मुझे साफ ,चमकता रंग बिरंगे मसालों से सजा मसालेदान बहुत अच्छा लगता था । हर सप्ताह धो कर चमकाती ,फिर मसालों से सजा मसालेदान देखकर बडी खुश होती ।
मिर्च, धनिया ,हल्दी रंग-बिरंगे मसाले .....
लेकिन जब भी अच्छी तरह साफ करती ,मसाले भरती
अक्सर ही मसालेदान या तो हडबडी में टेढा हो जाता और सारे मसाले आपस में गड्डमड्ड.... .बहुत बुरा लगता
फिर मैंनें भी बस थोड़े-थोड़े मसाले ही निकालने शुरु कर दिए और फिर ये आदत में शुमार हो गया ।
मैं समझती हूँ कई घरों में इस तरह की (बेतुकी)बातें होती होगीं उनका उदभव भी शायद ऐसे ही हुआ होगा ।...अब जिसे असलियत पता न हो उसे तो ये बात बेतुकी ही लगेगी .न कि भला कोई इतने कम मसाले क्यों निकालेगा ..
है न ......।
रोचक
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी
Deleteप्रिय श्वेता मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद में स्थान देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी
Deleteअहा , घर में कल ही हुई यह बात। लापरवाही में उठाने पर मसाले गड्डी होगये। बहू ने महादानी बदल दी
ReplyDeleteऐसा कभी न कभी सभी के साथ होता है ...बहुत-बहुत धन्यवाद गिरिजा जी
Deleteजी शुभा जी, एक गृहणी के शऊर् को दर्शाती है मसालेदानी! उसका व्यस्थित रहना उनके उत्तम हुनर की पहचान है! वैसे ऐसा अक्सर हो ही जाता की अगर जल्दबाजी में मसालेदानी हाथों से फिसलने का कांड हो गया तो मसालों की दुर्गति देख कलेजा मुँह को आ जाता है! सो आपका सुझाव उत्तम है मसाले कम रखिये! 🙏
ReplyDeleteसच साफ -सुथरी रंगीन मसालों से भरी मसालेदानी मन को बहुत भाती है ..है न सखी ..।
Deleteबहुत सुंदर लेख और सुंदर सुझाव भी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मधुलिका जी
Deleteबढियां लिखा है
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सरिता जी
Deleteसुन्दर रचना
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