देखा पलट के पीछे की ओर
था नज़ारा वहाँ कुछ और
होठों पर थी मुस्कान जैसे ओढ़ी हुई
उस खिलखिलाहट के पीछे
छुपा दर्द भी देखा था मैंने
हक़ीकत यही थी
न हँसना न रोना
न प्यार ,न उसका एहसास
कहने को तो सभी थे अपने
फिर भी पाया अकेला स्वयं को
सब कुछ था फिर भी
दिल का एक कोना था उदास
न थी जिसमे कोई जीने की आस
ये दिल का कोना न देख ले कोई
इसलिए सदा मुस्कुराना है
खिलखिलाना है
इसे सजाना है ।
वाह .. क्या बात कही है .. मज़ा आ गया पढ़ के
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
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