturday, 6 April 2019
खुशियाँ ....
मुफ्त ....मुफ्त ..मुफ्त ....
खुशियाँ लो ...
और बाँटो..
सारे जहाँ को
कोई दाम नहीं
बस थोड़ा सा प्रेम
थोड़ी सी ममता
थोड़ी सी करुणा
बस इतना ही . ..
बस दो इंच खोल अधरों को
ज़रा मुस्कुरा दो .....
वैसे तो लेने
मुफ्त की चीज़
कैसे दौड़ते हो
धक्का-मुक्की
करते हो ...
नफरत और घृणा का तो
दाम चुकाना पड़ता है
किसी की जान जाती है
जलता किसी का आशियाना
क्या हासिल होता है
कुछ पता नहीं
मुफ्त ..मुफ्त ..मुफ्त
खुशियाँ लो.....।
शुभा मेहता
7th April ,2010
Tuesday, 12 March 2019
कब आओगे श्याम
कब आओगे श्याम तुम ,कब आओगे
बाट निहारें सभी गोपिया
कब आओगे श्याम ....
कितने दिन यूँ बीत गए हैं
छोड हमें क्यों चले गए तुम
खोज खबर भी ना ली ।
दूध -दही से भरी मटुकियाँ
कब फोड़ोगे आकर ?
छीके माखन भी रखा है
भोग लगाओ आकर ।
कब कदंब की डाल बैठकर
मुरली मधुर सुनाओगे
विरह की मारी सभी गोपियाँ
सुध-बुध भूल गई हैं
अब तो होली भी आ गई कान्हा....
आकर रास रचा जाओ
कब आओगे ......।
शुभा मेहता
13th March ,2019
Friday, 15 February 2019
हो..ली.
ये कैसी होली हो ,ली
लहू छिटका चहुँ ओर
मेरे वीर जवानों का
कई रंग -बदरंग हुए
किसी की गोद उजड़ी
किसी का सुहाग
बच्चों ने खोए
पालनहार ..
वीर शहीदों को
नमन.....🙏
Wednesday, 30 January 2019
याद
याद है तुम्हें जब पहली बार
कंकू भरे पैरों से तुम आई थी घर में
पायल की रुनझुन कितनी मनमोहक थी
और तुम्हारे नाजुक से पैर
मैं तो बस एकटक देखता ही रह गया ठगा -सा
कितनी खूबसूरत थी तुम .....!
याद है न तुम्हें वो लम्हें
घर का हर कोना
तुम्हारे आने से महक उठा था
और मैं ,तुम्हें पाकर सातवें आसमान पर उड रहा
समय बीता ...हमनें पाई -पाई जोडकर
एक आशियाना बनाया
"अपना घर".....
याद है न ?
अब डाइनिंग टेबल पर बैठने वाले
हम चार लोग थे
कितना अच्छा लगता था
साथ बैठकर खाना ,बातें करना
हँसना ,हँसाना ,रूठना ,मनाना
बच्चों की बीमारी में
रात-रात भर जागना ..
उन्हें पढाना -लिखाना
और ये सब करते -करते
तुम्हारे कोमल पैरों की
फटने लगी थी बिबाइयाँ
और मैं बच्चों को अच्छा खिलानें और
पढानें के चक्कर में
लगा रहता दिन भर कामों में
हमारे लिए समय ही न रहा
याद है न तुम्हें ..
बोलो न ...
मैं भी कितना पागल हूँ
कभी तस्वीरेँ भी बोला करती हैं भला
वैसे अच्छा ही हुआ
तुम जल्दी चली गई
वरना सह न पाती
. आज डाइनिंग टेबल पर
मेरे लिए कोई कुर्सी खाली नहीं
"अपना घर"पराया सा हो गया ..।
शुभा मेहता
31st January ,2019