सबक तो सबक ही है चाहे वो बडों द्वारा बच्चों को दिया जाए अथवा बच्चों द्वारा बड़ों को ,मेरा ऐसा मानना है कि किसी के भी द्वारा दी गई सही सलाह को अवश्य मानना चाहिए ।
बात उन दिनों की है जब में लाखेरी (राजस्थान)मेंं डी ए वी स्कूल मेंं कार्यरत थी । कक्षा छ: की कक्षा अध्यापिका थी । हमारे स्कूल का नियम था कि रोज प्रार्थना सभा के बाद अपनी-अपनी कक्षा के विद्यार्थियों के नाखून और दाँतों का निरीक्षण किया जाए । यदि किसी के नाखून बढे हुए हों या दाँत गन्दे हों तो उन्हें हिदायत दी जाती ,फिर भी अगर विद्यार्थी ध्यान न दे तो प्रिन्सिपल साहब के पास ले जाया जाता । पर सभी विद्यार्थी नियम का पालन करते थे ।
मैं जब भी अपनी कक्षा के बच्चों का निरिक्षण करती थी ,तो एक.बच्चा जो पढने में काफी होशियार था ,कनखियों से मेरे हाथों कीओर ऐसे देखता मानो कुछ कहना चाह रहा हो ,शायद उसकी शिक्षिका थी इसलिए नहीं कह पा यहा था ।
बात दरअसल यह थी कि मुझे अपने नाखून बढा कर ,स़ुंंदर नेलपेंट लगाकर रखना बहुत पसंद था ।पर उसकी वो निगाहें मुझे बहुत कुछ सिखा गई ।घर जाकर सबसे पहला काम नाखून काटने का किया गया ।
और अगले दिन वो बस मुझे देखकर हौले से मुस्कुरा दिया ।
उस बच्चे ने मुझे जीवन का बडा पाठ सिखा दिया। तब से आज तक उसकी दी हुई सीख को ध्यान रखती हूँ किसी को टोकने से पहले स्वयं अपना निरिक्षण अवश्य करना चाहिए ।
शुभा मेहता
4th March ,2021
बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी ।
ReplyDeleteअच्छी औऱ सीख देता संस्मरण
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार
बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति जी । जी ,जरूर 🙏🏻
Deleteखूबसूरत बात बडी ही सादगी से कह दी आपने। शुभकामनाएं आदरणीया शुभा जी।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ।
Deleteबहुत सहजता और सादगी से आपने बहुत बड़ा सबक ग्रहण भी किया और दिया भी | शिक्षक छात्रों के लिए आदर्श होता है स्वयं सदा जीवन उच्च विचार को अपनाये बिना वह बच्चों का आदर्श नहीं बन सकता | आपका व्यक्तित्व आपके विचारों की सादगी में झलकता है प्रिय शुभा जी | हार्दिक शुभकामनाएं और आभार |
ReplyDeleteबहुत; बहुत धन्यवाद प्रिय सखी रेणु जी ।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर ।
Deleteबहुत सुंदर दी सही कहा बच्चे बहुत नोटिस करते हैं।हम खुद भूल जाते हैं कब क्या पहना या किस बात पर स्माइल की...।बच्चे नहीं भूलते।बहुत अच्छा लगा पढ़कर अच्छा प्रसंग।
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता ।
Deleteहां शुभा जी । बच्चों को कुछ समझाते हुए कई बार हम अपनी ओर देखना भूल जाते हैं । आभार आपका इस संस्मरण को साझा करने के लिए ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी ।
Deleteबिलकुल सही कहा आपने,दूसरों को सुधारने से पहले खुद को सुधारना जरुरी होता है ये बात समझते नहीं है सभी,सबक सीखना भी बहुत बड़ी कला है। बहुत ही सुंदर सीख देती कहानी,सादर नमन शुभा जी
ReplyDeleteधन्यवाद कामिनी जी ।
Deleteबहुत सुन्दर ,सही ।
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी ।
Deleteसचेत करवाता संस्मरण
ReplyDeleteधन्यवाद गगन जी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Delete"उपदेश देने के पूर्व उदाहरण बनना पड़ता है।"
ReplyDeleteशीर्षक के अनुरूप संदेशात्मक संस्मरण दी।
सादर।
बड़ी बात सहजता के साथ...स्वीकार भी की और अमल भी...जब बड़े अपने उपदेशों का स्वयं पालन नहीं करते तो देर सबेर छोटे उनकी अवज्ञा करने लगते हैं...सुन्दर सीख देता लाजवाब संस्मरण।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteMere Blog par aapka swagat hai.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteकई बार बच्चे हमे कुछ न बोलते हुए भी बहुत कुछ सीखा जाते है। सुंदर रचना।
ReplyDeleteस्वयं पहले सबक लेना फिर उसका आग्रह करना बात में वजन डाल देता है ...
ReplyDeleteफिर विद्यार्थी रहना जीवन भर ... मुझे तो एक सुखद कल्पना लगती है ...