ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ।बचपन से लेकर अंत तक इंसान अलग -अलग रिश्तो से बँधा रहता है ।मेरे हिसाब से ये होतें हैं उडती पतंग की तरह । सबसे पहले तो इसके लिए मजबूत डोर की जरूरत पडती है और उसे मजबूत बनाने के लिए काँच का उपयोग किया जाता है ।और इसमें कितनी ही बार उँगलियों में घाव पड जाते है तब जाकर डोर पककी बनती है । ठीक इसी तरह हमारे रिश्ते होते हैं ।
पतंग उडाने के लिए जितना महत्वपूर्ण उडाने वाला होता है उतना ही चकरी पकडने वाला भी होता है . अगर वह डोर को ठीक से नही लपेटेगा तो वह उलझ जाएगी और कितनी बार तो उसमें इतनी गाँठे पड जाती है कि उसे तोड ही देना पडता है । इसी तरह रिश्ते भी संभाल कर रखने पडते है ।चाहे वो रिश्ता दोस्ती का हो,भाई-बहन का हो पति -पत्नी का हो या फिर कोई और ।कभीकभी नफरत, क्रोध ओर अहंकार रूपी माँझा उसे काटने की कोशिश करते हैं ।पर समझदारी और धैर्यपूर्वक चला जाए तो हम अपने रिश्तों की पतंग को दूर क्षितिज मे उडा सकते हैं ।
आने वाले नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
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