Friday 1 May 2015

माँ

    ममता की  छाँव
         जीवन की नाव
         स्नेह की मूरत
            प्यारी सी सूरत
           सिखाती है बुनना सपनों को वो
            लगने ना देती कभी उनमें गांठ
           उससे ही सीखा है मैंने
           जीवन का पाठ ।
          माँ  है वो मेरी
       माँ..... शब्द ही ऐसा है
       सुनते ही जैसे
         कानों में मिसरी सी घुल जाती है
          एक  अनोखी सी रचना है सृष्टि की
          बहता है दिल  में जिसके
         प्रेम का अथाह सागर
       लगाती  हूँ जिसमे डुबकियाँ
       गर हो कभी कोई गलती
        देती है मीठी सी झिड़की
         छुपा लेती पल्लू में
         आती जब कोई मुझ पर आंच ।


शुभा मेहता 

8th May 2021
       

  
      
    

7 comments:

  1. माँ..... शब्द ही ऐसा है
    सुनते ही जैसे
    कानों में मिसरी सी घुल जाती है
    एक अनोखी सी रचना है सृष्टि की
    बिल्कुल सही कहा,शुभा दी।

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    1. बहुत; बहुत धन्यवाद ज्योति ।

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  2. बहुत सुन्दर शुभा जी, मां के लिए जितना लिखा जाए कम ही हैं। मां की महिमा शब्दों में नहीं समाती। बहुत बढ़िया लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं ❤️❤️❤️🙏❤️

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    1. बहुत; बहुत धन्यवाद प्रिय सखी ।

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  3. बहुत सुन्दर शुभा जी, मां के लिए जितना लिखा जाए कम ही हैं। मां की महिमा शब्दों में नहीं समाती। बहुत बढ़िया लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं ❤️❤️❤️🙏❤️

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  4. माँ ऐसी ही होती है ... उसके आगे कौन ...
    बहुत सुंदर रचना ....

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  5. बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।

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