Friday, 2 October 2015

जीवन

    जीवन , निरंतर गतिशील
     जैसे बहता झरना
    वक़्त गुजरता है
      पंख लगाकर
         रुकता नहीँ किसी के रोके
        ये गुजरता वक़्त
         देता नहीँ  दिखाई
        पर , दिखा बहुत कुछ देता है
        कुछ चाहा सा,कुछ अनचाहा
       करा बहुत कुछ देता है
   
         वो बचपन के प्यारे दिन
           खेल कूद गुजारे थे जो
      न जाने कब अतीत बन जाते हैं
    बस रह जाती है यादें
       कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी ।
       कुछ धुंधली सी ,कुछ उजली सी ।
       जिन्हें याद कर के कभी मुस्कुराते है
       कभी गुनगुनाते है
       और ये यादें कभी डबडबा देती है आँखों को
       यही तो जीवन है
       बहता झरना.... 
       
  

      

            
   
       

6 comments:

  1. Kitna Sahi likha h...mehsoos sabhi karte h par abhivyakt kuch hi kar pate h..
    Keep it up..

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  2. अत्यन्त सुन्दर रचना.

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  3. इसी गतिशीलता मैं ही जीवन की सुंदरता है जैसे एक बहती हुई नदी और रुके हुए तालाब के पानी का फर्क हो, अत्यन्त हृदय स्पर्शी रचना शुभा जी.

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