Thursday, 12 June 2025

कौआ ,बालकनी और मैं

मुंबई शिफ्ट  हुए मुझे दो साल होने को आए । यहाँ देखा कि चील ,कौए बहुत हैं ।सुबह-सुबह बालकनी से देखो तो बहुत सारे मंडराते नजर आ जाते थे । अभी तक जहाँ भी रहे वहाँ कबूतरों की बहुतायत थी वैसे यहाँ कबूतर तो हैं ही ,साथ में कौवे भी । 
  कौवे सुबह-सुबह आकर बालकनी में काँव-काँव करते । 
   हमनें बचपन में कौवों के बारे में कुछ बातें सुनी थी ,जैसे 
 अगर उन्हें उडाओ या भगाओ तो ये पीछा नहीं छोडते ,पहचान लेते हैं ,पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है ।
  चलिए फिलहाल तो बात हमारी बालकनी और कौवे की चल रही है ,तो भई एक दिन जब सुबह-सुबह कौवे जी का राग शुरू हुआ, मैंने एक पारले-जी का बिस्कुट बालकनी की मुंडेर पर रख दिया । थोडी देर बाद क्या देखती हूँ कौवे जी धीरे-धीरे मुंडेर पर खिसकते हुए आगे बढ़ रहे थे फिर धीरे से बिस्कुट उठाकर ये जा वो जा ...। 
  अब तो उनका रोज का क्रम बन गया ,मुझे भी आनंद आनें लगा ,अब वो ज्यादा काँव-काँव नहीं करते बस दो तीन बार आवाज लगाते है और बिस्कुट पाकर उड़ जाते हैं ।
  एक दिन सुबह-सुबह देखा तो पारले-जी बिस्कुट खत्म हो गया ,मैंनें उसे गुड-डे बिस्कुट दिया ,पर कौवे जी को पसंद नहीं आया बिना लिए ही उड गया बेचारा ,तब समझ आया कि खानें में इनकी भी पसंद-ना -पसंद होती है ।

    शुभा मेहता 
13th June, 2025