सडक के उस पार
गली के छोर पर
हुआ करते थे
दो गुलमोहर ...
बडे़ मनोहर लगते थे मुझे
जब लद जाया करते थे
फूलों से .....
एक केसरी
और दूसरा पीला
मेरे मन को बहुत भाते थे
खिडकी से बस दूर से निहारा करती
वृक्षों के नीचे खिरे हुए फूलों की
चादर सी बिछ जाती थी जब
मानो हो मखमली कालीन
मन करता था जाकर
पग फैलाकर
कर लूँ क्षण आराम ..।
पर अब वो नहीं हैं
काट डाला
कुछ इंसानों ने मिलकर
नहीं दिखता वो
मखमली कालीन
क्योंकि वहाँ तो
तिमंजिला मकान बन गया है ...।
शुभा मेहता
9th May ,2019
Wah adbhut panktiyan aur bahut sahi aaklan aaj ki paristhitiyon ka na jaane kitne baag bageeche in attalikaon ne hamse cheeje hain kudrat ko hamari mahatvakankshaon ke saamne ghutne tekne pade hain sunder kavita saral sughad shabdavali 😘😘😘😘👏👏👏👏👏💐💐💐💐😊😊😊😊
ReplyDelete,😊😊
Deleteबहुत सुंदर रचना ....,सादर स्नेह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
ReplyDeleteसार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सखी।
Deleteबहुत सुंदर भाव रचना शुभा जी।
ReplyDeleteहर दिन दिखने वाले पेड़ों से एक नाता सा हो जाता है अतरंग सा वो जब टूटता है मन भी कहीं से एक कोर खण्डित हो जाता है
सस्नेह।
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteपेड काटकर मंजिले तैयार की जा रही है यही विनाशकारी है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteवाह सराहनीय रचना विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद संजय जी ।
Deleteसुंदर और सराहनीय रचना।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Delete