ये तो ववत -वक़्त की बात है
कभी मिलता है तो कभी मिलाता है
कभी खामोश सा बैठाता है
कभी कहकहे लगवाता है
तो कभी अनायास रुलाता है
कभी उलझे रिश्तों को सुलझाता है
तो कभी खुद ही को खुद से लड़ाता है
और ,गुजरते -गुजरते
दे जाता है ज़बीं पे लकीरें कुछ
साथ में बहुत कुछ सिखा भी जाता है
अच्छा ,बुरा बस गुज़र ही जाता है ।
बेहद भावनात्मक रचना है।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी ।
Deleteऔर ,गुजरते -गुजरते
ReplyDeleteदे जाता है ज़बीं पे लकीरें कुछ
साथ में बहुत कुछ सिखा भी जाता है
अच्छा ,बुरा बस गुज़र ही जाता है ।
waaaaaaaaaaah its superb
स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।धन्यवाद ।
ReplyDeleteस्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।धन्यवाद ।
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