बच्चे बगीचे में खेल रहे थे ,कोई दौड़ रहा था , कोई रस्सी कूद रहा था । मैं बेंच पर बैठकर उन्हें देख रह थी ।कितने निष्फिक्र थे सभी , अचानक एक बच्ची मेरे पास आकर बोली ,"आंटी , देखो न , हमारी रस्सी में गाँठ पड़ गई है क्या आप इसे खोल देगीं ।" मैंने कहा ,क्यों नहीं ,देखो अभी खोल देती हूँ .इतना कह मैंने रस्सी हाथ में ली देखा अभी तो गाँठ ढीली है ,झट से खोल कर उसे दे दी । बच्ची खुश होते हुए धन्यवाद बोलकर फिर खेलने में मगन ।
इधर मैं सोचने लगी चलो आसानी से खुल गई गाँठ , अभी ज्यादा कसी नही थी न ।
दोस्तों , हम भी जाने -अनजाने रोज ऐसी कई गाँठें अपनें मन रूपी धागे में लगा लेते हैं ,जिन्हें अगर समय रहते खोल न लिया जाए तो वो कसती ही जाती हैं और करती हैं हमें तनावग्रस्त ,लाख कोशिशों बावजूद हम उन्हें खोल नहीं पाते ।
कभी किसी की कही बात से मन को ठेस पहुँचती है ,और फिर बँध जाती है गाँठ। और चल पडते हैं हम नकारात्मकता की ओर, मन के हर कोनें में संग्रह करते जाते हैं गाँठों को ।ऐसा करके हम अपने आप को ही हानि पहुँचा रहे होते है ।(अब दुनियाँमें सभी लोग हमें एक जैसे तो नहीं मिलने वाले ।)
पर अब नहीं .....चलिये एक कदम सकारात्मकता की ओर बढाएँ...समय आ गया है एक-एक गाँठ खोलने का , आँख मूंदकर धीरे-धीरे एक एक गाँठ खोलने का प्रयत्न करें, जरूर सफल होंगे और मन का बोझ हल्का होने लगेगा फिर कदम हल्के होंगें ,जीवन से रोग दूर होंगे ,लक्ष्य प्राप्ति सुगम बनेगी ।
एक कदम सकारात्मकता की ओर आज से ही....।
So positive attitude...great composition dear sister
ReplyDeleteThanku bro
Deleteबहुत खूब एक खेल के माध्यम से अपनी बात कही। भाषा प्रवणता और लेखन में माधुर्य झलकता है। बस अपने विचारों को कलमबद्ध किये जा।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई ।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 21 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद यशोदा जी ।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार संजय जी ।
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