Friday, 16 January 2015

भोर किरन

भोर की पहली किरन ,
      दिलाती है अहसास ,
     आगे बढने का ,
    आकर जगाती है मुझे ,
    हौले से आकर कान में कह जाती है कुछ ,
    शायद कहती है -उठ जा ,उठ जा ,
     छू ले बढ कर आसमां
       मैं भी फिर उठ कर मुस्कुरा देती हूँ ,
       कोशिश करती हूँ छूने की उसे ,
      लेकिन वो मेरी पकड़ से छूट ,
       भाग जाती है दूर...,
      देकर अहसास कुछ कर गुजरने का
      किसी और को जगाने ।

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