हमारे शरीर में बाहर जितनी इन्द्रियाँकार्य करती हुई दिखाई देती हैं उससे अनेक गुना अधिक कार्य बाहर से न दिखाई देने वाली ग्रन्थियाँ करती हैं । जिनमें से एक मुख्य है थायरोइड । पिछले कई वर्षों में इसके विकारों से होने वाले रोगों की जानकारी मिली है ।
यह ग्रंथि गले में तितली के आकार की होती है । हम जो भी खुराक लेते हैं उसमें से आयोडीन तत्व खून की सहायता से थायराइड ग्रंथि में पहुँचता है और इस आयोडीन में से थायराइड ग्रंथि टी३औरटी४ नामक हारमोंस बनाती है । ये हारमोंस शरीर के अलग-अलग अवयवों में भ्रमण करते हैं और शरीर की चयापचय क्रिया को वेग देतें हैं और फिर इन सब अवयवों और उनके साथ जुडे हुए टिश्यु और मेटाबोलिज्म कार्यशील होते है । जब शरीर की मेटाबोलिक क्रियाएँ ज्यादा काम करती हैं तो ये अंत:स्त्राव शरीर में कम होते हैं और तब इन क्रियाओ का संतुलन बनाएँ रखने का काम थायराइड ग्रंथि करती है ।
जब यह ग्रंथि कम कार्य करती हैं तब उसे हाइपोथायराइडिज्म कहते हैं पर अगर ये अधिक काम करें तो हाइपरथाइरोडिजम कहते है ।
इस स्थिति मे सम्बन्धित व्यक्ति आलस का अनुभव करता है,शरीर पर,विशेषत:आँख के नीचे सूजन आ जाती है । वजन घटता-बढता रहता है । आवाज़ भारी हो जाती है किसी काम मे रूचि नही रहती यहाॅं तक व्यक्ति डीप्रेशन का शिकार भी हो जाता है । अगर ये सब लक्षण दिखाई दे तो तुरन्त जाँच करवानी चाहिए ।
योग द्वारा कुछ हद तक थायराइड ग्रन्थिकी विशिष्ट क्षमता को जाग्रत किया जा सकता है । इसमे सर्वांगासन ,मत्स्यासन,हलासन शवासन का अभ्यास करना चाहिए । प्राणायाम में भ्रामरी, ऊँकार तथा ऊजजयी का अभ्यास लाभदायक है ।
साथ ही सूर्य मुद्रा के अभ्यास से थायराइड ग्रन्थि के पोइंट दबने से उसके स्रावो का संतुलन होता है ।
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