मुट्ठी में बंध रेत
खिसक रही है
धीरे -धीरे
बना रही है
कुछ निशाँ
शायद अपना नाम
लिख रही है
पढ़ रही हैं उसे
अचानक , तेज
लहर ने आकर
मिटा दिया
वो नाम , वो निशाँ
कुछ न था शेष
खोली मुट्ठी
तो पाया
हाथ रीता
न नाम न निशाँ ।
Wednesday 30 March 2016
यथार्थ
Tuesday 22 March 2016
होली
Wednesday 16 March 2016
यादें
यादें कभी भी
चुपके से आकर
गुदगुदाती हैं मन को
रखा है सहेज कर
दिल के कोनों की
किसी बंद अलमारी मे
सहसा खोल दरवाज़ा
हौले से झाँक लेती हैं
और कभी दे जाती हैं
होठों पर एक मधुर मुस्कान
कभी अकेले में
खिलखिलाहट
कोई खट्टी कोई मीठी
औऱ कभी भिगो जाती हैं
कपोलों को अश्रु धार से
यादें ........
जिदंगी
सुबह -सुबह आज
कोई मिली मुझे
मैंने देखा उसे
बड़ी खूबसूरत सी
सजी -सँवरी सी
ग़ौर से देखा मैंने
कोशिश की पहचानने की
शायद , कहीं देखा है
सोचा , चलो उसी से
पूछते हैं
मैंने पूछा कौन हो तुम ?
लगती तो पहचानी सी हो
बोली , अरे मैं ज़िन्दगी हूँ
तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ
पर तुमने तो जैसे मुझे
जीना ही छोड़ दिया
कहाँ है वो ख़ुशी
कुछ उदासीन से
रहते हो अरे ,
जब तक मै हूँ साथ
हँस लो , मेरा लुत्फ़ उठा लो ।
शुभा मेहता
Thursday 3 March 2016
अभिलाषा
माँ , अभी तो हूँ मैं
छोटी सी , नन्ही सी
फिर भी नन्हे ये हाथ मेरे
कभी ढोते बोझा
और कभी होता
इन हाथों में मेरे
झाड़ू या पोंछा
करती हूँ दिनभर
बस यही सब
थकती तो हूँ मैं
पर मुझे कहाँ आराम
देखती हूँ जब
हमउम्र बच्चों को
खेलते ,-कूदते
मेरा भी
मन करता है
चाहे हूँ मैं
मजदूर की बेटी
पर मन तो है न
मेरे भी।पास
चाहता है वो भी
मैं भी खेलूँ -कूदूँ
हों मेरे पास भी
कॉपी -किताब
सुंदर सी पेंसिल
ले जिससे कोई
शब्द आकार
देखती हूँ मैं भी ये
सपना सलोना
दिलवा दो न
मुझे भी माँ ....
कॉपी -किताब
भेजो न मुझे भी
स्कूल तुम माँ
पढ़ना है मुझे भी
बनना है कुछ
नाम करना है
रोशन तेरा ।