Tuesday, 17 January 2017

अधिकार

अध्यापिका पढ़ा रही थी
     मौलिक अधिकार
    समानता का अधिकार ,
     स्वतंत्रता का अधिकार
     समझाया हर किसी को ,
     है अधिकार
      विचार व्यक्त करने का
      तो मैंने पूछा
     क्या हम भी अपने
    मन के विचार व्यक्त
    कर सकते हैं ?
     वो बोली डाँटते हुए
       चुप रहो ,कक्षा को
        डिस्टर्ब मत करो
       मैं  बेचारी कुछ
      समझ न पाई
      घर जाके
     पूछा माँ से
     माँ ..क्या हम सभी को है
     अधिकार अपने
      विचार व्यक्त करने का?
     है न माँ ?  सच है न ?
    माँ चुप ....
    मैं तब भी
   कुछ समझ न पाई .....
      
   

17 comments:

  1. शुभा, बिल्कुल सही कहा तुमने... यहां हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं है ही नहीं। यहां तक की अपने खुद के परिवार में भी सच को नजरअंदाज करते हुए हमें कई बार परिवार में औरों की खुशी के लिए चुप रहना पडता है।

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    1. आभार ज्योति । सही है न ,शायद हम सभी को कमी,बेसी ये सहना ही पड़ता है।

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  2. बहुत खूब लिखा है शुभा जी.

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  3. कथनी और करनी के इसी फर्क को मिटाना होगा ...

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    1. हाँ ,प्रयत्न तो करने होंगें ।

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  4. बेटी को शुरूवात से ही अपनी आवाज बुलंद करने की हिम्मत देने की जिम्मेदारी मां की होती है लेकिन जब मां ही चुप हो जाए, फिर बेटी के मन पर क्या संदेश जायेगा। लेकिन अब समाज में बदलाव आ रहा है बेटियां बेटो से बेहतर हो रही है।

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  5. कहीं ना कहीं हम सब को अपनी बात को अपने दिल में रखने के दर्द को छिपाना पढ़ता है ,चाहे वो परिवार हो या समाज ।।शुभा जी आपने अन्तर्मन की व्यथा को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है ।

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  6. कहीं ना कहीं हम सब को अपनी बात को अपने दिल में रखने के दर्द को छिपाना पढ़ता है ,चाहे वो परिवार हो या समाज ।।शुभा जी आपने अन्तर्मन की व्यथा को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है ।

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद ऋतु जी।

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  7. Wah kitna accha likhti h maja aa gya pdh kar bahut hi s shakt kavita h

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  8. कितनी सादगी और प्रभावशाली ढंग से आपने शुभा जी बहुत ही मार्मिक बात कह दी है .....अभिनन्दन ....

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  9. Bhoga hua yatharth Sahi tarah se abhivyakt karna hi kala h...Well said Shubhai

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  10. Wow , bahut hi shandar article . Good Job keep it up

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  11. बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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