जी हाँ ,संज्ञा हूँ मैं
व्यक्ति या वस्तु ?
कभी -कभी ये बात सोच में डाल देती है
रूप है,रंग है ,आकार भी है
दिल भी,दिमाग भी
पर लगता है जैसे वस्तु ही हूँ मैं
जिसे,जहाँ चाहे रख दो
मन हो उठा लो
या शो केस में सजा लो
एक धड़कता दिल तो है सीने में
धड़कन किसी को सुनाई न देती
इच्छाएँ ,आशाएँ ,उम्मीदें भी हैं
जो किसी को दिखाई न देती
अब तो आलम ये है कि
खुद ही भ्रमित हूँ
क्या हूँ मैं
निर्जीव या सजीव ?
बस संज्ञा हूँ मैं ।
Wah..kya baat ..
ReplyDeleteWah..kya baat ..
ReplyDeleteलाजवाब अहसास..बेहतरीन भावपूर्ण नज़्म..आभार
ReplyDeleteधन्यवाद ।
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