मैनें देखा है,वृक्षों को छांव देते हुए ,
फूल और फल देते हुए
नदियों को मीठा जल देते हुए,
न किसी से कुछ पाने की चाह , न आस ।
और इंसान है कि जब ,
भाई -भाई को कर्ज देता है
पूरा ब्याज भी लेता है
पता नहीं वो बचपन के पल ,
जो बिताए थे साथ
कहाँ चले जाते है ,
और शायद लौट कर कभी वापस नहीं आते ,
बस रह जाती हैं कुछ धुंधली यादें ,
जो रुलाती हैं अक्सर अकेले में ,
ले जाती हैं पीछे -
वो कैसे एक नारंगी को ,
आधा -आधा बांट कर खाते थे ,
और आज आलम ये है कि ,
विरासत को बांटना है आधी-आधी ,
ये मेरा हक वो तेरा हक ,
और भूल जाते हैं सब
यह भी कि खाली हाथ जाना है
फिर क्यों ये लड़ाई ?
मिल बाँट के रहने में ही है भलाई ।
Wednesday, 4 February 2015
मैंने देखा है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment