"ये इंसान भी ना ,क्या समझता है अपनें आप को ...जो भी गुस्सा हो ,जिससे भी गुस्सा हो बिना सोचे समझे हम पर उतार देता है "
थाली बोली ,"देखो मेरी हालत ..खाना पसंद नहीं आया तो मुझे खानें सहित जमीन पर पटक दिया इतनी जोर......से
मुड गई हूँ अब टेबल पर टिक ना पाऊंगी "
देखो ना इतना छोटा - सा बच्चा ...उसनें तो मुझे पछाड़कर अधमरा कर दिया नन्ही चम्मच बोली ।
जब भी बस नहीं चलता ना किसी का किसी पर ...शामत हमारी ही आती है .।
शुभा मेहता
30th July, 2024
:) वाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर
Deleteजी शुभा जी, निरीह बरतनों की अपनी व्यथा है 😊😊रोचक लघु कथा 🙏
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी
DeleteWaah, jinki zuban nahin uske ke liye awaz uthate dekha magar nirjan ke liye bhi aapke ehasaas behad gehare lage - bahut khub likha hai!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी
Deleteक्या कहा जाय, मति ही फिर जाती है.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteहाँ,होता तो यही है!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...शुभा जी राम राम
ReplyDeleteबर्तन की नहीं हर चीज़ जरूरत के बिना ऐसी हो जाती है ...
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