ब्रांडेड जूते, चप्पलों से
ठसाठस भरती जा रही
जूतों की अलमारी
बेचारे सादे
बिना ब्रांड के
पुराने चप्पल
दबे जा रहे थे
दर्द के मारे
कराह रहे थे
तभी ,इठलाती
इक ब्रांडेड जूती बोली
यहाँ रहोगे तो ऐसे
ही रहना होगा दबकर
देखो ,हमारी चमक
और एक तुम
पुराने गंदे ...हा....हा....
फिर एक दिन
पुरानी जूतों की शेल्फ
रख दी गई बाहर
रात के अँधेरे में
चुपचाप पुराने चप्पल
निकले और
धुस गए अपनी
पुरानी शेल्फ में
अपनी "औकात"
जान गए थे ।
शुभा मेहता
24th feb .2017
Aaj ke jamane ki sacchai jahan insan ki halat uss purane joote chappal on jaisi ki rahna hai toh jo kaha jaaye vo suni jaise bolne ko bola jaaye bolo bina ye soche huye ki nye ko bhi purana hona hai us par bhi dabav pad skta hai acchi lgi kavita samay ke anukool bahut sundar seedhe shabdon mein yatharth darshati huyi wah ho gyi tu ek manjhi huyi kaviyatri dher saara ashirwad aur bahut saara pyaar 💐💐💐😊😊😊☺☺☺☺
ReplyDeleteऔकात को बहुत हीअच्छे तरीके के परिभाषित किया है आपने। जिन्हें हमारी कदर नहीं उन के बीच रहने से क्या फ़ायदा?
ReplyDeleteऔकात को बहुत हीअच्छे तरीके के परिभाषित किया है आपने। जिन्हें हमारी कदर नहीं उन के बीच रहने से क्या फ़ायदा?
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ज्योति जी ।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद कुलदीप ठाकुर जी ,मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में शामिल करनें हेतु । आभार ।
ReplyDeleteप्रतीक के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया आपने ... परिवार में अक्सर बुजुर्गों के साथ ऐसा होता है ...
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद दिगंबर जी।
Deleteआज का कटु सत्य...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद शर्मा जी ।
Deleteसंकेतात्मक भाषा में औकात को बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया है आपने ।
ReplyDeleteवाह !
बहुत खूब।
Swagat hai sudha ji aapka mere blog per ..bahut -bahut dhanywaad....
Deleteवास्तविकता आज के परीवेश की ,,,
ReplyDeleteआभार रितु जी ।
Deleteसत्य कहा ,आज अमीर-गरीब ,छोटे-बड़े की भावना हमारे रग-रग में समाई हुई है ,पर सबसे बड़ी बात हम पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं ! सुंदर वर्णन
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ।
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