आज सुबह जब मै नाश्ता करने लगी तो खाते समय एक बाल न जाने कहाँ से आ गया और गले में फँस गया जब तक निकला नही तब तक भारी बैचेनी । खाया हुआ सब बाहर आ रहा था ,निकलने के बाद मैने चैन की साँस ली ।
मेरे मन मेँ यही प्रश्न उठा इतने बडे शरीर मे इतना सा बाल सहन नही होता ।हमारे शरीर की यही प्रकृति है कि अनचाही चीज तुरंत बाहर धकेलता है । छोटा सा काँटा चुभता है,वो जब तक निकल नहीं जाता ,हमें चैन नही पडता ।
पर हमारे मन का क्या ? वो तो छोटी -बडी सभी बातों को अपने अंदर संग्रह करके रखता है .छोटी -छोटी बातोँ में क्रोध या दुख की भावनाओं को हमारा मन वर्षो तक सहेज कर रखता है और इस तरह हम जाने-अनजाने अपने स्वाथ्य को हानि पहुँचाते हैं । दुख और क्रोध की जो गाँठ हम बाँधते हैं उससे तरह -तरह की बिमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।
क्रोध हमारे मन को विकृत बना देता है ।
हम अपने नकारात्मक विचारों से ,बिमारी अथवा बिगडे हुए संबंध से परेशान रहते हैं ।तो चलिये आज से ही शुरुआत करते है । जो विचार हमने बरसों से पकड कर रखें हैं उन्हें छोडकर नई विचारधारा अपनाएँ ।हमारे जीवन में जो अशांति होती है वो हमारी स्वयं की मानसिक विचारधारा पर आधारित होती है तो हम अपनी विचारधारा की रीत बदले ,उन्हें सकारात्मकता की ओर ले चले ।
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