Sunday, 27 December 2020

एक पत्र , मानव के नाम ......

नमस्ते 🙏🏼हे मानव ,
    
         आज मैं बहुत खुश हूँ ,बताऊँ क्यों ? 
   बस चार दिन शेष हैं मेरी जिंदगी के .....😊
   आप कहेगें ,अरे भाई .... जीवन समाप्त होने को है और तुम खुश हो !  हाँ ...बहुत खुश ....।
    मैंने अपनी तीन सौ इकसठ दिन की अब तक की जिंदगी में क्या-क्या नहीं झेला ,सिर्फ़ बद्दुआएं ही आई मेरे हिस्से में , सभी को कहते सुनता हूँ ऐसा साल कभी न आए । अब चार दिन और झेलना है ।देखो सभी खुशी-खुशी मेरी विदाई की तैयारी कर रहे हैं ।
 पर मेरा आप सभी से एक सवाल है ,इन सबमें मेरा क्या दोष है ? ये "वाइरस' जो मेरे साथ-साथ चला आया ,मेरे साथ क्या ये तो पहले से ही प्रवेश कर गया था ,मेरी बदनसीबी यही कि मुझे इसके साथ रहना पडा ..और इतनी बद्दुआएं झेलनी पडी ।
   मुझे कितना बुरा लगता है ,जब बात-बात में मुझे ही कोसा जाता है ।मैंने भी चाहा था ,मेरे रहते चारों ओर खुशियाँ हों । मैंने कभी नहीं चाहा कि लोग परेशान हो ,अकाल  मौत मरें ।
    पर एक बात तो आप भी मानेंगे कि कुछ अच्छी आदतें भी सिखा कर जा रहा हूँ मैं ,मानते हैं न ?
  अब जाते-जाते यही दुआ है मेरी ....आने वाला वर्ष आप सबके लिए खुशियाँ लेकर आए ,धरती पर फिर से खुशहाली हो ,मिलना-जुलना हो ..।
   चलो अब चलता हूँ । 
आपका 
   2020 ..
  शुभा मेहता 
28th Dec ,2020

Tuesday, 24 November 2020

मेरे मन की बात ..

बात मेरे मन की है ,जरूरी नहीं आप भी सहमत हों इससे 🙏🏻

बात कुछ दिनों पहले की है....जब कोविड का डर नहीं था । मैं रोज बगीचे में घूमने जाया करती थी । वहाँ एक बेंच पर अक्सर एक लडकी को अकेले गुमसुम बैठा देखती । एक दिन जा पहुँची उसके पास और वहीं बैठ गई । मैंने उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा बदले में उसनें भी एक फीकी -सी मुस्कान दी ।अब तो रोज में उसके पास जाकर बैठने लगी पर उसे कभी खुश नहीं देखा ।मैं बात करने की कोशिश भी करती तो वह बस हूँ ,हाँ में जवाब देती।
एक दिन मौका देखकर मैंनें उससे पूछा ..बेटा ,इतना उदास क्यों रहती हो ?सुनकर डबडबाई आँखों से बोली ..आंटी ,मैं सुंदर नहीं हूँ न ,इसलिए मुझे कोई प्यार नहीं करता , न घर में और न बाहर । सब मुझे काली -कलूटी कह कर चिढाते हैंं और मेरी खुद की माँ कहती है कौन करेगा तुझसे शादी ? और रोज न जाने कौन -कौन से नुस्खे गोरा होने के मुझ पर प्रयोग करती है ....तंग आ गई हूँ मैं तो । 
 तभी एक बडी -सी काली बदली आई और जोर से बरसात होने लगी ..मैंनें कहा चलो कही शेड के नीचे चलते हैं ..वो बोली आप जाइये मैं यहीं बैठी हूँ शायद बारिश से मन कुछ शांत हो जाए ...। और वो वहीं बैठी रही । मैंनें महसूस किया मानों वो बादल से पूछ रही है......
     ओ..बादल .....
  क्या इस बार तेरी लिस्ट में
   नाम है मेरा ?
   मेरे मन के कोने-कोने को भिगोने का 
मैं भी मन के किसी कोने में 
तेरी नमी महसूस करूँ 
   मेरा भी मन करता है 
   कोई मुझको प्यार करे ,
  स्नेह दे ....
  मैं खूबसूरत नहीं ,
  क्या ये दोष है मेरा ?
  कितना बुरा लगता है मुझे 
    क्या तुम्हे पता है....?
  मैं भी कुछ उदास हो गई .....समझ नहीं पा रही ...क्यों करते हैं हम ये भेदभाव ?जानबूझ या अनजाने में क्यों किसी का दिल दुखाते हैं? क्या रंग -रूप हमारे हाथों में है ?बंद होना चाहिए ये सब ?क्या गोरा या सुंदर होना ही इंसान के अच्छा होने का सबूत है ?

 .शुभा मेहता 
 25th Nov ,2020

पुराना दोस्त

सुना था कि ,तुमनें
 इस दिवाली .......
सारा घर साफ कर डाला ।
घर ? या वो यादें
 वो सपने ..
  वो नोटबुक की स्याही 
    वो आँगन का बडा पेड़
      बैठ छाँव में जिसकी 
        गाते थे गीत 
         खेलते थे अंताक्षरी 
        वो भी कटवा दिया शायद ।
        वो झूठमूठ के झगड़े
          वो हमारी खिलखिलाकर 
            सभी साफ कर दी 
             साबुन से धोकर ।
             सबब इसका न जान सकी अब तक
            जान बसती थी एक -दूसरे में हमारी   
             कोई बात नहीं दोस्त ..
                देखो नये सपने ..
              भर लो नए रंग ......
              मैं भी पा ही लूँगी कोई 
            दोस्त ............अच्छा सा ।

      24th Nov ,2020
           
    


        
            

             
              
    

Wednesday, 30 September 2020

एक थी आशा

एक थी आशा ....
हँसती -गाती ,
मुस्कुराती ,सुंदर ,सलोनी -सी 
 माँ की दुलारी थी .
कितने सारे सपने थे उसके
कुचल दी गई 
 वहशी दरिंदों द्वारा
  क्या हो गया है 
  इंसान ...
इंसान से मिटकर 
बन गया हैवान है 
  रो रही है मानवता 
फूटफूट कर 
  जीत रही है ताकत 
  सत्ता की ..
पैसे की ...
 बिक रहे हैं लोग 
चंद सिक्कों की 
 खनखनाहट मे ।


शुभा मेहता 
30th Sept ,2020
  
  
  

दिखावा ...(.लघुकथा )

माँ जी ,आज मेरी माँ की तबियत ठीक नहीं है ,क्या थोडी देर के लिए मिल आऊँ । माला नेंं अपनी सास से डरते-डरते पूछा । 
 घर का काम कौन करेगा ? आज से नौकर भी छुट्टी पर है और मुझे तो महिला सशक्तिकरण के बारे में जो प्रोग्राम है वहाँ जाना है ,तुम्हें पता है महिलाओं पर होने वाले अत्याचर के खिलाफ हमने मुहिम छेड रखी है ।और हाँ घर खूब अच्छी तयह से साफ करना , मेरी कुछ सहेलियां आएगी और उनके लिए नाश्ते का इंतजाम भी करना है । 
  शुभा मेहता 
30th sept. ,2020

Saturday, 22 August 2020

मुंडेर

यादों की मुंडेर पर बैठा ,
मन पंछी ........
सुना रहा तराने ,
 नए -पुराने 
  कुछ ही पलों में 
   करवा दिया ,
    बीते सालों का सफर ।
     बचपन में कैसे मजे से 
     खेले ,ना जानें कितने खेल 
       जी चुराया बहुत पढाई से 
       भाती नहीं थी न अधिक ....
        बस ,खेल कूद ,मौज -मस्ती 
        नृत्य ,गीत ,संगीत में ही 
 रमता था मन 
   कोई भी प्रोग्राम हो शाला में 
    बस पढाई से छुट्टी ,
   प्रेक्टिस के बहाने ...,
बस ,जीना सिर्फ़ अपने लिए 
  खुद से कितना प्यार था मुझे ,
 लेकिन न जाने अब 
  क्या हो गया ..
    क्यों नहीं करती 
      खुद की फिक्र ?
     कभी दर्पण मेंं झाँका है ....
        असमय  माथे पर  लकीरें .
         खिचड़ी केश ...
        जिम्मेदारी के बोझ तले 
       झुकी जा रही हो 
       क्या लौटना नहीं चाहती 
      वापस "उन"दिनों मे 
       नहीं चाहती खुल कर जीना ?
        अरे नहीं .....ठीक हूँ मैं तो 
       जैसी हूँ वैसी 
  और फिर लोग क्या कहेगें....
    इस उम्र में 
   क्या नाचूंगी ,गाऊँगी ?
   लोग ....अरे लोगो का क्या 
    उनका तो काम ही यही है 
     तू जी ले अपना जीवन 
      मस्ती में ....।
   

 शुभा मेहता 
 22nd Aug ,2020
         
    
  
   
       
       
   
      
    
        

Friday, 7 August 2020

व्यथा

मेरी व्यथा की कथा 
क्या कहूँ......
मैं हूँ इक "आम"आदमी 
"आम"आदमी 
जो होता नहीं 
  कभी खास...।
 कभी पेंशन पाने को 
   सरकारी दफ्तर के
  चक्कर लगाता 
    घिस जाते चप्पल 
   बिना "वजन"काम न बन पाता 
    थका -हारा ,लाचार 
      मरता क्या न करता 
     कहावत चरितार्थ करता 
      "वजन"रखने को 
        मजबूर हो जाता 
         मैं हूँ "आम"आदमी
          जो होता नहीं 
         कभी खास ...।
        हाँ....चुनावों के समय
        लगता जैसे 
          कुछ समय के लिए 
             बन जाता हूँ "खास"
             जब बडे-बडे नेता-अभिनेता 
     .        हाथ जोडते ,वोट माँगते 
              और ,एक पल के "खास"का    
                स्वाद चखता,आनंद उठाता 
              बातों में उनकी आ जाता 
               भरोसा कर लेता वायदों पर 
               कीमती मत डाल आता 
                झोली में उनकी ।
              नतीजा..... सिफ़र...
              बस वहीं का वहीं खडा रह जाता 
               मैं हूँ "आम "आदमी 
            मेरी व्यथा की कथा 
           क्या कहूँ ....।

     शुभा मेहता 
     7th Aug ,2020
        
   

Friday, 31 July 2020

पदचिन्ह

पदचिन्ह .......?
किसके पदचिन्हों का 
करूँ अनुसरण 
 यहाँ तो पदचिन्हों का जमावडा है ,
   छोटे -बडे ,टेढे -मेढे 
     सब एक दूसरे में गड्डमड्ड 
     दिखाई नहीं दे रहा कुछ साफ 
     करना चाह रही हूँ 
अपनी सोच से मैच ..
   कोई तो होगा पदचिन्ह ऐसा 
     चल सकूँ पीछे जिसके ..
     कर सकूँ अनुसरण जिसका । 
     ना -ना ये समाज के ठेकेदार 
जो करते सदा मनमानी 
  चूसते लहू गरीबों का 
   या कोई नेता -अभिनेता 
     ना कोई बडा-बुजुर्ग 
    जिसने घर की ,समाज की  नारी को 
     दिया हो दर्जा बराबरी का ..।
      ढूँढने होगें ऐसे पदचिन्ह
      अनुसरण करनें पर जिसका 
         गर्वान्वित मैं हो सकूँ 
          कर सकूँ कुछ खास 
         जमाने के लिए......
        छोड सकूँ कुछ 
       अपने भी पदचिह्न 
        आने वाली पीढी के लिए ।
         
  शुभा मेहता 
31st ,July ,2020
       
     
    
   

Thursday, 11 June 2020

स्वतंत्र

बडे  गर्व से 
कहते हैं.हाँ हैं हम 
स्वतंत्र देश के 
स्वतंत्र नागरिक ..
और हैं भी ....।
पर हमनें तो 
इसका ऐसा 
किया दुरूपयोग ..
सारी प्रकृति दर्द से 
कराह उठी ..
 किसनें दी हमें 
स्वतंत्रता जंगलों को 
उजाडने की ,नदियों को दूषित करनें की ,
पर्यावरण बिगाड़ने की ,
जहाँ मरजी कूडों का ढेर लगाने की ,
हे मानव ,ये जो किया तूने 
खिलवाड़ माँ प्रकृति के साथ ,
कितना सहती वो भी आखिर ..
सीमा होती है न ,हर बात की 
तो अब ले भुगत ,
अपने कर्मों का फल ,
त्याग अब तो अपना अहम्...
मैं , मानव हूँ बडा शक्तिशाली ..
कुछ भी कर सकता हूँ 
 छोड इस सोच को अब ..।
   प्रेम कर माँ प्रकृति से 
   ध्यान रख ,कर जतन 
    देखना फिर माँ भी 
     जल्दी ही ..
   बैठाएगी फिर से 
      तुझे अपनी गोद में
झुलाएगी झूला भी ......।
  

 शुभा मेहता 
12 June ,2020
 



Thursday, 21 May 2020

पदचिन्ह

गीली रेत पर 
छोड़ चले थे
अपने पदचिन्ह...
  तय करते ल..म्बा  सफर 
   पहुँच गए कितनी दूर 
     अपनी धरती ,अपना देश ,
        अपना गाँव ,अपनी मिट्टी
         अपनी रेत .....
          सब कुछ छोड 
              अधिक पाने की लालसा में 
               निकल गए थे.दूर देस
                 पा लिया धन ,वैभव 
                   भौतिक सुख -सुविधाएं 
                   छूट गई ,अपनी मिट्टी ,अपनी रेत ।
                आज,जब हालात 
हो रहे हैं बद से बदतर ,
लौट जाना चाहते हैं 
अपनेंं गाँव ,अपने घर ,अपने देश 
  अपनी मिट्टी ...., 
  सर चढाने को ..।
 
शुभा मेहता 
22nd ,May ,2029
   


                     
 

           
                    




                
 
              
    

    

                

Sunday, 26 April 2020

जिज्ञासा

खिड़की में से चाँद ,आजकल 
कितना सुंदर दिखता है 
और सितारे इत्ते सारे ..
 यहाँ कहाँ से आ गए ?
  पहले तो कभी ना देखे ..
    इतने चमकीले से तारे 
    नन्ही गुडिया पूछ रही थी 
      प्रश्न थे मन में ढेर सारे।   
  मैं बोली ,बिटिया रानी 
  रहते आजकल सभी घरों 
   ना है गाडियों की हलचल 
    धुआँ ,गंदगी हो गई है कम 
     इसीलिए आकाश है साफ 
       चाँद चमकता ,तारे दिखते 
        आई कुछ समझ में बात ।
         प्रश्न एक फिर उसनें दागा 
          बोली ..क्या जब सब ,
           हो जाएगा पहले जैसा 
             चंदा फिर से होगा धुंधला
           और सितारे छिप जाएंगे ?
             


मुझे तो कोई उत्तर नहीं सूझा ,अगर आपको पता हो तो कृपया बताइये ..🙏
शुभा मेहता 

  
     
     
   


  

Wednesday, 22 April 2020

आग

आग चूल्हे  की हो 
या पेट की...
   एक जलती है   
तब दूसरी बुझती है 
 और चूल्हा जलता कब है?
   पूछो उन  मजदूरों से .. ....
    आज बोल कर गया था 
     घरवाली से 
     चूल्हा जलाने की 
     तैयारी रखना 
      आज तो कुछ न कुछ 
      कमाकर ही लौटूँगा ।
      घरवाली बोली कुछ नहीं ,
        बस बेबस सी देखती रही.....।
  
   साँझबेला में 
    बच्चे , झोंपडी के अंदर 
      पैबंद लगे    
    परदेनुमा लटकते टाट के 
     छेद में से झाँककर 
     देख रहे थे माँ को 
      चूल्हे में लगाते लकडियाँ
        लगता है आज तो जलेगा चूल्हा 
          सोच रहे थे  ...
         रोज माँ गीली पट्टी पेट पर रख 
          सुला देती है ..
          हे ईश्वर आज तो 
            जरूर कुछ मिल जाए बाबा को 
             कर रहे थे प्रार्थना 
            मूँदे आँखे ..।

 शुभा मेहता 
20th ,April ,20200
          

Friday, 10 April 2020

खलनायक (लघुकथा)

रानी नें जैसे ही घर मेंं कदम रखा ,उसकी माँ नें कहा रानी देखो तुमसे मिलने कौन आया है । 
कौन आया है माँ ?रानी ने पूछा 
अरे वो मास्टर जी ,जो बचपन में तुझे पढाने आया करते थे ,भूल गई क्या ? शायद भूल भी गई हो तुम सात साल की होगी तब । 
मास्टर जी का नाम सुनकर रानी की मुट्ठियाँ भिंचने लगी ,क्रोध से चेहरा तमतमा उठा । बोली ..उसे कैसे भूल सकती हूँ ...बदमाश कहीं का । कैसी -कैसी हरकतें करता था ..हमेशा मुझे छूने की कोशिश रहती थी उसकी ,मन करता है जाकर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करूँ ..
रानी मन ही मन बुदबुदाई ।
अरे ,कहाँ खो गई रानी ..जा मास्टर जी से मिल ले ,बेचारे कब से तेरा इंतजार कर रहे है ...हुंह ..बेचारे ..ये शराफत का मुखौटा पहने खलनायक है ...। 
नहीं मिलना मुझे ..कहना तो चाह रही थी ,पर कह नहीं पाई ..न जाने कौनसा डर है ..न तब कुछ कह पाई ,न अब । 
  शुभा मेहता 
  9th April ,2020
  

Wednesday, 1 April 2020

यूँ ही ,कुछ मन की बात ..

नमस्ते मित्रों ..
   आजकल' कोरोना 'की वजह से सभी अपने -अपने घरों में है । यह अच्छी बात है कि घर का पुरुष वर्ग भी दैनिक कार्य जैसे झाडू -पोछा ,बर्तन आदि आदि 
(मैं इसे मदद का नाम नहीं दूँगी )कर रहे हैं ।
  इसको लेकर काफी कुछ वीडियो बन रहे हैं जिसमें पुरुषों को झाडू लगाते हुए ,बर्तन साफ करते हुए या फिर आटा गूंधते हुए दिखाया जाता है ,और पीछे से हँसी की आवाज ...। पुरुष वर्ग इसे मदद कह कर अहसान जताते है ..देखो कितना काम करवाया आज ..।
मेरा प्रश्न यह है ...इसे मदद का नाम क्यों देते है ?
क्या घर केवल महिलाओं का है ?
क्या सारे काम करना महिलाओं की जिम्मेदारी है ?
क्या कभी ऐसा होगा जब पुरुष वर्ग इस भावना से काम करे कि चलो मिलकर  ' अपना ' काम करते है ।
नोट ....ये विचार मेरे अपनें है ....😊

शुभा मेहता 
2ndApri ,2020


Monday, 30 March 2020

नैया और पतवार

एक दिन छिड गई बहस 
 नैया और पतवार में ,
  नैया ने अभी-अभी ही 
  वृक्ष में से पाया था 
    रूप नया ...
     सुंदर रंगों से रंगी गई थी 
      सुन अपनी तारीफें 
       फूल गई थी कुछ गर्व से 
       पानी में अपना प्रतिबिंब देख 
        बढ गया और  अभिमान । 
        जैसे ही नाविक ने थामी पतवार 
         ये क्या ....इत्ती पुरानी  ,गंदी पतवार 
          नहीं ,नहीं मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा साथ 
            पतवार धीरे से बोली 
             सुनो नैया बिन मेरे कैसे करोगी 
              सागर पार .......
                पर नैया को कहाँ कुछ सुनना था 
                बोली मैं तो चली लहरों के साथ 
                  कुछ दूर जाकर 
                   घबराई ,चिल्लाई 
                     सुनो पतवार 
                       आकर बचाओ
                       मेरा तुम्हारा तो सदा का है साथ 
                        तुम बिन नहीं होगी नैया पार ।

   शुभा मेहता 
31st , March ,2020
  

Thursday, 26 March 2020

काजल

सखी री.....
मेरा काजल बह-बह जाए 
कब से बैठी आस लगाए 
बैरी पिया ना आए ....
  सखी री ......
   ना चिठिया ना कोई संदेसा 
   इतना काहे... तरसाए ---
     सखी री  ...
     जाऊँ कहाँ कुछ समझ न आए 
      उन बिन चैन ना आए 
        सखी री .....
         तारे गिनती रहूँ रात भर 
          चाँदनी अगन लगाए
           सखी री ......
       शुभा मेहता 
27th ,March ,2020
 
    
     

Saturday, 21 March 2020

22 मार्च ..दृश्य मेरी बालकनी से ...

आज आकाश कुछ ज्यादा ही 
नीला-सा ,साफ -सा लगा 
मानों रंगरेज नें.....
  अभी रंग कर भेजा हो 
   सुबह -सुबह वो 
   ठक-ठक की ,
  लयबद्ध आवाज़..,
  जो मेरे घर के 
    तीनों ओर बन रही 
     बहुमंजिली इमारतों से 
     आया करती है 
     जिससे अक्सर मेरी 
      नींद खुला करती है ,
       गायब थी ......।
      कबूतरों की गुटर-गूं...
       इतनी जोर से 
       शायद पहली बार सुनी थी 
      साथ ही दूर कहीं से 
      बंदरों की हूप-हूप और 
       मोर भी बोला .....!
      आसपास के घरों में 
     जहाँ पालतू कुत्ते हैं 
      जोर-जोर से भोंक रहे हैं 
       शायद रोज की तरह 
       घूमने जाना चाह रहे हैं ।
      सड़कें सूनी ...
      अच्छा लगा 
     इस कठिन समय में
     सब मिलकर इस 
     'कोरोना'नामक दैत्य से लडें
      पहली बार साथ 'लडने'की बात है 😊
       स्वस्थ रहें ,मिलकर इस दैत्य को 
     पछाडऩे का संकल्प करें ।

  शुभा मेहता 
22thMarch ,2020
     
     



Wednesday, 18 March 2020

संवाद दो पीढियों का ..

सुना है ,मिलावट करते हो ?
क्या मिलाते हो ?किसमें ?
पहले ही क्या कम मिलावट है 
दुनियाँ में............।
तुम ये कौनसा नया धंधा ,
करनें वाले हो मिलावट का 
यहाँ तो जहाँ देखो वहाँ 
मिलावट ही मिलावट है
क्या खाना ,क्या पीना 
बाजार भरे हैं 
इन नकली मिलावटी चीजों से 
यहाँ तक कि इंसान भी ....
उसकी हँसी ,खुशी 
  प्रीत ,प्रेम सब नकली 
  सामने कुछ ,पीछे कुछ और 
    तंग आ गए हैं अब तो ....।
  अरे.....
नहीं......
आप गलत समझ रहे हैं
हम ऐसे मिलावटी नहीं ..
हमने तो ठानी है 
सबको मिलाने की 
प्रेम भाव बढाने की 
द्वेश -हिंसा मिटाने की 
प्रेम .स्नेह की मिलावट 
  सारी धरती पर बढाने की 
  धरती को स्वर्ग बनाने की ..।
क्या कर सकोगे ?
क्यों नही ....
अकेले?
किसी को तो रखना होगा 
पहला कदम 
बहुत कठिन है 
हाँ...पर नामुमकिन तो नहीं ..
क्या आप देगें साथ?
मैं भी चाहती तो बहुत थी
पर डरती थी
शायद हार से 
   हिम्मत नहीं थी ...
पर ,अब नहीं ..
चलो ,बढाओ तुम पहला कदम 
दूसरा कदम मेरा होगा ।

शुभा मेहता 
18th March ,2020


     

Friday, 28 February 2020

मेरे अनुभव (२)

समझ नहीं आता , ये धैर्य नामक फल आजकल कहाँँ गायब हो गया । हर एक इंसान को जल्दी है ,हर काम में हडबडी ..।
अब सड़क पर ही देख लीजिए ,कारों का काफिला ,सभी को जल्दी गंतव्य पर पहुँचने की और ये दुपहिए वाहन तो थोड़ी सी जगह से ऐसे कट मार कर निकलने की कोशिश करते है कि बस ,परिणामत:अनेंक दुर्घटनाएँ घटती है ।
  वैसे आज में बात करनें जा रही हूँ लिफ्ट के उपयोग की ..,जैसा मैंने कुछ वर्षों में अनुभव किया ,वो आपको बताना चाहूँगी ।
आज सुबह की बात ही लीजिए ,मैंने लिफ्ट में प्रवेश किया उसके बाद लिफ्ट सातवीं मंजिल पर रुकी और तीन बच्चे और साथ ही तीनों की मम्मियाँँ ..सभी नें बारी -बारी से लिफ्ट बंद करने का बटन प्रेस किया ,जबकि लिफ्ट दस सेकेंड में स्वतः ही बंद हो जाती है ।परिणाम क्या हुआ ,दरवाजा व
 छह बार बंद हुआ और खुला ।उस पर भी दोष बेचारी लिफ्ट का माना गया और एक बच्ची की तो स्कूल बस ही छूट गई ।
अब मेरे दिमाग में प्रश्न यही आता है कि सभी लोग जानते है इस बात को कि लिफ्ट को जितना समय लगना है आने में वो तो लगेगा ,बार -बार बटन दबाने से तो जल्दी आने की जगह और देर लगेगी । 
कुछ सेकेंड का भी धैर्य नहीं और बच्चे भी वो ही करते हैं जो बडो को करते देखते है । आपको बात शायद छोटी लगे पर है समझने लायक है ना ।
पुनश्च ...अभी फिर से  लिफ्ट में जाना था मेरे साथ ही दो सफाई कर्मचारी ,तीन घरेलू कार्य करनें वाले आए , मैने नीचे जाने के लिए बटन दबाया और वो लोग भी मेरे सामने देखकर मुस्कुरा भर दिए । 
शुभा मेहता 
28th Feb.2020

Wednesday, 26 February 2020

मेरे अनुभव (१)

प्यारी बिटिया ,

    आज तुमसे कुछ कहना चाह रही हूँ ,समय मिले तब पढना ।
 अपने शरीर की संभाल करना बहुत जरूरी है ,तुम स्वस्थ्य रहोगी तभी तो अपने बच्चों व परिवार का ध्यान रख सकोगी । अपने खाने-पीने का ध्यान रखो । अभी तो तुम्हें बहुत कुछ करना है जीवन में ,बच्चों को पढा-लिखा कर बहुत आगे भेजना है । तुम अगर अभी से शरीर का ध्यान नहीं रखोगी तो ,कैसे कर पाओगी ये सब? एक बात याद रखना ..शरीर स्वस्थ तो सब कुछ ठीक ।
समझते हैं हम ,तुम पर काम का दबाव रहता है पर इतना तनाव ठीक नहीं बेटा ,हम सब तुम्हें बहुत प्यार करते है ..बस इतना ही कहना चाहती हूँ ।
     तुम्हारी माँ 

  सभी ब्लॉगर मित्रों को नमस्कार 🙏 

आप सोच रहे होगें कि शुरुआत मैंनें इस पत्र से क्यों की ? तो मित्रों ,आजकल जहाँ देखो वहाँ तनाव ही तनाव दिखाई देता है ।आसपास कही भी स्वाभाविक हँसी दिखाई नहीं देती ,ऐसा लगता है जैसे मिलने पर लोग जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कान लाते हों । 
  इतना तनाव ग्रस्त क्यों है आज का युवा वर्ग शायद जल्दी-जल्दी सब कुछ हासिल करना चाहता है ,कंपीटीशन के जमाने में स्वयं को आगे रखने की होड़ में न ढंग से खाता है न पूरी नींद सोता है ।
  मेरा तो बस इतना ही कहना है ....सबसे जरुरी स्वयं की तंदरुस्ती ,चौबीस घंटों में से कुछ लम्हें अपने लिए निकाल कर पसंदीदा काम करो । अपने समय और कार्य को आवश्यकता अनुसार विभाजित करो ,और सदा मुस्कुराते रहो । सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ ......

शुभा मेहता 



  

Wednesday, 19 February 2020

वेदना

मन की वेदना के ,
आँगन में.......
कुछ फूल खिले
अश्रु बूँदों से सिंचित 
 श्वेत से थे कुछ -कुछ 
  रंगहीन .....
  हो गए स्याह नीले-से
  लोगों की दी गई
  चोटों से ..
पड़ गई थी नील....।

शुभा मेहता
20th Feb ,2020

Thursday, 23 January 2020

तीली

एक माचिस की 
छोटी -सी तीली 
 कितनी ताकतवर !
 जला देती है 
   कितने ही आशियाँ...
   सुलगा जाती है 
     जीते -जी 
      कितने ही तन
     कितनी बसें ,कारें
     और न जाने क्या -क्या 
      बेहिसाब..............।
   और ,शब्दों की तीली ?
    जला देती है 
   कितने ही मन 
     अंदर तक ....
     बढा़ देती है 
      आपसी बैर 
      बना देती 
      अपनों को ,
        अपनों का दुश्मन 
            देती है जख्म 
             अनदिखा ...।
             और फिर ,कुछ लोग (तथाकथित अपनें)
             देते हवा उस आग को 
               जो बुझ नहीं पाती ता-उम्र 
               दूर से देखकर
                  ताली बजाते ..।
     शुभा मेहता 
   24th Jan ,2020
 
 

Tuesday, 21 January 2020

जिंदगी

सच कहूँ ,तो आइसक्रीम सी है ,
ये जिंदगी ......
नरम-नरम ,मीठी -मीठी 
  कभी वनीला सी ,
  कभी चॉकलेट सी 
    कभी अनानास सी 
   तो कभी नारंगी सी खट्टी -मीठी 
   धीरे -धीरे स्वाद जीभ में घुलाती सी 
    अभी देखा था 
   कुछ दिन पहले 
    एक छोटा बच्चा 
      कितने मजे से 
      चख रहा था स्वाद इसका 
       हाथ में लिए 
        एक नारंगी केंडी 
         रस बहकर आ गया था 
         कोहनी तक ...
           जीभ से चाटकर 
          कितना खुश हो रहा था 
         तभी उसकी मम्मी नें 
        जो़र से डाँटा ....
         क्या कर रहे हो 
           खानें का सलीका नहीं ..
          बेचारा बच्चा ,सहम सा गया 
           गलती अपनी समझ न पाया 
            सोचा ,मैं तो आंंनद ले रहा था 
            अपनी तरह से ..
              बस वही से शुरुआत हुई 
                बच्चा अब हर बात में डरता है 
                 कहीं कोई भूल न हो जाए 
                  और फिर क्या..
                 सलीके सीखने में ही
                   उम्र गुजर जाती है 
                     आइसक्रीम  आधे में ही पिघलकर 
                 जमीन पर गिर जाती है ।
    शुभा मेहता
  21th Jan ,2020
                     


  


         
     
   

Friday, 17 January 2020

अंधा बाँटे रेवडी..

स्कूल से घर आते ही दीदी का रिकॉर्ड चालू हो गया ..कह रही थी कितना अच्छा ,सुरीला मधुर गाना गाया था उस बच्ची नें ,पर इनाम तो उस ट्रस्टी की बेटी को ही दिया ...जब ऐसा ही करना था तो हमें बुलाया ही क्यों था जज बनाकर । सब दिखावा है ..पहले ही ऑफिस में बुलाकर कह दिया कि प्रथम पुरस्कार तो इसे ही देना होगा ..ये भी भला कोई बात हुई ..बस दीदी बोले जा रही थी ...हर साल इसी ट्रस्टी की बेटी को ही इनाम दिलवाते है ..न सुर का ठिकाना न ताल का ..उस बेचारी बच्ची का चेहरा देखा था ,कैसा उतर गया था  ..ये तो वो ही बात हुई न कि अंधा बाँटे रेवडी फिर -फिर उसी को दे। 
   मैं बोली दीदी ये रेवडी अंधा कैसे बाँटता होगा ,उसे कैसे पता चले कि बँटवारा बराबर हुआ है या नहीं ..दीदी मुझे देखकर मुस्कुरा दी ..बोली अभी तुम छोटी हो ,बडी होगी तब सब समझ जाओगी ।  
चलो अब सो जाओ थोडी देर । मैं भी थकी हुई थी जल्दी ही आँख लग गई । तभी सपने में क्या देखती हूँ एक अंधा बडे से झोले में रेवडिय़ां लेकर आ रहा है ,दूसरे हाथ में डंडा है । जब भी मैं रेवडी लेने आगे बढती वो जोर से डंडा पछाडता ..सपने में भी रेवडी न मिली ।  
बडी़ हुई ,अच्छी शिक्षा प्राप्त करली , खूब अच्छा रिजल्ट ढेरों सार्टिफिकेट सब कुछ है मेरे पास ,बस सिफारिश नहीं । कल एक कंपनी में इन्टरव्यू है । थोडी चिंता में हूँ । 
  सुबह माँ नें दही-चीनी खिलाकर आशीर्वाद दिया सब अच्छा होगा कह कर विदा किया । इन्टरव्यू बहुत अच्छा हुआ ,पता लगा कि नौकरी तो सभी उच्चधिकारियों के रिश्तेदारो़ को दी जा चुकी है । अब समझ आया .......।स्कूल हो दफ्तर हो गांव हो ,शहर हो या देश ,अंधा भी शायद गंध पहचान कर रेवडी बाँटता है । 

  शुभा मेहता 
   17thJan 2020
 



   

  
 
  
  

Friday, 10 January 2020

चोट

लगी ज़रा सी चोट 
तो ,मम्मा दौडी़-दौडी़ आती है 
उठाती झट से गोदी में
  और प्यार से वो सहलाती है ।
  कहाँ लगी है जरा बताओ
   पूछ-पूछ घबराती है
    देख निकलता खून ज़रा -सा 
     रोनी-सी हो जाती है ।
      अभी ठीक हो जाएगा 
     यह कह ढाँढस बंधाती है 
       लेकर अपने पल्लू को 
       वो मेरी चोट सहलाती है 
        मैं भी चुप हो गोद में उसकी 
        सुख स्वर्ग सा पाती हूँ 
         इतना प्यार भला ये मम्मा 
        ले कहाँ से आती है । 


     
   शुभा मेहता 
  11th ,January ,2020
          
        

Friday, 3 January 2020

दुआ

कितनी दुआएँ माँगी थी 
कहाँ -कहाँ ना माथा टेका 
 मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारों में
 भटके थे .......
 बस ,एक पुत्र की आस में 
  जो तारेगा वंश 
  सोच तो यही थी ।
   कौनसी दुआ फली 
      नहीं मालूम ..?
       पुत्र जन्मा ..
       बधाईयाँ ,मंगलगान ..
        क्या ,माहौल था ,
        चारों ओर बस 
       खुशी ही खुशी थी 
        वृद्धाश्रम में बेठी माँ ...
        सोच रही थी ..काश 
          ना होती कबूल
            मेरी दुआ ...।
    

शुभा मेहता 
3rd Jan .2020