Wednesday 30 September 2020

एक थी आशा

एक थी आशा ....
हँसती -गाती ,
मुस्कुराती ,सुंदर ,सलोनी -सी 
 माँ की दुलारी थी .
कितने सारे सपने थे उसके
कुचल दी गई 
 वहशी दरिंदों द्वारा
  क्या हो गया है 
  इंसान ...
इंसान से मिटकर 
बन गया हैवान है 
  रो रही है मानवता 
फूटफूट कर 
  जीत रही है ताकत 
  सत्ता की ..
पैसे की ...
 बिक रहे हैं लोग 
चंद सिक्कों की 
 खनखनाहट मे ।


शुभा मेहता 
30th Sept ,2020
  
  
  

दिखावा ...(.लघुकथा )

माँ जी ,आज मेरी माँ की तबियत ठीक नहीं है ,क्या थोडी देर के लिए मिल आऊँ । माला नेंं अपनी सास से डरते-डरते पूछा । 
 घर का काम कौन करेगा ? आज से नौकर भी छुट्टी पर है और मुझे तो महिला सशक्तिकरण के बारे में जो प्रोग्राम है वहाँ जाना है ,तुम्हें पता है महिलाओं पर होने वाले अत्याचर के खिलाफ हमने मुहिम छेड रखी है ।और हाँ घर खूब अच्छी तयह से साफ करना , मेरी कुछ सहेलियां आएगी और उनके लिए नाश्ते का इंतजाम भी करना है । 
  शुभा मेहता 
30th sept. ,2020