ममता की छाँव
जीवन की नाव
स्नेह की मूरत
प्यारी सी सूरत
सिखाती है बुनना सपनों को वो
लगने ना देती कभी उनमें गांठ
उससे ही सीखा है मैंने
जीवन का पाठ ।
माँ है वो मेरी
माँ..... शब्द ही ऐसा है
सुनते ही जैसे
कानों में मिसरी सी घुल जाती है
एक अनोखी सी रचना है सृष्टि की
बहता है दिल में जिसके
प्रेम का अथाह सागर
लगाती हूँ जिसमे डुबकियाँ
गर हो कभी कोई गलती
देती है मीठी सी झिड़की
छुपा लेती पल्लू में
आती जब कोई मुझ पर आंच ।
शुभा मेहता
8th May 2021
माँ..... शब्द ही ऐसा है
ReplyDeleteसुनते ही जैसे
कानों में मिसरी सी घुल जाती है
एक अनोखी सी रचना है सृष्टि की
बिल्कुल सही कहा,शुभा दी।
बहुत; बहुत धन्यवाद ज्योति ।
Deleteबहुत सुन्दर शुभा जी, मां के लिए जितना लिखा जाए कम ही हैं। मां की महिमा शब्दों में नहीं समाती। बहुत बढ़िया लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं ❤️❤️❤️🙏❤️
ReplyDeleteबहुत; बहुत धन्यवाद प्रिय सखी ।
Deleteबहुत सुन्दर शुभा जी, मां के लिए जितना लिखा जाए कम ही हैं। मां की महिमा शब्दों में नहीं समाती। बहुत बढ़िया लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं ❤️❤️❤️🙏❤️
ReplyDeleteमाँ ऐसी ही होती है ... उसके आगे कौन ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....
बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।
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