Monday, 24 July 2023

कमला जी

कमला जी ....लघुकथा

कमला जी सब काम निपटा कर थोडी देर के लिए बैठी ही थी कि आवाज आई, अरे भई थोडी चाय तो बना दो सुबह से बस बैठी ही रहती हो कुछ काम धाम तो है नहीं....कमला जी के लिए तो ये रोज का था ..सोच रही थी कि सुबह से चक्करघिन्नी की तरह से इधर से उधर नाचती रहती हैं ये काम वो काम ...और सुनने को तो यही मिलता कि तुम्हे काम ही क्या है ?
सच में उन्हें बहुत बुरा लगता था । पर चुप रहती ...लेकिन आजकल जब भी वो पढती कि अपने आप से प्यार करो ,अपना ध्यान खुद रखो तब सोच में पड जाती कि आखिरी बार कब उन्होने अपनी पसंद से कुछ किया था ,कभी अपनी पसंद की सब्जी बनाई या अपनी मरजी से कहीं घूमनें गई....
कितना पसंद था उन्हे घूमना -फिरना ,पेंटिंग तो वो इतनी अच्छी करती थी कि बस ..सालों बीत गए रंग और कूची हाथ में लिए जिदंगी के सारे रंग मानों कहीं खो गए है ....घर में कभी किसी नें पूछा भी नही कि कमला तुम्हारे क्या शौक हैं ..सब अपनें में ही मगन उनका वजूद तो बस सिमट कर रह गया था ।
सोचा बस अब मैं भी अपनें लिए जियूंगी कुछ पल अपनें लिए 
भी निकालूंगी ...
कमला जी उठीं ...रसोई में जाकर अपनी पसंद की अदरक वाली चाय बनाई ...आराम से बैठ कर पी ।फिर अच्छे से तैयार होकर बाजार की ओर चल दी ,रंग और कूचियां लेने ....
 घर वाले हैरानी से उन्हें देख रहे थे ।

शुभा मेहता

7 comments:

  1. स्वयं को भूलकर अपनों के लिए समर्पित स्त्री की पीड़ा कौन समझा है भला?
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
    प्रणाम
    सस्नेह।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता ,मेरी रचना को पाँच लिंकों में स्थान देने हेतु ।

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  2. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी

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  3. सच मे शुभा दी, औरते खुद के लिए जीती ही नहीं है। लेकिन आजकल की लड़कियां हमसे ज्यादा स्मार्ट है। वे खुद के लिए बराबर समय निकाल रही है।

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति, कमला जब खुश रहेगी तो घर का वातावरण अपने आप बदल जायेगा

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  5. चलो आजकल पढ़ने के बाद ही सही अपने लिए भी कुछ तो शुरू किया।
    बहुत सटीक एवं सार्थक लघुकथा।

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