ये जिंदगी ......
नरम-नरम ,मीठी -मीठी
कभी वनीला सी ,
कभी चॉकलेट सी
कभी अनानास सी
तो कभी नारंगी सी खट्टी -मीठी
धीरे -धीरे स्वाद जीभ में घुलाती सी
अभी देखा था
कुछ दिन पहले
एक छोटा बच्चा
कितने मजे से
चख रहा था स्वाद इसका
हाथ में लिए
एक नारंगी केंडी
रस बहकर आ गया था
कोहनी तक ...
जीभ से चाटकर
कितना खुश हो रहा था
तभी उसकी मम्मी नें
जो़र से डाँटा ....
क्या कर रहे हो
खानें का सलीका नहीं ..
बेचारा बच्चा ,सहम सा गया
गलती अपनी समझ न पाया
सोचा ,मैं तो आंंनद ले रहा था
अपनी तरह से ..
बस वही से शुरुआत हुई
बच्चा अब हर बात में डरता है
कहीं कोई भूल न हो जाए
और फिर क्या..
सलीके सीखने में ही
उम्र गुजर जाती है
आइसक्रीम आधे में ही पिघलकर
जमीन पर गिर जाती है ।
शुभा मेहता
21th Jan ,2020
Wah majaa aa gya kya baat hai bahut bahut sahi jindagi thodi meethi thodi khatti par hoti bahut swadisht hai bas najariya ka farq hota hai bacchon ke man mashtishk ka bahut accha vishleshan sach me bahut umda aur bahut saral shabdo ki mala se goonth kar bnai gyi kavita 👏👏👏👏😘😘😘😘😘👌👌👌👌😊😊😊😊😊💐💐💐💐💐
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteऔर फिर क्या..
ReplyDeleteसलीके सीखने में ही
उम्र गुजर जाती है
आइसक्रीम आधे में ही पिघलकर
जमीन पर गिर जाती है
बहुत ही सुंदर रचना,कवि की पारखी नजरों ने एक छोटी सी घटना से जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई से रूबरू करा दिया कि -" सलीके सीखने में ही उम्र गुजर जाती हैं और हम जीवन का असली आनंद तो ले ही नहीं पाते हैं " लाज़बाब ,सादर नमन आपको शुभा जी
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी ।
Deleteबहुत ही सुन्दर... सारगर्भित और सटीक।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
DeleteWaah ma waah <3 <3
ReplyDeleteधन्यवाद बच्चे ।
Deleteबहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी ।
Deleteशब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteजी ,जरूर ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-01-2020) को "ऐ जिंदगी तेरी हर बात से डर लगता है"(चर्चा अंक - 3597) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता लागुरी 'अनु '
बहुत-बहुत धन्यवाद अनु जी ।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना सखी
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteवाह शुभा जी जीवन के इतने बड़े सत्य को आपने बच्चे और आइसक्रीम के माध्यम से इतनी सुंदर ढंग से बताया कैसे हम झुठे सलीके के चक्कर में बच्चों से उनका बचपना छीन लेते हैं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
धन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सराहनीय सुंदर
ReplyDelete