मेरे लिए वो महज
कागज का टुकडा नहीं था
दिल निकाल कर रख दिया था मानों
एक -एक शब्द प्रेम रस में पग़ा था
प्रेम की ही स्याही थी
कलम भी प्रेम की...
शब्दों को प्रेम रस में
डुबो -डुबो कर
बड़े जतन से
उस कागज पर
सजाया था
पता नहीं
तुमने पढा भी
या नहीं
या उडा दिया
चिंदी-चिंदी
हवा का रुख
जिधर था ......
शुभा मेहता
23rd Aug ,2023
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अरुण जी
Deleteप्रेम के अहसास की खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति जी ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा ॥
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दीपक जी
Deleteबहुत बढ़िया, शुभा दी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति
Deleteप्रेम की सुन्दर पाती ... हवा में भी खुशबू बिखेर रही होगी ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी
ReplyDeleteप्रेम को प्रेम की चाह होती है। बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteदिलकश!
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह क्या बात कही है कि ''प्रेम की ही स्याही थी
ReplyDeleteकलम भी प्रेम की...
शब्दों को प्रेम रस में
डुबो -डुबो कर
बड़े जतन से
उस कागज पर
सजाया था '' ...शानदार रचना शुभा जी
एक -एक शब्द प्रेम रस में पग़ा था
ReplyDeleteप्रेम की ही स्याही थी
कलम भी प्रेम की...
शब्दों को प्रेम रस में
डुबो -डुबो कर
बड़े जतन से
उस कागज पर
सजाया था
प्रेम से सजी पाती!!!
वाह!!!!!
अर्थपूर्ण सुन्दर कविता.
ReplyDeleteअनुपम
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